तुमने नहीं सूना है? हमने तुम्हें पुकारा

October 1947

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(ले.- श्री एम. सरवैया मोती)

आलिश में जल रहा है ऐशो-अमन हमारा। बिजली फलक से टूटी या गिर पड़ा सितारा॥

बर्बाद हो रहा है आबाद घर हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

हम मादरे-वतन के साए में रह चुके हैं।

मानिन्द घास के हम दर्या में बह चुके हैं॥

तूफानी सख्तियों के तूफाँ में रह चुके हैं।

दुश्मन की लाख सर पै तलवारें सह चुके हैं॥

बुझ-बुझ के जल रहा है फिर भी दिया हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

लोहू से आज अपनी सूखी निगाह तर है।

अपनी तबाहियों की हमको नहीं खबर है॥

आहें हैं उफ्! लबों पर दिल में भरा जहर है।

गमगीन किसके गम में हिन्दोस्ताँ का घर है?

यजमुर्दगी से चेहरा रोशन नहीं हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

हम बेखुदी में अपनी कुछ ऐसे भूल बैठे।

झूला समझ के तख्ते-फाँसी पै झूल बैठे॥

मक्कारियों से अपने धड़ पर से सडडडडडड गये हैं।

जिसने हमें बनाया हम उसके बन गये हैं॥

अपने लहू से दामन है सुर्खरु हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

प्यासा नजर के आँसू खुद अपनी पी रहा है।

हैरत है इन्सा मुर्दा बनकर के जी रहा है॥

वो बेवफाई करके हमको वफा दिखाने है।

बुलबुल के चाक दिल को सैयाद सी रहा है॥

सीने से और ज्यादा सीना फटा हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

जो यार थे वो देखो ऐय्यार बन गये हैं।

गुलशन के फूल अपने सब खार बन गये हैं॥

अहले-वफा थे जितने मक्कार बन गये हैं।

चाकू भी दुश्मनों के तलवार बन गये हैं॥

धारों की सख्तियों से कटता गला हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

उड़-उड़ के गिध देखो मंदिर पै आ रहे हैं।

गम के सियाह बादल मस्जिद पै छा रहे हैं॥

कोई उदास अर्थी लेकर के चल रहे हैं।

कोई उठाके मैय्यत काँधे बदल रहे हैं॥

मरघट में दफन होगा दीनों-धर्म हमारा। तुमने नहीं सुना है? हमने तुम्हें पुकारा!

*समाप्त*


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