आदतें बनाई जाती हैं।

December 1946

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बुद्धि को बनाना जिस प्रकार हमारे हाथ में हैं, उसी प्रकार मनोविकारों का भी बनाना हमारे हाथ में है। मनोविकार बुरे और भले दोनों हैं। जिनका जिस प्रकार विकास करोगे, वे उस प्रकार बन जावेंगे। शराब की दुकान देख कर शराबी से जिस प्रकार वहाँ गये बिना नहीं रहा जाता, उसी प्रकार यह भी आदत हो सकती है कि किसी की बुरी दशा देखकर उसकी स्थिति पर दया अवश्य उत्पन्न हो। दया करने से दया उत्पन्न होती हैं, हिंसा करने से हिंसा की प्रवृत्ति होती है। कोई मनोविकार ऐसा नहीं जो अभ्यास के, आदत के अधीन नहीं हो सकता पहले-पहले वे स्वाभाविक तथा उत्पन्न होते हैं, पर आगे उन्हें बढ़ने देना या न बढ़ने देना मनुष्य पर अवलम्बित है। आगे की बातों के लिए प्रकृति जवाबदार नहीं। उसके लिये हम ही जवाबदार हैं कि किस वस्तु या कल्पना से हमारे मन में विशिष्ट प्रकार का विकार उत्पन्न होता है। आदमी से सब कुछ हो सकता है।

यह आदतों पर ही सब कुछ निर्भर है और आदतें मनुष्य के हाथ की बाते हैं तो आदतों के कुछ नियम भी जान लेना आवश्यक है। सबसे पहले यह ख्याल रखना चाहिये कि यदि कोई नई आदत डालनी हो या कोई आदत छोड़नी हो तो उसके लिए तुम्हें अत्यन्त निश्चयपूर्वक मन की सब शक्ति लगा अच्छी आदतें डालने का प्रयत्न करना चाहिए।


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