गुण्डेपन को रोकिए।

October 1947

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हमारे चारों ओर साम्प्रदायिक गुण्डेपन की बाढ़ सी आ गई है। घटनाओं का उल्लेख इन पंक्तियों में करने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। क्योंकि हर जगह इन दिनों नृशंस आततायीपन की घटनाएं घटी हैं और घट रही हैं दुधमुँहे बालक, कलिका सी बालिकाएं, करुणा की मूर्ति माताएं, शय्या सेवी वृद्धोवृद्ध, रोगी, असमर्थ तथा सर्वथा निर्दोष व्यक्तियों की बड़ी भारी संख्या में निर्मम हत्याएं हुई हैं। इस पैशाचिकता को देखकर रावण, कंस और हिरण्यकश्यपु तो क्या साक्षात शैतान को भी अपनी तुच्छता माननी पड़ी है। गुण्डों ने आततायीपन में उन सबको मात कर दिया है।

हत्या, लूट, अग्निकाण्ड, अपहरण बलात्कार की धूम मचाने वाले आततायी बाजारों में मूछों पर ताव देते हैं। हत्या के समय छटपटाते हुए प्राणियों का दृश्य देखकर उनका कलेजा ठंडा होता है, अग्निकाण्ड की आतिशबाजी से मनोरंजन होता है। अपहरण और बलात्कार की मौज से उनकी बाँछें खिल उठती हैं। लूट में तो अब की बार उनके हाथों ऐसी फसल लगी है कि पीड़ियों तक के लिए वे निश्चिन्तता अनुभव करते हैं। इससे बड़ा, इतने अधिक लाभों वाला व्यवसाय भला और क्या हो सकता है? इस लाभ को वे तब तक नहीं छोड़ सकते, जब तक उन्हें कोई शक्ति छोड़ने के लिए मजबूर न कर दे।

दुर्भाग्य से भारत की राजनीति में कुछ समय से ऐसा दौर आया है कि उसमें गुण्डेपन को प्रोत्साहन दिया गया है। सन् 1921 से लेकर 1947 तक कांग्रेस ने विविध मोर्चों पर अंग्रेजी सरकार से लड़ाई लड़ी। सरकार ने इस लड़ाई को विफल बनाने के लिए साम, दाम, दंड के अतिरिक्त भेद नीति से भी खूब काम लिया। साम्प्रदायिक वैमनस्य को प्रोत्साहन देना उसकी नीति थी। इस कार्य के लिए दोनों ही जाति के गुण्डों को उकसाया जाता था। साधारण जनता में हिन्दू मुसलिम द्वेष का कोई आधार न था तो भी यह गुण्डे कोई न कोई बहाना लड़ने के लिए निकाल लेते थे और झगड़ा करा देते थे। रिश्वतखोर अफसरों के लिए यह झगड़े चाँदी बटोरने के स्वर्ण अवसर सिद्ध होते थे, इसलिए भी वे उन्हें पालते पोसते रहते थे।

उधर लीगी नेताओं ने साम्प्रदायिक वैमनस्य का धुआँधार प्रचार किया। राजनैतिक महत्वाकाँक्षाओं के लिए उन्होंने गुण्डेपन को उकसाया। उन्होंने औरंगजेब, नादिरशाह और चंगेज खाँ के दृश्य उपस्थित कर देने की धमकी दी। इशारा मिलने की देर थी, देश भर में मुट्ठी भर बदमाशों ने औरंगजेबी कत्लेआम के दृश्य उपस्थित कर दिये। यह दृश्य इतने भयानक हैं कि छुटकारा पाने के लिए पाकिस्तान मंजूर कर लेना पड़ा।

आज की स्थिति-

इतना सब हो जाने के बाद आशा थी कि विभाजन के बाद शान्ति स्थापित हो जायगी। पर वह आशा सफल होती नहीं दीख रही है। कारण यह है कि जनता के रोष, क्रोध और भावों पर तो काबू करना सहज है पर विजयोन्मत्त गुण्डों को एक बार सिर चढ़ा लेने के बाद उन्हें रोकना कठिन है। नोआखाली की प्रतिक्रिया बिहार में हुई, उसे दमन एवं प्रचार से एक सप्ताह में रोक दिया गया। पर पाकिस्तानी प्रान्तों में आज जो हो रहा है, वह हम सबके सामने है। उसे रोकना आसान नहीं है।

गुण्डेपन की वृद्धि देश के लिए एक भारी संकट है। बाहरी शत्रु के आक्रमण की अपेक्षा आन्तरिक शत्रुओं का हमला अधिक भयंकर होता है। आज आततायियों को आश्रय मिल गया है। उनकी पीठ ठोंकी जा रही है। वे अपनी जाति वालों से प्रोत्साहन, सहायता और सम्मान प्राप्त कर रहे हैं। यदि अनियंत्रित गुण्डापन रोका न गया तो इस देश को घोर दुर्भाग्य पूर्ण अन्धकार के दलदल में फंसना पड़ेगा। इसमें न हिन्दुओं का भला होगा न मुसलमानों का।

साम्प्रदायिक लड़ाई के प्रत्यक्ष आधार फिलहाल समाप्त हो गये हैं। लीग ने जो माँगा था उनकी मुँह माँगी मुराद पूरी हो गई। दोनों पक्षों ने बटवारा मंजूर कर लिया। फिर सीधी कार्यवाही क्यों चालू रहनी चाहिए? यदि कोई और महत्वाकाँक्षा शेष हो तो उसको पूरा करने के दूसरे तरीके हो सकते हैं। कई बार लड़ना जरूरी हो जाता है तो लड़ते भी हैं परन्तु लड़ाई में भी मनुष्यता और नैतिकता के नियम बरते जाते हैं। लड़ने वाले आपस में लड़ते हैं पर शत्रुओं के स्त्री बच्चों के साथ नृशंसता नहीं बरती जाती। आज की गुण्डागीरी तो मनुष्य जाति के लिए अभिशाप है। रास्ता चलते ही परदेशी की बगल में छुरा मार कर भाग जाना, असहाय स्त्री बच्चों के टुकड़े-2 कर देना, अल्पसंख्यकों का कत्लेआम करना, उनकी सम्पत्ति को भस्म कर देना ऐसा तो बर्बर जातियों में भी नहीं होता। इन कुकृत्यों से यदि किसी को कोई सफलता मिल भी जावे तो वह न तो अधिक दिन ठहर सकती है और न उससे कोई सुख शान्ति पा सकता है।

जो लोग आज पैशाचिक कृत्यों के लिए गुण्डों को उकसा रहे हैं, बढ़ावा दे रहे हैं वे भली प्रकार समझ लें कि इस प्रकार आस्तीन में पाले हुए साँप एक दिन उन्हें भी डसेंगे। हत्यारे नर पिशाचों का कोई धर्म नहीं, कोई मजहब नहीं, कोई जाति नहीं। जो चीत्कार करती हुई करुणामयी माता की गोद से उसके लाल को छीनकर छुरे से गोद डाल सकता है, बालिकाओं स्त्रियों के टुकड़े-2 काटते हुए मनोरंजन अनुभव करता है, ऐसा नर राक्षस धर्म और जाति से हजारों कोष दूर है। वह आज दूसरी जाति वालों के साथ जो व्यवहार करता है कल किसी भी छोटे मोटे स्वार्थ के लिए ऐसे ही कृत्य अपने जाति वालों के साथ करेगा। जिस बाघ की डाढ़ में मनुष्य के खून का चस्का लग जाता है वह सदा आदमी के मांस की तलाश में रह जाता है और जब तक मर नहीं जाता मनुष्यों का शिकार करता रहता है। यह नरभक्षी आततायी दूसरी जाति वालों को ही सतावेंगे इसकी कोई गारंटी नहीं। चोरी, डकैती, लूट, हत्या में जिनकी डाढ़ लपक गई है वे अच्छे नागरिक और अच्छे पड़ौसी की तरह भविष्य में रह सकें यह मुश्किल है। ऐसे लोग जहाँ भी रहेंगे वहीं संकट उत्पन्न करेंगे।

इस आततायीपन को रोको-

गुण्डागीरी को रोकने के लिए दो बातें आवश्यक हैं। (1) मजबूत सरकार की कठोर नीति (2) जनता में गुण्डों के प्रति घोर घृणा और उनके दमन का दृढ़ निश्चय। बिना जातीय भेद भाव के ऐसे नर पिशाचों का दमन किया जाना चाहिए। पिछले दिनों मेवस्तान आदि के उपद्रवों को रोक सकने में पं. नेहरू ने इस लिए असमर्थता प्रकट की थी कि- उनके हाथ सीमित सत्ता है। पर अब तो वैसी बात नहीं है। हिन्दू मुसलिम एकता बड़ी अच्छी चीज है, पर वह इस तरह नहीं हो सकती कि किसी जाति के गुण्डों के साथ रिआयत का ढिलाई बरती जाय। रिआयत को गुण्डे कभी उदारता नहीं समझते वरन् इसे दूसरे पक्ष की कमजोरी और अपनी हेकड़ी कर स्वाभाविक परिणाम मानते हैं। इससे उनके हौसले बढ़ते हैं और वे दुगने उत्साह के एकता को नष्ट करने वाले काम करते हैं। सरकार को इस दिशा में अत्यन्त कठोर होना चाहिए।

जनता अक्सर गुण्डों का विरोध करते हुए डरती है। उसे भय होता है कि विरोध करने पर वे क्रुद्ध होकर आक्रमण न कर बैठें। यह कमजोरी अत्यन्त घातक तथा दुष्टता को बढ़ाने वाली है। इस कमजोरी को जितनी जल्दी निकाला जा सके उतना ही अच्छा है। उनका संगठित विरोध होना चाहिए। जो लोग उन्हें प्रोत्साहन एवं सहयोग करें उनकी भी खबर ली जानी चाहिए। महात्मा शेखसादी कहा करते थे कि जो “जो साँप को तरह देता है वह इन्सानों के साथ दुश्मनी करता है।” आततायियों को न तो तरह दी जानी चाहिए और न उनसे डरना चाहिए। उनके विरुद्ध निर्भय होकर गवाही देनी चाहिए और राजदंड दिलवाने की पूरी-पूरी कोशिश करनी चाहिए। इस संबंध में प्रत्येक नागरिक को एक सच्चे पुलिस मैन की तरह उत्साह दिखाना चाहिए। यदि सामूहिक रूप से जनता गुण्डागीरी के विरुद्ध जहाद बोल दे, डरना और तरह देना छोड़ दे तो आततायीपन का बहुत जल्द अन्त हो सकता है।

एक बात स्पष्ट है कि हमें आततायीपन का जवाब स्वयं आततायी बन कर किसी भी दशा में नहीं देना है। अत्याचार के विरुद्ध हर संभव उपाय से लड़ना और उसका अन्त करना वीरो चित्त मार्ग है। गुण्डों को उनकी करनी का मजा चखाने के लिए हर वैध उपाय काम में लाया जा सकता है। परन्तु यह कार्य स्वयं भी आततायी बनकर नहीं किया जा सकता। कोई हमारे स्त्री बच्चों का वध करता है तो आत्मरक्षा के लिए उस वधिक का जिस तरह भी मुँह तोड़ा जा सके उचित है, पर उसके स्त्री बच्चों से या उसकी जाति के अन्य निरपराधों को सताया जाना किसी प्रकार उचित नहीं। कैसी ही उत्तेजनाजनक स्थिति सामने क्यों न आवे, विवेक और मनुष्यता को हाथ से नहीं जाने देना है। बिना खुद आततायी बने भी आततायियों का मुकाबला किया जा सकता। निर्भयता, साहस, बहादुरी एवं संगठन की शक्ति इतनी महान है कि उससे गुण्डेपन को आसानी से परास्त किया जा सकता है।

यह गुण्डे न केवल नृशंसता पूर्वक धन जन की हानि कर रहे हैं वरन् आई हुई स्वतंत्रता को हाथ से निकल जाने देने और लम्बे काल तक देश को भारी दलदल में फंसा देने का आयोजन कर रहे हैं। विदेशों को शोषक शक्तियाँ यही चाहती हैं कि यह देश साम्प्रदायिक गृह युद्ध का अखाड़ा बन जाय फलस्वरूप उसे अप्रत्यक्ष रूप से, नई तरह की गुलामी के बन्धनों में पुनः कस लें और मनमाना शोषण करें। इन चालों को सफल बनाने में यह गुण्डाशाही मैदानी मोर्चा लड़ रही है। इसे विफल न किया गया तो जीती बाजी हाथ से निकल जायगी।

पाकिस्तानी प्रान्तों से अत्याचारों की रोमाँचकारी खबरें आ रही है। उन्हें सुनकर भी हमें अपना विवेक न खोना चाहिए। इन प्रान्तों के असहाय बन्धुओं की रक्षा के लिए भारतीय सरकार और भी अधिक जोरदार कदम उठावे इसके लिए उस पर दबाव डालना चाहिए साथ ही उसे मजबूत बनाने के लिए हर प्रकार का सहयोग भी करना चाहिए। जनता द्वारा जनता से बदला लिया जाना अदूरदर्शिता है। यह कार्य सरकार को ही करना चाहिए। भारतीय सरकार पाकिस्तानियों को इसके लिए विवश करे कि वह अपने क्षेत्र की गुण्डागीरी रोकें अन्यथा ढील देने का दुष्परिणाम उसे भुगतना पड़ेगा।

हमें अपने अन्दर छिपे हुए उस पौरुष एवं पराक्रम को जागृत करना होगा जिससे गुण्डेपन का मुँह कुबला जाता है। आइए, मनुष्यता मातृभूमि इज्जत आबरू एवं जान माल अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए अपने सोये हुए शौर्य को जागृत करें।


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