बुज़दिली से हिंसा अच्छी

December 1946

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(महात्मा गाँधी)

मैं यह विश्वास जरूर रखता हूँ कि अगर सिर्फ बुज़दिली और हिंसा में से ही चुनाव करना करना हो तो मैं हिंसा को ही चुनने की सलाह दूँगा। मैं यह पसन्द करूंगा कि हिन्दुस्तान अपनी इज्जत बचाने के लिये हथियारों की मदद ले बनिस्बत इसके कि वह कायरों की तरह खुद अपनी बेइज्जती का असहाय शिकार हो जाय या बना रहे। लेकिन मेरा विश्वास है कि अहिंसा हिंसा से कहीं ऊँची है, सजा की बनिस्बत माफी देना कहीं ज्यादा बहादुरी का काम है। ‘क्षमा वीरस्य भूषणम’। क्षमा से वीर की शोभा बढ़ती है। लेकिन सजा न देना उसी हालत में क्षमा होती हैं जब सजा देने की ताकत हो। किसी असहाय व्यक्ति का यह कहना कि मैंने अपने से बलवान को क्षमा किया कोई मानी नहीं रखता। जब एक चूहा बिल्ली को अपने शरीर के टुकड़े करने देता है तब वह बिल्ली को क्षमा नहीं करता। कोई यह न समझे कि मैं हवाई और खयाली आदमी हूँ। मैं तो असली आदर्श वादी होने का दावा करता हूँ अहिंसा धर्म महज ऋषि और महात्माओं के लिए ही नहीं है वह तो आम लोगों के लिये भी है जैसे पशुओं की आत्मा सोती पड़ी रहती है और वह शारीरिक बल के अलावा और कानून को जानती ही नहीं। इन्सान का गौरव चाहता है कि वह ज्यादा ऊंचे कानून की ताकत आत्मा की ताकत के सामने सिर झुकाये।

इसीलिये मैंने हिन्दुस्तान के सामने आत्म त्याग का, अपनी कुरबानी का, पुराना नियम पेश करने की जरूरत की है। जिन ऋषियों ने हिंसा में से अहिंसा का नियम ढूँढ़ निकाला वे न्यूटन से ज्यादा प्रतिभाशाली थे वे खुद बहुत बड़े योद्धा थे। वे हथियार चलाना जानते थे लेकिन अपने अनुभव से उन्होंने उन्हें बेकार पाया और थकी हुई दुनिया को यह सिखाया कि उसका छुटकारा हिंसा के जरिये नहीं होगा बल्कि अहिंसा के जरिये होगा।

अपनी सक्रिय दशा में अहिंसा के मानी हैं जानबूझ कर तकलीफें उठाना उसके मानी यह नहीं हैं कि आप बुरा करने वाले की ख्वाहिश के सामने चुपचाप अपना सिर झुका दें, बल्कि उसके मानी यह है कि हम जालिम की ख्वाहिश के खिलाफ अपनी पूरी आत्मा को भिड़ा दें। अपनी हस्ती के इस कानून के मुताबिक काम करते हुए, महज एक शख्स के लिए भी यह मुमकिन है कि वह अपनी इज्जत अपने मजहब और अपनी आत्मा को बचाने के लिए, किसी अन्यायी साम्राज्य के पुनरुद्धार या पतन की नींव डाल दें।

और इसीलिए मैं हिन्दुस्तान से अहिंसा का रास्ता अख़्तियार करने के लिये इसलिये नहीं कहता कि वह कमजोर है। मैं चाहता हूँ कि वह अपनी ताकत और अपने बल भरोसे को जानते हुए अहिंसा पर अमल करे। मैं चाहता हूँ कि हिन्दुस्तान यह पहचान ले कि उसमें एक आत्मा है जिसका नाश नहीं हो सकता और वह तमाम शारीरिक कमजोरियों पर फतह पा सकती हैं तमाम दुनिया के शारीरिक बलों का मुकाबला कर सकती है।


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