निद्रित करने की कुछ विधियाँ

January 1944

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मैस्मरेजम का प्रयोग जिस व्यक्ति के ऊपर किया जाता उसे एक प्रकार की निद्रा आती है, इसे योग निद्रा या सम्मोहन तन्द्रा कह सकते हैं। रात को गहरी निद्रा में सुधि बुधि भूल कर सो जाते हैं उस तरह की निद्रा यह नहीं होती, इसमें शरीर जागता है या अर्द्ध जागृत अवस्था में रहता है। शारीरिक दृष्टि से यह अर्द्ध निद्रा है, नेत्र झपक जाते हैं, अंग शिथिल हो जाते हैं, देहाध्यास कम हो जाता है, फिर भी होश बना रहता है, चेतनता में कमी आ जाती है पर वह नष्ट नहीं होती। मन की दृष्टि से भी वह अर्द्ध निद्रा ही है बाह्य मन सो जाता है तर्क, सन्देह, छान बीन, परीक्षण की शक्ति चली जाती है पर विश्वास स्वीकृत के अवयव जागते रहते हैं। स्वप्न में अंतर्मन सो जाता है और बाह्यमन सैर करता रहता है, योग निद्रा में इस से उलटा होता है अर्थात् बाह्यमन सो जाता है और अंतर्मन जागता रहता है। इस प्रकार यह योग निद्रा शारीरिक और मानसिक दोनों दृष्टियों से आधी निद्रा है इसमें मनुष्य आधा सोता रहता है और आधा जागता रहता है।

जिस व्यक्ति के ऊपर प्रयोग करना हो उसे प्रयोग के लिए पहले रजामन्द कर लेना चाहिए। उसे बता देना चाहिए कि इससे उसे कुछ भी हानि या तकलीफ न होगी। वरन् मस्तिष्क का विकास होगा, अनेक मानसिक शक्तियाँ जग उठेंगी तथा जो शुभ संकल्प इस प्रयोग के द्वारा स्थापित किये जायेंगे वे उसके सद्गुणों की वृद्धि करेंगे और दुर्गुणों तथा मानसिक रोगों को हटा देंगे। फूलों के बगीचे के समीप रहने वाले को सुगन्ध का लाभ होता है इसी प्रकार योगाभ्यास जैसे परम पुनीत और उपयोगी तत्व के संपर्क में आने से कुछ न कुछ लाभ ही प्राप्त होगा। जो व्यक्ति रजामन्द हो उसी को निद्रित करना चाहिए, जोर जबरदस्ती या दबाव का परिणाम अच्छा नहीं होता।

निद्रित करने से पहले पात्र को शिथिल होने का आदेश करना चाहिए, हमारी “आसन और प्राणायाम” पुस्तक में शिथिलासन की विस्तृत विधि बताई गई है। संक्षेप में पात्र को यह बताना चाहिए कि वह किसी आराम कुर्सी या मुलायम मसनद का सहारा लेकर अपने शरीर को बिल्कुल निर्जीव की तरह ढीला छोड़ दे, ऐसा अनुभव करे कि शरीर के अंगों में से प्राण निकल गया है और वे बिल्कुल निर्जीव पड़े हुए हैं। मन को “अथाह नीले समुद्र में तैरने” का ध्यान करने पर लगा दे और शरीर को पूर्ण रूपेण शिथिल कर दे। पन्द्रह बीस मिनट नित्य अभ्यास किया जाए तो एक सप्ताह के अन्दर शिथिलासन में बहुत कुछ सफलता मिल जाती है। सबसे अच्छा तो यही है कि पात्र को एक सप्ताह शिथिलासन का अभ्यास कराया जाए तत्पश्चात् उसे निद्रित करने के लिए लिया जाए। यदि ऐसा संभव न हो तो एक दिन में कई बार शिथिलासन का अभ्यास करके फिर दूसरे दिन प्रयोग के लिए उसे लेना चाहिए। यदि यह भी संभव न हो तो प्रयोग से पहले दस पन्द्रह मिनट तक हर एक पात्र को शिथिलासन का अभ्यास करना चाहिए। इससे उसका चित्त शान्त और एकाग्र हो जाएगा ऐसी मनोदशा होने पर प्रयोग करना सरल हो जाता है।

प्रयोग के लिए पात्र को आराम कुर्सी पर मसनद के सहारे गद्दी पर बिठाना चाहिए। पीठ और सिर के पीछे कुछ सहारा होना जरूरी है जिससे तन्द्रा आने पर इधर उधर लुढ़क कर गिर जाने का अन्देशा न रहे। स्थान एकान्त, खुला हुआ, स्वच्छ और शोर गुल से रहित होना चाहिए। समय प्रातःकाल का सबसे अच्छा है पर आवश्यकता होने पर सन्ध्याकाल भी रखा जा सकता है। आमतौर से मैस्मरेजम प्रयोग के लिए कुर्सियाँ ही काम में लाई जाती हैं पात्र के लिए आराम कुर्सी और प्रयोक्ता के लिए हत्थेदार कुर्सी ठीक रहती है। यह लकड़ी की ही होनी चाहिए, धातु की बनी कुर्सियाँ त्याज्य हैं क्योंकि प्रयोग की विद्युत शक्ति का अधिकाँश भाग धातु में चला जाने के कारण इच्छित फल प्राप्त नहीं होता। पात्र का मुँह उत्तर या पूर्व की ओर रखना चाहिए प्रयोक्ता अपनी कुर्सी उसके सामने करीब एक हाथ फासले पर डालकर बैठे।

आरंभ में दोनों को अपना चित्त शान्त और एकाग्र करना चाहिए। प्रयोक्ता, पात्र के चेहरे पर एक गम्भीर दृष्टि डाले, तत्पश्चात् उसके बाँए नेत्र की पुतली पर अपनी दृष्टि जमावें। आरंभ में यह दृष्टिपात हलका होना चाहिए, फिर धीरे धीरे तीव्रता बढ़ाई जाए, जिस प्रकार काले रंग के गोले पर त्राटक किया जाता था उसी प्रकार पात्र के बाएं नेत्र की पुतली पर त्राटक करना चाहिए और सम्पूर्ण एकाग्रता एवं इच्छा शक्ति के साथ ऐसी भावना करनी चाहिए कि मेरी विद्युत शक्ति का प्रवाह बड़े जोरों से पात्र के नेत्र मार्ग से उसके मस्तिष्क में प्रवेश कर रहा है और वह बहुत शीघ्र निद्रित होने वाला है। यह प्रयोग करने से पाँच से लेकर पन्द्रह मिनट के अन्दर पात्र की आंखें झपकने लगती हैं, पलक भारी होने लगते हैं, और तन्द्रा जैसी खुमारी आने लगती है। पात्र को पहले से ही बात देना चाहिए कि जब पलक भारी होने लगे, खुमारी आने लगे तो वह बलपूर्वक जागने की कोशिश न करे वरन् ढीला होकर आराम से पड़ जाए।

इच्छा शक्ति और एकाग्रता द्वारा प्रयोक्ता की विद्युत शक्ति जब पात्र के शरीर में बलपूर्वक प्रवेश करती है तो उसे स्थान देने के लिए किसी दूसरी शक्ति को अपना स्थान खाली करना पड़ता है। पात्र का बाह्य मन अपने स्थान से हट जाता है इसलिए निद्रा आ जाती है। इस अवस्था में प्रयोक्ता की इच्छा शक्ति का पात्र के भीतरी मस्तिष्क पर कब्जा हो जाता है और वह उससे इच्छानुसार काम लेता है। मैस्मरेजम द्वारा सारे परिणाम इसी आधार पर उत्पन्न किये जाते हैं।

पात्र को निद्रित कर देने के उपरान्त उसके ऊपर ‘मार्जन’ और आदेश का प्रयोग करने के लिए अपनी कुर्सी को छोड़कर खड़ा हो जाना चाहिए। दोनों हाथों की उँगलियाँ सीधी पसार देनी चाहिए, उनमें कड़ाई रखने की जरूरत नहीं है, सीधे सादे ढंग से उन्हें आगे की ओर जरा झुका हुआ सा रखना चाहिए। यदि मानसिक दोषों को दूर करने के लिए प्रयोग किया गया है तो मस्तिष्क पर मार्जन होना चाहिए यदि सारे शरीर व्यापी दोष को दूर करना है तो सारे शरीर पर मार्जन करना होगा, यदि किसी स्थान विशेष की पीड़ा दूर करनी है तो उसी स्थान पर मार्जन करना ठीक है। दोनों हाथों की उंगलियाँ बराबर बराबर एक सीध में रखनी चाहिए और उन्हें पात्र के शरीर से आधे इंच के फासले पर रखते हुए आगे बढ़ाना चाहिए। किसी स्थान में भरा हुआ घी आदि गाढ़ा द्रव पदार्थ जिस प्रकार उंगलियों से खींचते हैं उसी प्रकार नियत अंग पर ऊपर से नीचे की ओर उंगलियों को ले जाना चाहिए और फिर उन्हें एक तरफ हलके से झटकार देना चाहिए इस प्रकार आवश्यकतानुसार दस से लेकर बीस तक ‘पास’ देने चाहिए। इस क्रिया को करते समय यह भावना करते जाना चाहिए कि दूषित तत्वों को अपनी आकर्षण शक्ति द्वारा खींच खींच बाहर फेंक रहा हूँ और इस स्थान को निर्दोष बना रहा हूँ।” ऐसी भावनाएं दृढ़ इच्छा शक्ति और श्रद्धा विश्वास के साथ की जानी चाहिए। और ध्यान पूर्वक पीड़ित स्थान को स्वस्थता की कामना से देखते जाना चाहिए मार्जन समाप्त करते हुए अन्त में हाथों को तीन बार जरा जोर से एक तरफ झटकार देना चाहिए। जिससे वे इथित तत्व अपने शरीर में चिपटे न रह जावें।

मार्जन करने से पात्र को अधिक शान्ति मिलती है जिससे वह कुछ और गहरी निद्रा में चला जाता है। अब आदेश की बारी आती है। निद्रित पात्र की पीठ पीछे खड़े होकर गंभीर, स्थिर, निश्चित, स्पष्ट और मध्यम स्वर में उसे निरोगता, स्वस्थता एवं उन्नति का अनुभव कराना चाहिए। दाहिना हाथ पीड़ित स्थान पर हलके से रख लेना चाहिए। नकारात्मक नहीं वरन् स्वीकारात्मक ही आदेश देना चाहिए। “तुम बीमार नहीं हो” यह कहने की अपेक्षा ‘तुम स्वस्थ हो’ कहना चाहिए। रोगी के लिए इस प्रकार आदेश दिया जा सकता है ‘तुम्हारी पीड़ा को नाश करती हुई स्वस्थता बढ़ रही है, विश्वास करो तुम्हें अवश्य आराम होगा, शीघ्र आराम होगा, स्वस्थता बढ़ रही है, अब तुम निरोग होकर रहोगे, निरोगता प्रतिक्षण बढ़ती चली जा रही है। मैं तुम्हारे रोग को निकाल रहा हूँ, खींच कर बाहर फेंक रहा हूँ, जब तुम जाओगे तो बहुत कुछ स्वस्थ होओगे।

अपनी प्राण शक्ति तुम्हारे शरीर में प्रवेश करके नवीन बल की, स्वस्थता की, ताजगी की दे रहा हूँ, इससे तुम अपने में चैतन्यता और शक्ति अनुभव करोगे।

बुद्धि बढ़ाने के लिए निद्रित पात्र के सिर पर रख कर इस प्रकार का आदेश दिया जा सकता है। “मैं अपने हाथ की उंगलियों में से तुम्हारे मस्तिष्क में बुद्धि शक्ति की लहरें डाल रहा हूँ। वे बुद्धि की लहरे तुम्हारे मस्तिष्क में जड़ जमा रही हैं। अब तुम्हारी बुद्धि में पर्याप्त उन्नति होगी, वह बराबर बढ़ती ही जाएगी, हर एक विषय को अब तुम बहुत अच्छी तरह समझ सकोगे और स्मरण रख सकोगे। अब से ही, इसी क्षण से ही तुम्हारी बुद्धिमत्ता बढ़ेगी और तुम भली प्रकार उसका अनुभव करोगे।

इस प्रकार के आदेश शारीरिक रोगों के लिए, मानसिक रोगों के लिए, चरित्र सम्बन्धी दोषों के लिए, बनाये जा सकते हैं सद्गुणों का बीजारोपण करने के लिए भी ऐसे ही आदेश बनाये जा सकते हैं। इनके रटने की आवश्यकता नहीं है, समयानुसार, परिस्थिति के अनुकूल आदेशों की रचना करने की योग्यता प्रयोग करने वाले में स्वयं होनी चाहिए।

आदेशों को कई बार दुहराना चाहिए। इसके पश्चात् प्रयोग समाप्त करके अलग हट जाना चाहिए। यदि पात्र गहरी नींद में हो तो उसे उसी दशा में सोते रहने देना चाहिए और थोड़ी थोड़ी देर बाद यह देखते रहना चाहिए कि निद्रा हलकी हुई है या नहीं, जब निद्रा टूटने के लक्षण दीखने लगे, अंगों में चैतन्यता और हलचल प्रतीत होने लगे तो मस्तिष्क से उदर तक चार पाँच ‘पास’ देकर हल्के संबोधन के साथ पात्र को जगा देना चाहिए।

निद्रित करने के उपरान्त पात्र से खेल तमाशे की, अव्यक्त बातों के संबंध में पूछ ताछ करने का, उसको किसी मार्ग पर ले जाने का या कुछ और काम कराना हो उसी भावना से आदेश और मार्जन करने चाहिए। जैसी इच्छा का प्रयोग किया जाएगा वैसा ही फल होगा।

निद्रित करने की कुछ और विधियाँ भी हैं जो यहाँ लिखी जाती हैं-

(1) दाहिने हाथ की तर्जनी उंगली पात्र की दोनों भवों के बीच-त्रिकुटी स्थान पर हलके से लगाओ और उससे “धीरे धीरे मुझे निद्रा घेरती आ रही है” इस संकल्प की भावना करने को कहो, थोड़ी देर में निद्रा आ जाएगी।

(2) बिल्लौरी काँच की चमकदार अँगूठी को प्रकाश के सम्मुख इस प्रकार रखो कि उसकी चमक पात्र के नेत्रों पर पड़े। इस अँगूठी के नग पर दृष्टि जमाने से निद्रा आ जाती है।

(3) अपने दोनों हाथों की मुट्ठियों में पात्र के दोनों हाथों के अँगूठे पकड़ लो। उसके अँगूठे की जड़ों में अपने अँगूठों का नख जरा सा घिसो और उससे चेहरे की तरफ निद्रित करने की इच्छा के साथ घूरते रहो निद्रा आ जाएगी।

(4) सादा चौकोर काँच लेकर उसकी पीठ पर काला पक्का रंग पोत दो और चौखटा लगा दो। यह “त्रिकालदर्शी दर्पण” हो गया, जिसकी लोग पाँच-पाँच रुपया कीमत वसूल करते हैं। इस काले दर्पण के बीचों बीच एक रुपये बराबर स्थान में गोलाकार तेल लगा दो। शीशे के सामने कुछ फासले पर दीपक इस प्रकार रखो कि तेल लगे हुए स्थान के बीचों बीच प्रकाश चमके। इस चमक पर पात्र को दृष्टि जमाने के लिए कहो। और निद्रा आने के आदेश करते रहो। थोड़ी देर में वह निद्रित हो जाएगा।


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