किसी के धन का लोभ न करना। जिस घड़ी तुम इस उपदेश को आचरण में लाते हो, उसी घड़ी से तुम जगत के ज्ञानवान नागरिक बन जाते हैं और प्राणी मात्र के साथ मैत्री कर लेते हो। मनुष्य ईश्वर और उसके अद्वितीय अविचल सम्राट पद को नहीं मानता, उसकी आकाँक्षा भी तृप्त हो ही नहीं सकती।
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लोभ और दंभ ईश्वर द्वारा शापित है ही, सभी के लिए दुर्गुण हैं, पर धर्माचार्य के तो वे निकृष्ट गुण हैं।