हम 125 वर्ष जी सकते हैं।

October 1947

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श्री रिवर्ड ग्रेग अमेरिका से महात्मा गाँधी को लिखते हैं- ‘न्यूयार्क के एक सत्र ने खबर दी है कि ‘आपने 125 वर्ष जीवित रहने की आशा छोड़ दी है। यदि यह खबर बिल्कुल ठीक है, तो मैं आपसे प्रार्थना करता हूँ कि आप अपनी बात को बदल दें।’

उत्तर में महात्माजी ने लिखा, ‘जो खबर ग्रेग साहब ने पढ़ी वह बहुत हद तक ठीक है। जब मैंने जाना कि मुझमें काफी अनासक्ति नहीं है, तो मैंने 125 वर्ष जीने की आशा खो दी। अपने क्रोध की भावनाओं पर मैं इतना काबू नहीं पा सकता हूँ कि मैं 125 वर्ष जीने की आशा कर सकूँ। एक दिन इस दुःखद बात का मुझे अनुभव हुआ कि मुझमें जरूरी अनासक्ति नहीं हैं। जिस आदमी का जीवन सेवामय नहीं हैं, उसे जीने का कोई हक नहीं है। गीता में लिखा है कि जिसमें अनासक्ति नहीं हैं वह पूरी-2 सेवा नहीं कर सकता।

अपनी कमियों का सच्चा इकरार करने से आत्मा का भला होता है। इससे मनुष्य को अपनी कमियाँ दूर करने की शक्ति मिलती है ‘हरिजन’ के पाठकों को जानना चाहिए कि मैं अपनी कमियों को दूर करने की हर कोशिश कर रहा हूँ, ताकि अपनी खोई आशा को फिर पा लूँ। इस संबंध में मुझे यह दोहरा देना चाहिये कि जो कोई अपना जीवन मनुष्यों की सेवा में अर्पण कर देता है, उसे यह आशा रखने का हक जरूर है। उसे एक शेखचिल्ली का सपना हरगिज न समझना चाहिए। मुझे और मेरे जैसे दूसरे कोशिश करने वालों को इसमें सफलता न मिलें तो इससे स्पष्ट नहीं होता कि 125 वर्ष जिन्दा रहना असंभव है।


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