विचार शक्ति का महत्व

December 1946

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

(श्री विश्वामित्र वर्मा)

विचार मनुष्य में स्वाभाविक है, विचार न हो तो हम पशु की श्रेणी में गिने जायेंगे। हम देखते हैं कि जो लोग विचार हीन होते हैं उनमें मनुष्यत्व की गणना नहीं होती। विचारों का उद्गम मन में है। ‘मन’ हमें प्राप्त होने से ही हम मनुष्य कहाए। मन का काम है विचार करना या मनन करना। यदि हम में मन न हो, हम विचार न करें तो हम मनुष्य नहीं। सारा मानव संसार विचार करता है, बोलता है, काम करता है और अनुभव करता हैं पर बहुत से लोग बड़े-बड़े विद्वान तक यह नहीं जानते कि सबका कारण ‘मन’ है। अज्ञात रूप से विचार चलते रहते हैं उसी के कारण वे बनते बिगड़ते हैं फिर भी कहते हैं कि हमको विचार नहीं आते या हमने बिना विचारे काम कर लिया आदि-तथा हमको विचार शक्ति का रहस्य नहीं मालूम। परन्तु यदि सूक्ष्म दृष्टि से उनके जीवन या संसार में किसी भी कार्य की जड़ देखी जाय तो मालूम होता है कि कोई भी कार्य बाहर दृश्य स्थूल जगत में तैयार हो जाता है-जो संबंध बीज और वृक्ष का है वह संबंध हमारे विचारों और कार्यों में हैं। हम विचार करते हैं फिर काम करते हैं- पर हमें यह नहीं मालूम कि यह कार्य हमारे विचारों का परिणाम है। हमें जो सुख दुःख आदि प्राप्त होते हैं उसका कारण हम बाहर के पदार्थों को समझते हैं पर बाहर नहीं -यह हमारी केवल कल्पना है। एक ही वस्तु आज हमें अप्रिय है, कल वह प्रिय हो जाती है। इतना नहीं-हम जैसा विचार उस वस्तु के विषय में करेंगे वैसी ही वह हमको भायेगी। अच्छी और बुरी बातें सब हमारे मन में-हम से ही उत्पन्न होती हैं। विचार के बिना सृष्टि का कोई भी कार्य एक क्षणभर के लिए भी आगे नहीं बढ़ सकता। हमारे प्राचीन ऋषि महात्माओं ने विचार शक्ति की जो महिमा गाई है उसका महत्व अब पाश्चात्य लोगों को भी विदित होने लगा है। जड़ शक्तियों के साथ वे विचारों की प्रचण्ड शक्तियों का भी अनुभव करने लगे हैं। वे यह मानने लगे हैं कि मनुष्य अपने विचारों का ही बना हुआ है। मनुष्य जैसा विचार करता है वैसा ही वह हो जाता है।

यदि मनुष्य अच्छा विचार करे तो वह अच्छा और बुरा विचार करे तो बुरा बन जाता है। मनुष्य विचारों का पुतला है। मनुष्य में मन का अस्तित्व होने से ही उसे रोग, शोक, भय, दुःख, सुख, मित्र, अच्छा, बुरा आदि भासता है जो चीजें हमारे उपयोग की हैं, जिनसे हमारा स्वार्थ सिद्ध होता है जो वस्तुएँ, प्रसंग व परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल हैं उन्हें ही हम अच्छा कहते हैं बाकी अन्य वस्तुएं सब बुरी हैं। पर हम यह नहीं जानते कि अच्छा-बुरा आदि सब पहले हममें ही उत्पन्न हुआ। यदि हमने कोई वस्तु देखी उसके विषय में हमने अपनी रुचि के अनुसार अच्छी या बुरी कह दी-परन्तु उस वस्तु में कोई परिवर्तन नहीं हुआ-जैसी पहले थी वैसी ही अब भी है-अतः परिवर्तन हमसे ही हमारे अच्छे व बुरे विचारों के कारण होता है।

सारा संसार हमारे विचारों पर ही स्थित है हम उसे बुरा कहे या अच्छा कहें। विचार करने में हम स्वतंत्र है। यदि मनुष्य शोक, भय, व्यभिचार, ईर्ष्या, द्वेष और घृणा इत्यादि के विचार करेगा तो निश्चय ही ये दुर्गुण उसमें बैठ जावेंगे यदि विपरीत में परोपकार, निर्भयता, सत्यता, आदि के विचार करेगा तो उसमें इन गुणों का प्रादुर्भाव होने लगेगा-और साथ ही साथ उसमें एक आश्चर्य कारक शक्ति का संचार होने लगेगा।

विचारों का महत्व असाधारण है। विचारों के द्वारा ही मानव जीवन का निर्माण होता है। विचारों के कारण ही मनुष्य ऊँचा बढ़ता और नीचा गिरता है। इसलिए विचारों को अपनाते समय हमें बड़ी सतर्कता रखने की आवश्यकता है।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: