‘लीजिए आप पीजिए’ का चस्का

October 1947

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

नशेबाजी पहले पहले शौक में शुरू होती है। नौसिखिया पीने वाला यह नहीं समझता कि इसके कोई लाभ भी है। दोस्त लोग उसे चस्का लगाते हैं ‘लीजिए आप पीजिए’ के साथ मुफ्त में नशे की एक खुराक भेंट की जाती है। पीने वाला एक कौतूहल उमंग के साथ उसे पीता है। थोड़े दिन ऐसे ही सिलसिला चलता है, बाद में यह नशा, उसके स्नायु तन्तुओं पर कब्जा करके अपने वश में कर लेता है। फिर छोड़ना मुश्किल पड़ता है। समय पर नशा न मिले तो बेचैनी उठ खड़ी होती है।

नशेबाजी का शौक लगाने के लिए ‘लीजिए आप पीजिए’ का सत्कार एक ऐसी शैतानी माया है जिसकी भयंकरता को कहने वाला और स्वीकार करने वाला दोनों ही नहीं जानते। पर शैतान अपनी सफलता पर खड़ा-2 हंसता है कि मेरी जीत हो रही है यह दोनों मूर्ख खुशी-खुशी मेरा काम कर रहे हैं।

तमाखू को ही लीजिए। बीड़ी, सिगरेट, सिगार, हुक्का, सुँघनी, जर्दा आदि के रूप में इसका आजकल अत्याधिक प्रचलन है। अधिकाँश लोग इसके चंगुल में फंस कर अपने स्वास्थ्य और धन की छोली फूँकते रहते हैं। सरकारी रिपोर्ट के अनुसार भारत वर्ष में प्रति वर्ष 12 लाख एकड़ भूमि में तमाखू कह खेती होती है। जिसमें करीब एक अरब रुपये का तमाखू उत्पन्न होता है। इसके अतिरिक्त सिगरेट, सिगार तथा अन्य रूपों में 256 लाख रुपये की तमाखू विदेशों से आता है। इतनी बड़ी सम्पत्ति को लोग धुआँ बनाकर फूँक देते हैं। यदि इतनी भूमि में खाद्य पदार्थों की खेती होती तो उसमें करीब 2 करोड़ 35 लाख मन अन्न पैदा होता इतने अन्न से कंगाल जैसी भुखमरी और आज के खाद्य संकट को आसानी से रोका जा सकता था। परन्तु नशेबाजी ऐसा करने दे तब न!

तमाखू पीने से स्वास्थ्य पर कितना घातक असर पड़ता है इसके लिए साँर के कुछ अत्यंत लब्ध प्रतिष्ठ और ख्यातिनामा डाक्टरों की सम्मतियाँ नीचे दी जाती हैं-

डॉक्टर केलाँग लिखते हैं- किसी वस्तु को शरीर में सर्वत्र व्याप्त करने का सबसे सरल तरीका उसका धुँआ लेना है। तमाखू का धुँआ फेफड़ों में जाता है और उसकी दीवारों में से छनकर अन्य अंग-प्रत्यंगों पर अपना प्रभाव डालता है दिल में आने-जाने वाले खून को वह धुँआ अपना जहर बराबर देता रहता है फलस्वरूप खून के शुद्ध और सजीव परमाणु अशुद्ध और मूर्च्छित हो जाते हैं।

डॉक्टर रिचर्डसन लिखते हैं- तमाखू पीने वाले के पेट के भीतर कोमल त्वचात्मक भीतरी आवरण पर गोल-गोल दाग पड़ जाते हैं। खून पतला हो जाता है। फेफड़े कमजोर हो जाते हैं। हृदय की स्वाभाविक धड़कन के स्थान पर एक प्रकार का कम्प शुरू हो जाता है।

डॉक्टर फूट का कथन है- नपुँसकता के कारणों में तमाखू पीना एक मुख्य कारण है। मेरे पास गुप्त रोगों का इलाज कराने कितने ही रोगी आते हैं। मैं उनसे कह देता हूँ कि दो में से एक बात पसंद कर लो- पुँसत्क या तमाखू। तमाखू से प्यार हो तो काम सेवन की तरफ से तो निराशा हो जाओ। तमाखू के विष से आरम्भ में बड़ी कामोत्तेजना होती है जिससे प्रेरित होकर लोग अधिक वीर्यपात करते हैं। थोड़े दिनों में उनका कोष खाली हो जाता है और नसें शिथिल पड़ जाती हैं। फलस्वरूप वे नपुँसक हो जाते हैं।

डॉक्टर रश बारन का मत है- तमाखू का विष दाँतों की बड़ी हानि पहुँचाता है। दाँत पीले पड़ जाते हैं और समय से पूर्व ही उखड़ जाते हैं।

डॉक्टर कैलन ने लिखा है- मेरे अस्पताल में जितने भी कब्ज के रोगी आये वे सबके सब तमाखू पीने वाले थे।

डॉक्टर हासेक कहते हैं- मंदाग्नि का मुख्य कारण तमाखू है।

डॉक्टर रगलेस्टर- आमाशय, आँतें और जिगर तमाखू के विष से शिथिल पड़ जाते हैं और अजीर्ण रहने लगता है।

डॉक्टर सीलीमेन- तमाखू से श्वास नली और फेफड़ों में जख्म होकर सड़न पैदा हो जाती है और वहाँ से खाँसी, जुकाम तथा दम्भ की उत्पत्ति होती है।

डॉक्टर विलियम अलकाट- तमाखू से आँखों को बड़ी हानि पहुँचती है।

डॉक्टर एलिन्सन- तमाखू के धुएं से हृदय की धड़कन बढ़ जाती है तथा आँख, कान, जिह्वा एवं नासिका की शक्तियाँ शिथिल पड़ जाती हैं।

डॉक्टर निकोलस- जननेन्द्रियों पर तमाखू का बहुत बुरा असर पड़ता है। इससे संतानोत्पत्ति का कार्य कठिन हो जाता है। बच्चे दुर्बल, रोगी, बुद्धिहीन और कुरूप होते हैं। इसके अधिक पीने से स्त्रियाँ बन्ध्या और पुरुष नपुँसक हो जाते हैं।

डॉक्टर केविन ने स्त्रियों की एक सभा में कहा था कि- बहनों! मैं तुमको सलाह देता हूँ कि रोगोत्पादक, अत्यंत गंदे निंद्य तमाखू और शराब के दुर्व्यसनों में फंसे हुए पामर पुरुषों से सदैव दूर रहो। वे बड़े विषयान्ध होते हैं। नशेबाजी उन्हें दरिद्री, रोगी, चिड़चिड़ा और अल्प आयु बना देती है। तुम्हें चाहे जीवन भर कुमारी रहना पड़े पर नशेबाजों को अपना पति न बनाओ क्योंकि ऐसे पुरुष, पिता और पति बनने से सर्वथा अयोग्य होते हैं।

डॉक्टर नेलसन- दिमागी खराबी और पागलपन का सबसे बड़ा कारण तमाखू है।

डॉक्टर इर्स्टवेन्स- तमाखू स्मरण शक्ति को घटाती है और मानसिक शक्तियों को ढीला कर देती है।

डॉक्टर हिचकारक- इन्द्रिय दौर्बल्य, स्मरण शक्ति की कमी, अदूर दर्शिता, चित्त की चंचलता, चिड़चिड़ापन जैसे अनेक रोग तमाखू से उत्पन्न होते हैं। कितने ही बौद्धिक प्रतिभा सम्पन्न व्यक्तियों की योग्यता को तमाखू ने धूल में मिला दिया है।

उपरोक्त सम्मतियों पर विचार करने से पाठक यह अनुमान लगा सकते हैं कि तमाखू का मंद विष यद्यपि तुरन्त ही मनुष्य को मार नहीं डालता तो भी धीरे-धीरे चालू रहने वाले इस दुर्व्यसन से हमारी अपार हानि होती है। इसलिए पाठको! तमाखू से बचो, इस शैतान की माया से अपने को दूर रखो। जो आपको ‘लीजिए आप पीजिए’ कह कर तमाखू भेंट कर रहा हो, उससे सावधान रहिए ऐसे स्वागत को स्वीकार कर दीजिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: