मैस्मरेजम का तत्व ज्ञान

January 1944

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मैस्मरेजम विद्या के अनुसार जो शक्ति उत्पन्न होती है उसके तीन स्रोत हैं (1) इच्छा (Will) (2) आदेश (Suggestion) (3) मार्जन (Passes) इन तीन साधनों द्वारा शक्ति का उत्पादन और प्रयोग करके प्रयोक्ता लोग आश्चर्यजनक कार्यों का सम्पादन करते हैं। अब हम इन तीनों तथ्यों पर कुछ प्रकाश डालते हैं।

(1) इच्छा-शक्ति- ईश्वर ने इच्छा की कि मैं एक से अनेक हो जाऊँ” फलस्वरूप इस सारे जगत की रचना हो गई। इच्छा के कारण ही मनुष्य स्वर्ग-नरक, बंध-मोक्ष, जन्म मरण के चक्र में घूमता है। संसार की सारी हलचल संकल्प के आधार पर है। जहाँ कहीं जो कुछ कार्य हो रहा है इच्छा के कारण ही हो रहा है। चैतन्य प्राणियों की चेतना इच्छा से परिपूर्ण है, कुछ न कुछ इच्छा उन्हें बनी ही रहती है, और उसी की प्रेरणा से शारीरिक एवं मानसिक यंत्र चलते रहते हैं। इच्छा और चेतना दो ऐसे तत्व हैं जिनको एक दूसरे के पृथक नहीं किया जा सकता। निखिल विश्व ब्रह्माण्ड में जो चेतना काम कर रही है वह संकल्पमय है। संकल्प के शान्त होते ही चेतना भी समाप्त हो जाती है।

वैज्ञानिक टी.डी. ब्रेनो ने सिद्ध किया है कि जड़ प्रकृति का एक सूक्ष्म परमाणु-इलेक्ट्रॉन-इतनी शक्ति रखता है कि उसके विस्फोट से लन्दन जैसा महानगर, क्षणभर में भस्मसात् हो सकता है। जड़ प्रकृति के परमाणुओं की इतनी महान शक्ति कूती गई है। परन्तु चैतन्य जगत् के एक परमाणु का जब अन्वेषण किया जाएगा तब पता चलेगा कि उसके अंतर्गत जड़ परमाणुओं की अपेक्षा सहस्रों गुनी शक्ति छिपी पड़ी है। जड़ पदार्थों पर पूरा पूरा शासन चैतन्य का है। जो चैतन्य है वह अपनी क्षमता के कारण जड़ पदार्थों का मनमाना उपयोग करता है। इससे प्रकट है कि चैतन्य में जड़ की अपेक्षा कहीं अधिक और उच्चकोटि की शक्ति है।

मनुष्य चैतन्य प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है। उसमें अन्य जीवधारियों की भाँति साधारण चेतना तो है ही साथ ही विकास के उच्च शिखर पर पहुँची हुई आत्मिक चेतना भी है। इस चेतना में अकूत ताकत है। विकासवाद के आचार्य डार्विन महोदय ने प्रमाणों सहित साबित किया है कि मक्का की भुट्टियों ने अपनी रक्षा के कारण अपने ऊपर परतदार खोल उत्पन्न किया। माँसाहारी चिड़ियों की पहचान में न आने की इच्छा से तितली ने अपना रंग फूलों जैसा बनाया। पेड़ों के नीचे खड़े होने पर धूप छाया से दीखें और पहचाने न जा सकें इस इच्छा के कारण कितने ही जीवों ने अपने शरीर चितकबरे बना लिये, कुछ घास में छिपने वाले घास के रंग के हो गये। इन सब बातों से पता चलता हैं कि इच्छा के कारण छोटे दर्जे के जीव बड़े बड़े परिवर्तन करने में सफल हुए हैं। फिर मनुष्य का तो कहना ही क्या? उसकी इच्छा शक्ति ने निर्जन, सुनसान, ऊबड़ खाबड़, जमीन को कैसी रंगभूमि बना दिया है, तरह तरह के अद्भुत आविष्कारों और कला कौशलों से पृथ्वी को कैसा चित्र सा बना दिया है। किसी उजाड़ नक्षत्र का इस सरसब्ज पृथ्वी से यदि कोई मुकाबला कर सके तो वह समझेगा कि मनुष्य के संकल्प में कितनी रचना शक्ति है। जितनी अब तक प्रकट हुई उसने अनेकों गुनी अभी अप्रकट पड़ी हुई है।

निस्संदेह संकल्प की शक्ति महान है। यों कहना चाहिए कि वह सर्वोपरि है। इच्छा के बल से जीव महानतम कार्य कर सकता है। मैस्मरेजम जैसी साधारण योग्यता का उसके द्वारा प्राप्त कर लेना बिलकुल ही साधारण और सरल है। ‘चाहना’ और ‘इच्छा करना’ दो पृथक बातें हैं। केवल चाहना ‘शेख चिल्ली की से कल्पनाएं करना’ कुछ विशेष महत्व की बात नहीं है इससे शक्ति उत्पन्न नहीं होती किन्तु ऐसी इच्छा जिसके पीछे एकाग्रता, गम्भीरता, दृढ़ता, तत्परता, तीव्रता और प्रयत्नशीलता भी हो अवश्य ही फलवती होती है उसके असफल होने की संभावना नहीं रहती।

श्रीमती ओ. हष्णुहारा ने मानसिक शक्तियों की विवेचना करते हुए सिद्ध किया है कि मस्तिष्क में तीव्र इच्छा के साथ जो भावना की जाती है उससे बड़ी शक्तिशाली विद्युत लहरें उत्पन्न होती हैं यह लहरें ईथर तत्व में दौड़ पड़ती हैं और चाही हुई बात को पूरा करने के लिए परिस्थितियाँ जुटाने में लग जाती हैं। उनका यह भी मत है कि जिस वस्तु या कार्य के लिए तीव्र इच्छा की जाती है वे विद्युत लहरें नियत स्थान पर पहुँच कर अनुकूलता पैदा करने लगती हैं। मनोविज्ञान के सिद्धान्तानुसार तीव्र इच्छा में दूसरों को प्रभावित करने की पर्याप्त शक्ति है। श्रद्धा और विश्वास को तुलसीदास जी ने भवानी और शंकर की उपमा दी है। भगवान उमाशंकर सर्व शक्तिवान हैं, श्रद्धा और विश्वास की प्रचण्ड सत्ता से कौन इनकार कर सकता है।

अखण्ड ज्योति के पाठकों में एक भी ऐसा न होगा जो संकल्प की शक्ति से अपरिचित हो। भावना से भगवान प्रकट होते हैं, फिर मैस्मरेजम की योग्यता प्रकट होने में तो संदेह ही क्या है। आतिशी शीशे द्वारा जब थोड़ी सी परिधि की सूर्य किरणें एक स्थान पर एकत्रित कर दी जाती हैं तो अग्नि उत्पन्न हो जाती है। सारे शरीर में व्याप्त शक्तियों को एक स्थान पर एकत्रित करके यदि किसी जगह उसे फेंका जाए तो उसका प्रहार और प्रभाव असाधारण होगा। मैस्मरेजम के प्रयोक्ता अपनी मानसिक शक्तियों को तीव्र इच्छा के द्वारा एकीकरण करके किसी व्यक्ति पर फेंकते हैं, यह प्रहार व्यर्थ नहीं जाता वरन् सनसनीखेज असर दिखाता है। इसी असर को लोग “मैस्मरेजम का चमत्कार” कहकर पुकारा करते हैं।

(2) आदेश- मनुष्य स्वतः गीली मिट्टी के समान है। उसे चाहे जैसा ढाला जा सकता है। छोटा बच्चा जिन लोगों के द्वारा पाला पोसा जाता है उन्हीं की भाषा सीखता है। वैसे ही आचरण, विचार, व्यवहार ग्रहण करता है। मेहतर का लड़का गंदगी से घृणा नहीं करता पर उच्च वर्ण का बालक वैसे स्वभाव का न होगा। यह अन्तर क्यों है? इसको खोज करने पर पता चलता है कि मेहतर के बालक के ऊपर जिन लोगों का प्रभाव पड़ा है वे गंदगी से घृणा नहीं करते इसलिए उसने अपने पथ प्रदर्शकों का प्रभाव ग्रहण किया। इसी प्रकार उच्चवर्ण के बालक ने भी अपने अभिभावकों का प्रभाव ग्रहण करके तदनुसार आचरण करना सीखा।

गीली मिट्टी को जैसे साँचे में ढाला जाता है वैसा ही बर्तन या खिलौना बनकर तैयार हो जाता है। मनुष्य का निर्माण, आदेशों (Suggestion) के साँचे में होता है। जो जैसे वातावरण, विचार और परिस्थितियों में बढ़ा है वह उसी प्रकार का ढल जाएगा। अफ्रीका में एक बार एक भेड़िया दो मनुष्य बालकों को उठा ले गया। कुछ ऐसी अद्भुत बात हुई कि उसने उन बालकों को खाया नहीं वरन् पाल लिया। बहुत दिन बाद शिकारियों का एक दल उधर से निकला तो उन्हें बड़ा आश्चर्य हुआ कि मनुष्य बालक भेड़ियों के साथ रहते हैं, वैसे ही चार पैर से चलते हैं, उसी तरह गुर्राते हैं, शिकार पकड़ते हैं और कच्चा माँस खाते हैं। इन बालकों को पकड़ कर मानव तत्व की खोज करने वालों की अन्वेषणशाला में भेज दिया गया।

वैज्ञानिकों की एक प्रसिद्ध सभा अब इस निष्कर्ष पर पहुँच गई है कि “मनुष्य स्वयं एक कोरे कागज की तरह होता है उस पर जैसा कुछ अंकन होता है वैसा ही वह बन जाता है।” अब वे लोग कई बालकों को अलग अलग एकान्त कमरों में रखकर परीक्षण कर रहे हैं। इनका पालन पोषण करने के लिए सुविज्ञ वैज्ञानिक नियुक्त हैं। इनके अतिरिक्त और कोई उन बालकों के पास नहीं जा सकता। इस प्रयोग द्वारा उन बालकों को वर्तमान मनुष्यों से सर्वथा भिन्न विचार, विश्वास, शक्ति और संभावनाओं वाला बनाया जा रहा है। इसमें सफल होने की वैज्ञानिकों को पूरी आशा है।

‘संगति का प्रभाव’ इस सत्य को सब कोई स्वीकार करते हैं। उसी संगति का असर पड़ता है जिसका कि प्रभाव मनुष्य ग्रहण करे। यदि प्रभाव ग्रहण न करे तो महात्मा गान्धी जैसे महापुरुष के साथ रहकर भी दुष्टात्मा लोग पहले जैसे दुष्ट ही बने रहते हैं। यदि प्रभाव ग्रहण करें तो दूरस्थ व्यक्ति का असर भी अपने में धारण कर सकता है। ‘एकलव्य भील’ ने दूरस्थ गुरु की मिट्टी की मूर्ति बनाकर उसी से बाण विद्या सीख ली थी। ‘संगति’ का तात्पर्य ‘पास रहना’ नहीं, वरन् ‘प्रभाव ग्रहण करना’ है। पास पास रहना तो संगति का एक छोटा सा साधन है। यह हो सकता है कि पास रहते हुए भी प्रभाव न हो और दूरस्थ व्यक्ति का असर पड़ जाए। कारण स्पष्ट है सच्चे अर्थों में ‘सत्संग‘ वही है जिसमें प्रभाव ग्रहण किया जाता है।

‘प्रभाव’ की शक्ति अद्भुत है। इसके द्वारा मनुष्य कुछ का कुछ बन जाता है। मैस्मरेजम विद्या में ‘इच्छा शक्ति के उपरान्त ‘प्रभाव शक्ति’ का स्थान है। इसे ही आदेश या सजेशन कहते हैं। प्रभाव डालने में विचार प्रकाशन मुख्य है। बिना मुँह से बोले आचरण दिखाकर भी प्रभाव डाला जाता है और वाणी से विचारों का प्रकाशन करके भी। आचरण का प्रभाव गहरा पड़ता है क्योंकि फिर उसमें कुछ संदेह नहीं रहता, वाणी में संदेह की गुंजाइश रहती है। इसलिए केवल विचार प्रकाशन से मैस्मरेजम करने वालों का काम नहीं चलता। उन्हें दूसरों को प्रभावित करने के लिए वाणी और आचरण दोनों की सहायता लेनी पड़ती है।

तर्क संदेह या अविश्वास यदि मन में काम कर रहें हों तो दूसरे का फेंका हुआ प्रभाव प्रायः निरर्थक चला जाता है। अखिल ईथर तत्व में रेडियो की वाणी गूँजती रहती है पर सुनाई सिर्फ वही पड़ती हैं जहाँ रेडियो यंत्र लगा हो। इसी प्रकार एक व्यक्ति का प्रभाव सदा एक सा होते हुए भी उसे ग्रहण वही करते हैं जिनका मन उसे ग्रहण करने के अनुकूल है। अविश्वास तर्क, संदेह के स्थान पर श्रद्धा विश्वास या स्वीकारोक्ति मौजूद हैं।

मैस्मरेजम करने वाले जानते हैं कि वाह्य मन (ह्रड्ढद्भद्गष्ह्लद्बक्द्ग रुद्बठ्ठस्र) में तर्क और संदेह की शक्ति है और अंतर्मन (स्ह्वड्ढद्भद्गष्ह्लद्बक्द्ग) में श्रद्धा तथा विश्वास का निवास है इसलिए वे अपना प्रभाव डालने के लिए एक अद्भुत उपाय काम में लाते हैं वे एक विशेष आध्यात्मिक क्रिया द्वारा बाह्य मन को निद्रा ग्रस्त कर देते हैं जिससे तर्क और संदेह की शक्ति शिथिल हो जाए। दरवाजा खुल जाने पर घर में भीतर घुस जाना आसान है इसी प्रकार तर्क, संदेह और विवेचना के सो जाने पर अंतर्मन के ऊपर सुगमतापूर्वक प्रभाव स्थापित किया जा सकता है। साधारण जीवन में तर्क और संदेह की चलनी में भले बुरे प्रभावों को छानता रहता है विवेचना की कसौटी पर उन्हें कसता रहता है तब फिर जो उपयोगी और ठीक जंचते हैं उन्हें स्वीकार करता है और अरुचि कर प्रभावों को अस्वीकार करके बाहर हटा देता है किन्तु मैस्मरेजम क्रिया द्वारा तार्किक मन के निद्रित हो जाने पर फिर यह बात नहीं रहती। प्रयोक्ता अपने प्रभाव को सीधा अन्तः मन पर स्थापित कर देता है। यह बात प्रत्यक्ष है कि अंतर्मन के विश्वासों के आधार पर शारीरिक एवं मस्तिष्कीय क्रियाएं चलती हैं। मैस्मरेजम द्वारा निद्रित मनुष्य की सारी क्रियाएं भी उसी प्रभाव के द्वारा होने लगती हैं जो उस पर डाला गया है। जब तक मैस्मरिक निद्रा है तब तक तो वह प्रभाव पूर्ण रूप से रहता ही है। बाद में भी जग जाने पर भी वह संस्कार बीज रूप से मन पर बने रहते हैं। इस विज्ञान के अनुसार ही आदेश शक्ति का प्रयोग किया जाता है। वाणी द्वारा सूचनाएं-आज्ञाएं-देकर, दूसरे व्यक्ति से इच्छित कार्य कराया जाता है। यही ‘आदेश’ मैस्मरेजम विज्ञान का दूसरा तथ्य है।

(3) मार्जन - अनेक वैज्ञानिक परीक्षणों के उपरान्त यह सिद्ध हो चुका है कि मानव शरीर में एक विद्युत प्रवाह निरंतर जारी रहता है। कोई इसे ओड (ह्रष्ठ) कोई ‘औरा’ (ह्रह्रक्र्न) कहते है। भारतीय शास्त्रों में इसे ‘ओज’ कहा गया है। डॉक्टर मेस्मेर ने इसे ‘एनेमल मैगनेटिज्म’ नाम दिया है। विशेष यंत्रों की सहायता से मनुष्य शरीर के चारों और करीब 6 इंच तक एक प्रकाश दिखाई पड़ता है इसे अंग्रेजी भाषा में ‘औरा’ कहा जाता है। देवी देवताओं की तस्वीरों में उनके मुखमण्डल के आस पास सूर्य जैसा तेज मंडल दिखाया जाता है। इससे प्रतीत होता है कि भारतीय वैज्ञानिक बहुत प्राचीन काल से इस विद्युत तेज के संबंध में जानकारी रखते रहें हैं। शरीर के अन्य अंगों की अपेक्षा चेहरे पर यह तेज अधिक मात्रा में होता है और अधिक दूरी तक फैला रहता है।

डॉक्टर मैस्मर ने इस दिशा में एक और खोज की। इन्होंने साबित किया कि यह तेज हाथों की उंगलियों के छोरों में भी काफी रहता है। पहले एक प्रसिद्ध नक्षद्ध नक्षत्र विद्या के विज्ञ पुरुष मि. जेसवीट फादर, लोह चुम्बक की सहायता से कठिन रोगों की चिकित्सा करते थे। डॉक्टर मेस्मर उनसे मिले और प्रमाणित किया कि इस चिकित्सा पद्धति में लोह चुम्बक का कुछ महत्व नहीं, हाथों की उंगलियों से जो मानवीय विद्युत का प्रवाह निकलता है उसी के प्रभाव से बीमारियाँ अच्छी होती। विशेष कैमरों द्वारा फोटो लेकर भी यह देखा गया कि उंगलियों के आस पास ‘औरा’ बहुत दूर तथा घना और पर्याप्त मात्रा में फैला रहता है। लोहे की सुई उंगलियों से नहीं चिपकती तो भी उंगलियों में लोह चुम्बक के गुण ‘पर्याप्त मात्रा में मौजूद रहते हैं।

बिजली स्वभावतः हलचल उत्पन्न करने वाली, प्रभाव डालने वाली शक्ति है। मनुष्य के शरीर की बिजली का किस प्रकार चमत्कारिक प्रभाव होता है इसका सविस्तार वर्णन हम अपनी “मानवीय विद्युत से चमत्कार” और ‘परकाया प्रवेश’ पुस्तकों में कर चुके हैं उन बातों को यहाँ फिर से दुहराने की आवश्यकता नहीं। यहाँ तो हम संक्षेप में अपने पाठकों को यह बताना चाहते हैं कि इस बिजली की सहायता के कठिन रोगों की चिकित्सा हो सकती है। जिन्होंने हमारी ‘प्राण चिकित्सा विज्ञान’ पुस्तक पढ़ी है वे इस विधि को भली प्रकार जानते होंगे। मैस्मरेजम विद्या में उंगली के छोरों से मार्जन करने पास देने- का तीसरा विधान है। इस क्रिया द्वारा प्रयोग करने वाला अपने शरीर की बिजली को दूसरे के शरीर में प्रवेश कराता है। डॉक्टर द्वारा पेट में पहुँचाई गई औषधियाँ विभिन्न प्रभाव उत्पन्न करती हैं किसी से दस्त होते हैं, किसी से निद्रा आती है, किसी से खून साफ होता है किसी से कफ छँटता है। इसी प्रकार दूसरे के शरीर में डाला गया विद्युत प्रवाह भी इच्छित परिणाम उपस्थित करता है। किन्हीं मार्जनों (क्कड्डह्यह्यद्गह्य) से रोग अच्छे होते हैं। किन्हीं से निद्रा, किन्हीं से चैतन्यता, किन्हीं से मानसिक उथल पुथल किन्हीं से शारीरिक हलचल होती है। इन सब बारीकियों को मैस्मरेजम का प्रयोक्ता जानता है और अपनी विद्युत शक्ति का विधि व्यवस्था के अनुसार दूसरों पर प्रयोग करके इच्छित फल उत्पन्न करता है। मैस्मरेजम का तीसरा तथ्य यही है। मार्जन क्रियाओं का यह आधार है।

उपरोक्त पंक्तियों में मैस्मरेजम के तीन आधार भूत तथ्यों पर-इच्छा, आदेश, मार्जन पर-कुछ प्रकाश डाला गया है। इससे पाठकों को यह समझने में सरलता होगी कि मैस्मरेजम द्वारा दूसरों पर प्रभाव किस प्रकार डाला जाता है। भौतिक बिजली के ए.सी. करेंट और डी.सी. करेंट सिर्फ तांबे और जस्ते के दो तारों के मिलने से उत्पन्न होते हैं परन्तु आत्मिक बिजली में तीन तारों का समन्वय है। इच्छा, आदेश मार्जन यह तीनों तार महत्वपूर्ण विद्युत प्रवाहों से भरे हुए हैं जब ये एक स्थान पर एकत्रित होते हैं, आपस में एक दूसरे को छूते हैं तो तुरंत ही हलचल पैदा करने वाली बिजली उत्पन्न हो जाती है। इसके ‘निगेटिव’ और ‘पाजेटिव’ भागों का ठीक प्रकार विज्ञान सम्मत उपयोग करके चतुर मैस्मराइजर अपने करतब दिखाया करते हैं। संक्षेप में यही मैस्मरेजम का तत्व ज्ञान है।


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