उषःपान और नासिका-पान

November 1944

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(विद्यार्थी रामस्वरूप “अभर” साहित्य-रत्न, तालबेहट)

मेरा निजी अनुभव है क्योंकि मैं लगभग पाँच-सात साल से उषःपान और दो साल से नासिका के द्वारा जलपान किया करता हूँ। उषःपान में प्रातः सात खोबा जल और नासिका-पान में तीन खोबा जल पी लेता हूँ। इस थोड़े से ही समय में मुझे पर्याप्त लाभ हुए हैं। जब से मैंने उषःपान प्रारम्भ किया आज तक कभी उदर की व्याधि नहीं हुई, चाहे जब अंटशंट खाने पर भी कब्ज की शिकायत नहीं हुई। नासिका पान के दिन से मैंने सिर दर्द और दिमागी बेचैनी को तिलाँजलि दे दी है, मेरी आँखों में आज तक कोई रोग नहीं हुआ और जुकाम किस चिड़िया का नाम है, यह भी नहीं जान पाया। ऋषियों के बतलाये हुए प्राकृतिक नियमों के पालन से मेरा ही नहीं बड़े-बड़े महापुरुषों का अनुभव है कि स्वास्थ्य बेदामों खरीदा जा सकता है जो स्थायी और सुखकर है। बाजारू दवाइयाँ खाने वाले सज्जनों को इन दोनों या दो में से किसी एक नियम का पालन कर लाभ उठाना चाहिए। प्रारम्भ में कुछ अड़चनें पड़ें तो धैर्य से काम ले अभ्यास करना चाहिए। नासिका से जल खींचने में छः दिन अवश्य कष्ट होता है जिससे पानी सीधा मस्तिष्क में चला जाता है किन्तु कुछ समय के बाद जिस प्रकार मुख से पानी पिया जाता है पीने लगते हैं। इससे स्मरण शक्ति तो अवश्य ही ठीक हो जाती है। सिर के सफेद बाल धीरे-धीरे काले होने लगते हैं। मुँह की झुर्रियाँ मिटकर चेहरा चमकने लगता है। वीर्य शुद्ध होकर पुरुषार्थ प्राप्ति होता है।

लिखने से कहीं अतिश्योक्ति का अन्दाज न कर अनुरोध है कि आज से ही स्वच्छ-साफ पानी पीना प्रारम्भ कर दीजिये।


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