अपना सम्मान करो।

December 1946

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जितना आप अपनी योग्यता पर अविश्वास करेंगे, जितना आप भय और शंका को अपने हृदय में स्थान देंगे, उतने ही आप विजय से-सफलता से दूर रहेंगे। चाहे हमारा पथ कितना ही कंटका-कीर्ण और अन्धकारमय क्यों न हो, पर हमें चाहिये कि हम कभी अपने आत्म-विश्वास को मानसिक, धैर्य को तिलाँजलि न दें।

हमारी शंकाएँ और भय जैसे दूसरों के विश्वास को नष्ट करते हैं वैसे कोई अन्य पदार्थ नहीं। बहुत से मनुष्यों की असफलता का कारण यह है कि वे अपने निराशाजनित भाव को ही प्रोत्साहन देते रहते हैं और अपने पास उठने बैठने वाले लोगों से ऐसी ही निराशा भय प्रेरणा किया करते हैं।

यदि तुम अपने को पतित समझोगे। यदि तुम समझोगे कि हम ना कुछ मनुष्य है-हमारा कोई महत्व नहीं तो दुनिया तुम्हें ऐसा ही समझेगी। वह तुम्हारा कोई महत्व नहीं समझेगी। वह तुम्हारी आवाज की कुछ कीमत न गिनेगी।

मैंने कोई ऐसा आदमी नहीं देखा जिसने अपने आप को तुच्छ, हीन और बेकाम समझते हुए कोई महान कार्य किया हो। जिस योग्यता का हम अपने आपको समझेंगे, उतना ही महत्वपूर्ण काम कर सकेंगे। यदि आप बड़े पदार्थों की आशा करते हैं-उनकी माँग करते हैं और अपने मनोभाव को विशाल बनाए हुए हैं तो आपको बड़ी ही ऊँचे दर्जे की सफलता प्राप्त होगी।

जैसे तुम अपने आपको गिनोगे, जैसे तुम्हें अपनी योग्यता पर विश्वास होगा, जैसे तुम्हें अपनी उन्नति का महत्व मालूम हो रहा होगा-तुम संसार के लिए अपने आपको जैसे उपयोगी और वजनदार गिनोगे, वैसा ही भाव तुम्हारे चेहरे पर और तुम्हारे आचार विचार पर दीखने लगेगा।

यदि तुम अपने आपको मामूली आदमी मानोगे तो तुम्हारे चेहरे पर भी ऐसा ही भाव दीखने लगेगा। यदि तुम अपने आप सम्मान न करोगे तो तुम्हारा चेहरा इस बात की गवाही दे देगा। यदि तुम अपने आपको गरीब और कुछ नहीं समझोगे तो खूब समझ लो तुम्हारे चेहरे पर कभी भी भाग्यवानी की प्रभा न चमकेगी। गरीबी की ही झलक उस पर झलका करेगी। जो कुछ गुण तुम अपने आप में प्रकट करते हो उनका अंश उस प्रभाव में भी रहता है जो तुम दूसरों पर डालते हो।

जिन गुणों को आप प्राप्त करना चाहते हो उन्हीं गुणों को यदि आप अपने मानसिक भवन में पैदा करते रहोगे तो धीरे-धीरे ये गुण आपके होने लगेंगे और इन का प्रकाश आपके चेहरे पर भी चमकने लगेगा। यदि आप चाहते हैं कि हमारे मुख मण्डल पर दिव्यता का भाव झलके तो पहले आप अपने हृदय में वैसे भावों को उत्पन्न कीजिये यदि आप चाहते हैं कि हमारे मुख मण्डल और आचार-व्यवहार में उच्चता का भाव झलके तो इसके लिये आवश्यक है कि आप अपने विचारों में उच्चता लावें।

हमारे कार्य की नींव हमारे आत्म विश्वास पर लगी हुई है। हम कार्य करते है इस विचार में बड़ी अद्भुत शक्ति भरी हुई है। जिस मनुष्य में पूरा आत्मविश्वास है वह इस तरह की गड़बड़ी में नहीं पड़ता कि मैं ठीक पथ पर हूँ कि नहीं, मुझ में कार्य सम्पादन की योग्यता है कि नहीं। उसे अपने भविष्य के लिए किसी प्रकार की चिन्ता नहीं उठती।


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