(ले. श्री लक्ष्मीनारायण गुप्त “कमलेश”)
निज आत्म-शक्ति महान है!
संसार के शुभ-क्षेत्र में बस आत्म-तेज प्रधान है!!
आत्म शक्ति-विकास से ही सृष्टि की है शृंखला,
और इसमें ही भरी है ‘मैस्मरेजम’ की-कला;
सब सफलता और साधन का यही आगार है,
भोग और अनेक-तत्वों का इसी में सार है;
अति सरल इससे समझना विश्व का विज्ञान है!
निज आत्म-शक्ति महान है !!
ऋषि-सिद्धि विभूति इसके हैं भरी भण्डार में,
मुक्ति माया सब इसी के लोटती है द्वार में;
कौन-सी है वस्तु जग की जो न इससे मिल सके,
कौन-सी है शक्ति ऐसी जो न इससे हिल सके;
जीवन इसी से पा रहा प्रति-पल परम-उत्थान है!
निज आत्म-शक्ति महान है!!