आत्म शक्ति की महानता

January 1944

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(ले. श्री लक्ष्मीनारायण गुप्त “कमलेश”)

निज आत्म-शक्ति महान है!

संसार के शुभ-क्षेत्र में बस आत्म-तेज प्रधान है!!

आत्म शक्ति-विकास से ही सृष्टि की है शृंखला,

और इसमें ही भरी है ‘मैस्मरेजम’ की-कला;

सब सफलता और साधन का यही आगार है,

भोग और अनेक-तत्वों का इसी में सार है;

अति सरल इससे समझना विश्व का विज्ञान है!

निज आत्म-शक्ति महान है !!

ऋषि-सिद्धि विभूति इसके हैं भरी भण्डार में,

मुक्ति माया सब इसी के लोटती है द्वार में;

कौन-सी है वस्तु जग की जो न इससे मिल सके,

कौन-सी है शक्ति ऐसी जो न इससे हिल सके;

जीवन इसी से पा रहा प्रति-पल परम-उत्थान है!

निज आत्म-शक्ति महान है!!


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