फलदायी देव पूजा

October 1947

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आरोग्यं भास्करादिच्छेत् धनामिच्छेद्धुता शनात्।

ज्ञान च शंकरादिच्छेत् मुक्ति मिच्छेत जनार्दनात्॥

शास्त्रकार का कथन है कि आरोग्य की कामना सूर्य नारायण से करे, धन की इच्छा हुताशन (अग्निहोत्र) द्वारा पूरी करें। ज्ञान के लिए शंकर जी की आराधना करें और मुक्ति के लिए जनार्दन का आश्रय ग्रहण करें।

इस श्लोक का स्थूल अर्थ तो यही है कि इन इन अभिलाषा इन इन देवताओं से करें। इन देवताओं की पूजा करें। पूजा अर्चना का साधारण अर्थ हम लोग गंध, अक्षत, धूप, दीप, पुष्प, नैवेद्य, ताम्बूल, अर्ध, स्त्रोत, नमस्कार आदि ही समझते हैं, और इतना कर्मकाण्ड कर लेने मात्र से यह आशा करते हैं कि देवता लोग प्रसन्न होकर मनोवाँछित वस्तुएं प्रदान कर देंगे। परन्तु हम देखते हैं कि अनेकों मनुष्य इस प्रकार की पूजा अर्चनाओं में बहुत समय तक लगे रहते हैं तो भी उनकी इच्छा पूर्ण नहीं होती है। ऐसी दशा में उपरोक्त शास्त्र वचन की सत्यता पर संदेह सा होने लगता है।

परन्तु गंभीर दृष्टि से देखा जाय तो इस वचन में संदेह की कोई गुंजाइश नहीं है। असफलता का कारण हमारा एकाँगी दृष्टिकोण है। हम समझते हैं कि देवता को प्रसन्न करने के लिए धार्मिक कर्मकाण्ड की पूजा पत्री ही पर्याप्त है, पर वास्तविक बात ऐसी नहीं है। इन देवताओं का वास्तविक रूप समझना और उस मान्यता पर मन, कर्म, वचन से अपने को नियोजित करना यह सच्चा पूजा विधान है। इसके द्वारा प्रसन्न होकर देवता-मनोवाँछित फल दिया करते हैं।

सूर्य से आरोग्य की इच्छा करें। इसका व्यावहारिक अर्थ यह है कि सूर्य की किरणों से घनिष्ठता रखें। शरीर को इतने वस्त्रों से न लपेटे की त्वचा तक प्रकाश और हवा की पहुँच न हो सके। सूर्य की किरणों में रोग कीटाणुओं को मारने की इतनी प्रचंड शक्ति है जितनी किसी कीमती से कीमती दवा में नहीं है। जो किसान मजदूर खुली धूप में खेतों में काम करते हैं वे सदा निरोग रहते हैं। कहते हैं कि “जहाँ धूप और हवा नहीं पहुँचती वहाँ डॉक्टर पहुँचते हैं।” फल वनस्पति, वृक्ष आदि का जो भाग धूप से सीधा संबंध रखता है वहाँ प्राण शक्ति अधिक पाई जाती है। फलों के शाक-भाजियों के, अन्नों के छिलके सूर्य की किरणों के सीधे संपर्क में आते हैं इसलिए भीतरी भाग की अपेक्षा उनके छिलकों में पोषक तत्व ‘विटामिन’ अधिक पाये जाते हैं। सूर्य स्नान, सूर्य किरण चिकित्सा, सूर्य नमस्कार, सूर्य सेवन, सूर्य उपासना, सूर्य महात्म्य आदि के संबंध में अखण्ड ज्योति के पृष्ठों पर पिछले वर्षों में अनेक बार चर्चा हो चुकी हैं। सूर्य शक्ति को जीवन में अधिक से अधिक व्यवहार करना यही सूर्य पूजा है, इससे आरोग्य वृद्धि होती है।

हुताशन- अग्निहोत्र का वास्तविक अर्थ है- साहस पूर्ण त्याग। अग्निहोत्र में पहले हम अपनी मूल्यवान हवन सामग्री श्रद्धा पूर्वक हवन करते हैं तब उस यज्ञ का फल मिलता है। जो लोग कठिन श्रम, जिम्मेदारी, ईमानदारी तथा जोखिम उठाने को तैयार रहते हैं वे ही धन कमा पाते हैं। भाग्य के भरोसे बैठे रहने वाले, आलसी साहस हीन व्यक्ति कोई ऊँचा काम नहीं कर सकते और न धन कमा सकते हैं। किसान अपना अन्न खेद में बिखेर देता है, धैर्य पूर्वक छः महीने अपने खेत को अपने पसीने से सींचता रहता तब एक बीज के बदले सौ बीज उसे मिलते हैं। साहसी पुरुषों के गले में लक्ष्मी की जय माला पड़ते देखी जाती है, धैर्यवान, अग्नि तप सा कठोर परिश्रम करने वाले, अपने कारोबार पर एकाग्र चित्त से श्रद्धा रखने वाले लोग सफलता प्राप्त करते हैं। यही अग्नि पूजा है। अग्नि देवता की पूजा को जो सच्चा विधान समझता है वही लक्ष्मी का वरदान प्राप्त करता है।

ज्ञान के लिए शंकर की आराधना करनी चाहिए। शंकर जी संयमी, निस्पृह, त्यागी, योग स्थित (एकाग्र चित्त) देवता (उदार मना) हैं। इन गुणों से व्यक्ति सच्चे अर्थों में ज्ञानवान् बनते हैं। उन्हें तत्व दर्शन प्राप्त होता है। असंयमी, ममता ग्रस्त, लोभी, डाँवाडोल चित्तवाले, अनुदार वृत्तियों वाले लोग शिक्षा की उत्तम व्यवस्था होने पर भी, अधूरा और उल्टा ज्ञान प्राप्त करते हैं। वह ज्ञान नहीं एक प्रकार का अज्ञान है जिससे उनमें असत्य, छल, अपहरण, शोषण, अहंकार, असंयम जैसे दुर्गुणों की वृद्धि होती है। जिसमें शंकर तत्व की स्थिति मौजूद है वे कोई गुरु न होते हुए एकलव्य की तरह मिट्टी की मूर्ति को गुरु बना लेते हैं, कबीर की तरह, गुरु के बिना जानकारी में भी दीक्षा ले लेते हैं। दत्तात्रेय की तरह मकड़ी, मक्खी, कौवे, कुत्ते सरीखे निम्न कोटि के जीवों को गुरु बनाकर उनसे अपना ज्ञान भंडार भर लेते हैं। ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने अन्दर शंकर तत्व की स्थापना आवश्यक है। यही शंकर पूजा है।

मुक्ति के लिए जनार्दन की पूजा की जाती है जनता जनार्दन की पूजा को- लोक सेवा को- अनेकों तत्वदर्शियों ने मुक्ति का साधन माना है प्राणि मात्र में समाये हुए सजीव भगवान की पूजा करना कितने ही महर्षियों ने निर्जीव प्रतिमा पूजा की अपेक्षा कहीं ऊँचा माना है। इस प्रकार लोक सेवा, ईश्वर पूजा ही ठहरती है, उससे मुक्ति का द्वार खुल जाता है।

जो व्यक्ति अपने चारों ओर भगवान को व्यापक देखता है। संसार के सब प्राणियों को जनार्दन मय समझता है, वह गुप्त या प्रकट रूप से किसी के प्रति कोई बुराई नहीं कर सकता। ऐसा सात्विक आचार और विचार वाला व्यक्ति अपने सतोगुण के कारण स्वयं जीवन मुक्त हो जाता है।


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