पाप से घृणा करो, असंयम से द्वेष करो, दुष्ट आचरणों से बैर करो, कुविचारों का अपमान करो और अन्याय से लड़ पड़ो। जिनमें यह दोष हों उनसे अलग रहो, किसी भी व्यक्ति से दुर्भाव न रखो।
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दूसरों की अवनति करके, दूसरों की बुराई करके आप अपनी उन्नति या भलाई करने में समर्थ नहीं हो सकते। आपकी उन्नति उन्हीं कार्यों द्वारा होनी सम्भव है, जिनमें दूसरों की भी उन्नति होती है।