अपनी संपत्ति के सिवाय और किसी को न देखने वाला कंजूस अंधा होता है। अपने अन्त को न देखकर अपने आरंभ को ही देखने वाला अपव्ययी व्यक्ति अंधा होता है। दूसरे लोगों को रिझाने वाली स्त्री अपनी झुर्रियाँ भी नहीं देख पाती, अंधी है। अपना अज्ञान न देखने वाला विद्वान अंधा होता है। चोर को न देख सकने वाला ईमानदार अंधा है। उसी प्रकार परमात्मा को न देखने वाला चोर अंधा है।
- विक्टर ह्युगो
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तुम जो चाहो अपने को वही बना सकते हो श्रेष्ठ या नीच, पवित्र या पापी, चतुर या मूर्ख। अपने आपको बनाने वाले तुम स्वयं ही हो। अपनी जीवन रेखा को तुम स्वयं ही लिखते हो।
-डॉ. एनीबेसेन्ट