कुछ लोग ऐसा समझ बैठे हैं कि रामधुनि लगाने या नाम कीर्तन करने मात्र से हम तर जायेंगे। भगवान हमारे नृत्य गान तथा वाद्य से मोहित होकर स्वर्ग का दरवाजा हमारे लिए खोल देंगे। यह विचार आलसी और निकम्मे लोगों की कल्पना मात्र है किसी आर्ष ग्रन्थ में इस कल्पना का समर्थन नहीं किया गया। हिन्दू धर्म पुरुषार्थ और कर्म प्रधान धर्म है। इसके धर्मग्रन्थों में पुरुषार्थ और सत्कर्म का ही सर्वत्र विधान है और श्रेष्ठ आचरणों से ही परमात्मा का प्रसन्न होना तथा स्वर्ग मुक्ति का प्राप्त होना बताया गया है।
शास्त्र का मत है कि -
अपहाय निजं कर्म कृष्ण कृष्णेति वादिनः।
ते हरेर्द्वेषिणाः पापाः धर्मार्थं जन्म यद्हरेः॥
अर्थात्- जो अपने धर्म को छोड़कर केवल कृष्णा-कृष्णा कहते रहते हैं वे भगवान के शत्रु है। भगवान तो धर्म की स्थापना के लिए अवतार लेते हैं। धर्म आचरण ही उनको प्रिय है। इसी परम प्रिय कार्य के लिए वे स्वयं जन्म धरते हैं और इसी कार्य को करने वालों से वे प्रसन्न होते हैं। केवल मात्र कृष्णा-कृष्णा कहते रहते और आचरणों को गन्दा रखने से भगवान कदापि प्रसन्न नहीं होते वरन् उल्टे अप्रसन्न होते हैं। क्योंकि कानून को जानने वाला, सरकारी कामों को करने वाला मनुष्य ही जब कानून तोड़ता है तो अज्ञानी या दूर रहने वाले मनुष्य की अपेक्षा कृत कड़ी सजा मिलती है।
भक्तों को चाहिए कि भगवान के नाम जप के साथ-साथ अपने कर्त्तव्य धर्म का पूरी सावधानी के साथ पालन करें तभी उन्हें इच्छित लाभ प्राप्त हो सकेगा।