अपने विधाता आप स्वयं हैं।

August 1949

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(श्री प्रभाकर जोशी, सेगाँव)

एक प्रसिद्ध उक्ति है-

“हानि-लाभ जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।”

इस उक्ति में हानि-लाभ, जीवन-मरण और यश-अपयश को “विधि” के हाथ में बताया गया है। आइए, विचार करें कि यह विधि क्या है?

कई व्यक्ति इस स्थान पर भी ‘विधि’ का अर्थ “ब्रह्मा” करते हैं। वे समझते हैं कि ब्रह्मा नामक देवता के हाथ में यह सब बातें हैं। वे जिसे चाहते हैं उसे लाभ, जीवन और यश देते हैं और जिसे चाहते हैं उसे हानि, मरण और अपयश के गर्त में धकेल देते हैं। सोचने की बात है कि देवता दिव्य स्वभाव के होते हैं वे सबको समानता एवं प्रेम की दृष्टि से देखते हैं, उनका कोई स्वार्थ, पक्षपात नहीं। फिर किसी को अच्छी किसी को बुरी परिस्थिति में क्यों डालेंगे? किसी को सुख, किसी को दुख देकर अन्याय के भागी क्यों बनेंगे?

कहा जाता है कि ब्रह्मा जी भले बुरे परिणाम कर्मों के आधार पर देते हैं। अपनी ओर से वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करते। तब यह सिद्ध हुआ कि कर्म ही प्रधान है। फल का मूल स्रोत कर्म है। फल देना चाहे ब्रह्मा के हाथ में हो, चाहे विष्णु के हाथ में, पर वह मिलता कर्म के आधार पर ही है। रुपया चाहे बैंक की मारफत भेजा जाय या मनीआर्डर से इस अंतर का कुछ महत्व नहीं। रुपया मिलेगा तभी जब पहले बैंक में या पोस्ट आफिस में जमा कर दिया जाए। बिना जमा किये न तो एक पाई बैंक से मिल सकता है न डाकखाने से। इसी प्रकार ब्रह्मा भी कर्मों के आधार पर ही जो कुछ भला बुरा देना होता है वह देते हैं।

‘विधि’ शब्द का अर्थ केवल ब्रह्मा ही नहीं होता। उस के दूसरे भी अर्थ हैं। तरकीब, रीति, प्रणाली, पद्धति क्रिया आदि के लिए भी ‘विधि’ शब्द का उपयोग होता है। किसी काम को जिस विधि से किया जाता है उसी के आधार पर फल मिलता है। यों करने को तो सभी लोग औंधे-सीधे तरीके से अपने-अपने कामों को करते रहते हैं और उनका सही गलत परिणाम भी निकलता ही रहता है। पर ध्यानपूर्वक देखा जाय तो असफलता और उल्टे परिणाम निकलने के कारणों के मूल में विधि का दोष पाया जाता है। सीधे तरीके से, समयानुकूल परिस्थितियों को देखकर, आगे-पीछे, ऊँच-नीच सोचकर, विवेकयुक्त मार्ग पर अपना कर काम किया जाय तो कुछ अपवादों को छोड़कर प्रायः आशाजनक ही परिणाम निकलता है। इसके विपरीत आवेश में बिना विचारे, देशकाल, परिस्थिति को देखे बिना जो अविवेकपूर्ण कार्य किये जाते हैं उनका परिणाम कुछ अपवादों तथा क्षणिक लाभों के अतिरिक्त सदा बुरा ही होता है।

कर्म स्थूल शब्द है। कर्म करने से फल मिलेगा यह एक मोटी बात हुई। उचित, अनुचित और निरर्थक तीन प्रकार के कर्म होते हैं। इनके परिणाम भी तीन प्रकार के होते हैं। इसलिए वह ‘कर्म करो’ इतना कह देने मात्र से काम नहीं चल सकता। कहना यह होगा कि विधिपूर्वक कर्म करो, सही रीति से, उचित मार्ग से कर्म करो। यदि विधिपूर्वक काम किया गया है तो लाभ, जीवन और यश प्राप्त होगा और अगर अविधिपूर्वक, बेढंगे तरीके से काम किया गया होगा तो हानि, मरण और अपयश मिलेगा। यही विधि का हाथ है। यह सब बातें विधि के हाथ में है। विधि का ऐसा ही महात्म्य है। उसको अपना कर मनुष्य यथेच्छ परिणाम प्राप्त कर सकता है।

विधि का उपयोग करने वाला ‘विधाता’ कहलाता है। यह लोकोक्ति है कि ‘सब कुछ विधाता की मर्जी पर निर्भर है।’ ठीक भी है विधि का उपयोग करने वाला विधाता-जैसी विधि का जैसी भली-बुरी प्रणाली का अवलम्बन करेगा। वैसा ही परिणाम होगा। मनुष्य स्वयं अपना विधाता निर्माता-वह अपने को चाहे जैसा बना सकता है। विधि का उपयोग उसके हाथ में है। विधि और विधाता के रहस्य को यदि लोग भली प्रकार समझलें तो अदृश्य की ओर ताकने की अपेक्षा उन्हें अपने पुरुषार्थ पर निर्भर रहने का सीधा-साधा मार्ग मिल जाय, पर आज तो अधिकाँश लोग पुरुषार्थ की उपेक्षा करके भाग्यवाद के अंधकार में भटक रहे हैं।


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