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October 1947

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प्रेम, सेवा, त्याग सहानुभूति और मधुर भाषण ने किसको अपने वश में नहीं किया?

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सज्जन अपने साथ की गई भलाइयों को नहीं भूलते, हाँ! अपने साथ की गई बुराइयों को अवश्य भूल जाते हैं।

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दुनिया के साथ भलाई करता जा और भूल जा।

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जितना भारी आनन्द निष्कपटता और सत्य व्यवहार में है, उतना ही भारी दुःख, छल, कपट एवं दम्भ में है।

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जो मनुष्य दूसरों को तनिक सी छेड़ छाड़ से ही क्रोध से उत्तेजित हो जाते हैं वे दुर्बल हैं।


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