हिप्नोटिज्म के तीन खेल

January 1944

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विश्वास की शक्ति का उपयोग करते हुए मनोविज्ञान शास्त्र के आधार पर डॉक्टर मैस्पर के पश्चात अन्य लोगों ने कुछ खेल तमाशे आविष्कृत किये। जिनसे जनता में बड़ा कौतूहल हुआ। कुछ लोग तो इन्हें केवल खेल तमाशे ही समझते थे कुछ सीधे, साधे अल्पज्ञ अन्ध श्रद्धालु लोग इनको सत्य समझने लगे, कुछ लोगों ने इन शोधों को अपना धंधा बना लिया और उनके साथ विज्ञापनी तौर तरीके जोड़ कर एक खासा खेल खड़ा कर दिया। यह खेल तमाशे यद्यपि डॉक्टर मैस्पर के विज्ञान से कुछ भी सम्बन्ध नहीं रखते तो भी हमारे देश की जनता पूरी जानकारी न होने के कारण उन्हें मैस्मरेजम का ही भेद समझती है। यह खेल तमाशे हिप्नोटिज्म की मर्यादा के अंतर्गत आ सकते हैं।

मैस्मरेजम और हिप्नोटिज्म का अन्तर पाठकों को भली प्रकार समझ लेना चाहिए। मानवीय विद्युतशक्ति का दूसरे के ऊपर उपयोग कर के इच्छित फल उत्पन्न मैस्मरेजम है। हिप्नोटिज्म में इस शक्ति की कुछ भी आवश्यकता नहीं है। उसमें किसी प्रकार डाँट डपट से, धौंस से, बहकावा देकर, भूल में डाल कर, डरा कर, फुसला कर कुछ विश्वास उत्पन्न कराया जाता है। हिप्नोटिज्म करने वाला तरह तरह की तरकीबों से यह कोशिश करता है कि पात्र मेरी बात का पूरा भरोसा कर ले, गहरा विश्वास जमा ले। जितना ही विश्वास पक्का होगा उतना ही खेल अच्छा होगा। यदि विश्वास हलका रहा या न रहा तो खेल भी गड़बड़ हो जाता है। अब हम हिप्नोटिज्म के कुछ खेल नीचे देते हैं।

दृष्टि बन्ध (स्द्बद्दद्धह्लद्बह्यद्व)

किसी काली, गोल चमकदार चीज़ पर एकाग्रता पूर्वक दृष्टि जमाने से बाह्यमन शिथिल होने लगता है। इस सिद्धान्त के आधार पर दृष्टि बन्ध के खेल होते हैं।

दस से बारह वर्ष की आयु के बीच का एक लड़का चुनिए। सामने जो लड़के खड़े हों उन पर निगाह फेंक कर यह पहचानिए कि इनमें सीधा, दब्बू, डरपोक, लड़का कौन सा है, उसे ही तमाशे के लिए बाहर बुला लीजिए। चंचल, तार्किक, हेकड़ लड़के इस काम के लिए अच्छे साबित नहीं होते। लड़के की अपेक्षा लड़कियाँ और भी अच्छी रहती हैं।

बालक को आराम से कुर्सी, चौकी या आसन पर बिठा दीजिए। उसके दाहिने हाथ के अंग के नाखून पर बीचों बीच गोलाकार गीली स्याही लगा दीजिए। उस हाथ की मुट्ठी बंधवा कर स्याही लगे हुए अँगूठे को दोनों आँखों के बीच की सीध में एक बालिश्त फासले पर रखवाइए। और उस बालक से कहिए कि-अंगूठे पर लगी हुई काली स्याही के बीच में चमक है उस पर ध्यानपूर्वक दृष्टि जमाये रहो। अब तीन चार मिनट हो जाए तो कहिए कि-”इसके अन्दर तुम्हें एक बाग दिखाई पड़ेगा जब दिखाई पड़ने लगे तब हमें कह देना।” थोड़ी देर में बालक कहेगा-मुझे बाग दिखाई पड़ने लगा। फिर उससे कहिए ध्यान से देखते रहो-इस बगीचे में एक मैदान दिखाई देगा। थोड़ी देर में लड़का कहेगा मैदान भी दीखने लगा। अब लड़के से कहलवाइए कि-कहो-कि इस मैदान को साफ करने के लिए एक मेहतर आवे। लड़का आपकी बताई बात कहेगा और थोड़ी-देर में बतावेगा कि मेहतर आ गया, झाडू से मैदान साफ कर रहा है। उससे कहलवाइए-कहो-’एक भिश्ती पानी छिड़कने आवे। लड़का कहेगा और थोड़ी देर में बतावेगा कि भिश्ती आ गया, छिड़कवा कर एक आदमी बुला कर फर्श बिछवाइए, दरी, गलीचे, कालीन, कुर्सी, मेज जो चाहें तो मँगवाइए।

ढीले स्वभाव के लड़के कुछ देर दार करते हैं। जैसे भिश्ती के आने में देर दार हो लड़का कहे कि अभी नहीं आया तो जरा हलके से गंभीर स्वर में कहिए ध्यान से देखो किसी कोने की तरफ से आ रहा होगा। बालक कहने लगेगा, हाँ उधर से आता तो मालूम पड़ता है-आ रहा है-आ गया। इसी प्रकार अन्य वस्तुएं मँगाने के समय ढील ढाल हो तो ऐसे ही उससे कहिए देर दार में वह चीज आ जायेगी।

पूछने वाले किसी देवी देवता को-बालक से कहवा कर बुलवाते हैं। उनके लिए प्रणाम कहलवाते हैं और चोरी में गई वस्तु, भूत भविष्य की बात, गढ़ा धन, बीमारी, जन्म मृत्यु, भाग्योदय, हानि लाभ, तेजी, मन्दी, मुकदमा, भूत बाधा, पास फेल, विवाह शादी आदि की बातें लड़के द्वारा पुछवाते हैं। वे देवता बोर्ड पर लिख कर इशारे से या मुँह से बोलकर उन बातों का उत्तर देते हैं, मनोवांछा पूरी होने का उपाय बताते हैं, और कुछ शर्तों पर सहायता करने के लिए तैयार हो जाते हैं। अन्त में उन देवता को प्रणाम कर के विदा कर दिया जाता है और पूर्ववत् नौकर को बुला कर कुर्सी फर्श आदि उठवा दिये जाते हैं, तत्पश्चात् खेल खत्म हो जाता है। इस क्रिया को ‘हजारत’ के नाम से भी पुकारते हैं।

आप देवी देवता न बुलाना चाहें तो किसी महापुरुष को बुला सकते हैं और उनसे किन्हीं समस्याओं के बारे में पूछताछ कर सकते हैं। बराबर जवाब मिलेगा। अँगूठे पर स्याही लगाने की अपेक्षा “करामाती अँगूठी” या “त्रिकालदर्शी दर्पण” से भी काम लिया जा सकता है। यह दर्पण या अँगूठी बनाना बहुत आसान है। काले नग की अँगूठी ही ‘करामाती अँगूठी’ है और पीठ पर काला रंग पुता हुआ दर्पण ही ‘त्रिकालदर्शी दर्पण है। प्रयोग करते समय इन पर गोल घेरे में जरा सा तेल चुपड़ देना चाहिये जिससे चमक आ जावे।

इस करामात का रहस्य यह है कि चमकदार स्याही पर दृष्टि जमाने से बालक का बाह्य मन निद्रित हो जाता है देखने में जागता मालूम पड़ने पर भी उसकी मनोदशा तन्द्रा या अर्ध स्वप्न की सी हो जाती हैं। इस दशा में आप जो कुछ उसे आदेश करेंगे बिना तर्क के स्वीकार कर लेगा, आपका संकल्प उसके विश्वास में जम जायेगा और विश्वास के आधार पर स्याही में सब वस्तुएं वैसे ही दिखाई पड़ेंगी, जैसे झाड़ी का स्वरूप भूत जैसा बन जाता है। वास्तव में कोई भिस्ती, मेहतर या देवता वहाँ नहीं है, यह केवल मात्र बालक का जागृत स्वप्न है। प्रश्नों के जो उत्तर मिलते हैं वे बालक के अपने विचार हैं। यह स्वप्न हर किसी को नहीं दिखाये जा सकते आसानी से तो दब्बू और सीधे स्वभाव के बालक ही देख सकते हैं। स्त्रियों पर भी यह प्रयोग सफल हो जाते हैं। कभी-कभी कोई बड़ी उम्र के पुरुष भी यह सब देख लेते हैं।

प्रेत-विद्या (स्श्चद्बह्द्बह्लह्वड्डद्यद्बह्यद्व)

(1) एक हलकी तीन पाये की गोल मेज लीजिए। इसके पाये किनारों से लगे हुए न हों वरन् छः इंच अन्दर की तरफ हों यदि गोल न मिले तो साधारण हलकी मेज से भी काम लिया जा सकता है। उसके एक पाये के नीचे कंकड़ी लगा देनी चाहिए जिससे थोड़े संकेत से हिल डुल सके।

पायों का नीचे का सिरा गोल घुन्डीदार ठीक रहता है। मेज के चारों ओर एक एक हाथ के फासले पर कुर्सियाँ रख दी जावें, इन पर प्रेतों को आवाहन करने वाले बैठें और अपनी हथेलियाँ मेज के तख्ते से सटा लें। हाथ इस प्रकार सीध में रखे जावें कि गोल चक्र से मालूम पड़ें। इन बैठने वालों में से एक नेतृत्व करे। सब लोग दस मिनट तक शान्त चित्त होकर मेज के मध्य बिन्दु में एकाग्रता करते रहें और भावना करते रहें कि कोई या अमुक प्रेतात्मा इस मेज पर पधार कर हम लोगों से वार्तालाप करे।

इस स्थिति में कुछ देर रहने के उपरान्त मेज में एक कँपकँपी सी उत्पन्न होगी और एक पाया खटखट करने लगेगा। यह खट खट प्रेतात्मा के आगमन की सूचना समझी जायेगी। उसे प्रणाम करने के उपरान्त नेतृत्व करने वाला आत्मा से कुछ प्रश्न करे और स्वयं ही उन प्रश्नों के दो, तीन या चार पाँच उत्तर एक कागज पर लिख लें। फिर मेज के पायों के जितने खटके हों उसी नम्बर के उत्तर को प्रेतात्मा का उत्तर समझे। जैसे प्रश्न किया गया कि आई हुई प्रेतात्मा किस वर्ण की है? इसका उत्तर क्रमशः लिख लिया गया (1) ब्राह्मण (2) क्षत्रिय (3) वैश्य (4) शूद्र। यदि मेज के पाये एक बार खटके तो ब्राह्मण वर्ण की, दो बार खटके तो क्षत्रिय वर्ण की समझना चाहिए। इसी प्रकार अन्य प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं। एक बार खटकने को अ, दो बार खटकने को इ, तीन बार को उ, उस प्रकार वर्णमाला बनाकर भी उत्तर प्राप्त किये जा सकते हैं। जब प्रेतात्मा विदा होना चाहती है तो एक जोर से मेज हिला कर विदा हो जाती है। इस प्रकार प्रेतात्माओं से वार्तालाप हो जाता है।

(2) दूसरा तरीका प्लेनचिट (Planchet) का है। यह पान के आकार का लकड़ी का टुकड़ा है। इसमें पीछे की ओर सब तरफ घूमने वाले दो छोटे छोटे पहिये लगे रहते हैं। नोंक की ओर एक छेद होता है जिसमें पेन्सिल लगा दी जाती है। मेज या चौकी पर कोरा कागज रख कर उस पर इस प्लेनचिट यंत्र को रखते हैं। प्रयोग करने वाले दो आदमी अपनी उँगलियों के छोर उस पर रख कर बैठते हैं और एकाग्रता तथा ध्यान करते हैं। थोड़ी देर में हाथों में हरकत सी होती है और प्लेनचिट आगे चलने लगता है और पेन्सिल द्वारा प्रश्नों के उत्तर कागज पर लिखे जाते है।

(3) तीसरा तरीका-स्वयं लेखन-ऑटोमेटिक राइटंग का है। एक व्यक्ति अपने हाथ में पेन्सिल लेकर और मेज पर कागज रख कर बैठता है। अमुक या किसी भी प्रेतात्मा का ध्यान करता हुआ उसे आवाहन करता है। शरीर में रोमाँच होता है और हाथ में लगी हुई पेन्सिल द्वारा उत्तर लिखे जाने लगते हैं। स्वयं ही प्रश्न कर सकता है और कुछ देर ध्यान करके आवेश आने पर स्वयं ही उत्तर लिख सकता है। ऐसा भी हो सकता है। एक व्यक्ति प्रश्न पूछे और दूसरा आत्मा के आवेश में उत्तर लिखता रहे।

साधारणतः इन्हीं तीन तरीकों से प्रेतात्माओं का आवाहन किया जाता है। आत्माओं का खींचना, प्रत्यक्ष दर्शन करना, ट्रान्स द्वारा बोली सुनना, स्पर्श करना आदि अन्य पद्धतियाँ भी प्रचलित हुई हैं पर वे अपने देश में अभी उतनी प्रचलित नहीं हैं। उपरोक्त तीन तरीके ही यहाँ अधिक प्रचलित हैं। यह प्रेतात्मा वाद भी मैस्मरेजम के अंतर्गत शामिल समझा जाता है, इसलिए इस पर भी इन पंक्तियों में कुछ प्रकाश डालना पड़ा है।

सम्भव है कोई विशेष अनुभवी महानुभाव वास्तविक प्रेतों को बुलाने में समर्थ होते हों, पर आम तौर से ऐसा नहीं होता। अधिकाँश प्रयोगों में मानसिक आवेश ही काम करता है। ध्यान, एकाग्रता और विश्वासपूर्वक चिन्तन करने से एक आवेश पैदा हो जाता और इस मानसिक आवेश का प्रभाव शरीर पर भी पड़ता है तदनुसार मेज, प्लेनचिट तथा पेन्सिल की हरकतें होने लगती हैं। जो उत्तर प्राप्त होते हैं वे प्रयोग करने वालों के मस्तिष्क में उत्पन्न हुए होते हैं। जैसे ‘हाजरात’ में बालक को भंगी, भिस्ती, देवता दिखाई पड़ते हैं वैसे ही प्रेतात्माओं के आवेश में उत्तर लिखे जाते हैं। बाहरी रूपरेखा दो हैं पर सिद्धान्त एक ही है। प्रेतात्मा आवाहन विधि की कलई तब खुल जाती है भुलावे में डालने वाले, परीक्षा दृष्टि से प्रश्न पूछे जाते हैं। जिन्दे आदमियों की आत्माएं भी आती हैं, बिलकुल झूठे उत्तर देती हैं, जिन्हें देख कर यही मानना पड़ता है कि यह उत्तर प्रयोग करने वाले मस्तिष्क में उत्पन्न हुए हैं। श्री प्रियरत्न जी आर्य तो बिजली, वायु आदि जड़ तत्वों का आदेश कराने में सफल हुए हैं, उनके प्रयोगों में बिजली, वायु आदि के प्रयोग के उत्तर भी दिये हैं।

(3) सम्मोहन (Hypotism)

एक लाइन में कई सीधे स्वभाव के आदमी खड़े कर लीजिए। इनमें कौन व्यक्ति आपके तमाशे के लिये उपर्युक्त हो सकता है, इसका निर्णय इन विधियों से कीजिए।

(1) अपने अँगूठे पर स्याही लगा कर बारी बारी हर एक को दो-दो मिनट दिखाइये और कहिए इसमें एक सोने का मन्दिर जिसे दिखाई पड़े हमें बता दे। जो जो यह कहें कि हमें ‘सोने का मन्दिर’ दिखाई पड़ता है, समझिये कि यह प्रयोग के योग्य है।

(2) लाइन में खड़े हुए व्यक्तियों के सामने तीन फीट के फासले पर अपने हाथ का पंजा खोल दीजिए और कहिए मैं इस हाथ की आकर्षण शक्ति से आप में से कई लोगों के सिर नीचे झुक जावेंगे। ऐसा कहकर पंजे को इस प्रकार पीछे खींचिये मानों पंजे में पकड़ कर उन लोगों को खींच रहे हैं। इस प्रकार दस पाँच बार कीजिये, जिनके सिर झुक जावें उन्हें अपने प्रयोग के योग्य समझिये।

(3) साधारण पानी एक गिलास में लेकर उस पर तीन बार हाथ फिराइए और फिर उसमें से एक एक चम्मच सब को पीने के लिए दीजिए और कहिए यह अभिमंत्रित जल जिसको जरा मीठा मालूम पड़े वह बता दे इन लोगों में से जो कहें कि जल हमें मीठा लगा उन्हें प्रयोग के लिए ठीक समझिए।

जो व्यक्ति प्रयोग के योग्य ठहरें उनमें से सब से श्रद्धालु और सीधा एक व्यक्ति चुन लीजिए। इसे साधारण कुर्सी पर बिठा लीजिए। आप उसके सामने खड़े होकर सिर से छाती तक मार्जन दस-बारह कीजिए और सुनिश्चित स्वर में आदेश दीजिए कि अब तुम पूर्ण रूप से हमारे आज्ञानुवर्ती हो गये हो। जो हम कहेंगे जैसा हम चाहेंगे उसी के अनुसार तुम्हारी सारी क्रियाएं होंगी, हमने मैस्मरेजम का प्रयोग करके तुम्हें पूर्ण रूप से अपने वश में कर लिया है।” यह शब्द कह कर दो तीन मिनट एकटक दृष्टि से उसके चेहरे को घूरते रहिए, और देखते रहिए कि उसके चेहरे के भाव आज्ञानुवर्ती जैसे हो गये या नहीं, यदि न हुए हों तो एक दो बार वहीं आदेश फिर जरा दृढ़ शब्दों में दीजिये

जब पात्र का चेहरा ढीला पड़ जाए। आज्ञानुवर्तीपन झलकने लगे तब कहिए-”तुम्हारे हाथ भारी-बहुत भारी-बहुत ज्यादा भारी कर दिये गये हैं, अब तुम उन्हें उठा न सकोगे। कितना ही प्रयत्न करें तो तुमसे उठेंगे नहीं। वह व्यक्ति हाथ उठाने की कोशिश करेगा पर उठा न सकेगा। जब आप कहेंगे हमने हाथ हलके कर दिये तब वह हाथ उठा लेगा। जब आप कहेंगे बड़ी सर्दी पड़ रही है तो वह जाड़े के मारे काँपने लगेगा, गर्मी लगने का आदेश करेंगे तो गर्मी से बेचैन हो जायेगा, कपड़े उतारेगा और पंखा झलेगा। मिट्टी का टुकड़ा देकर उसे मीठा बतावेंगे तो मिठाई की तरह रुचिपूर्वक खाने लगेगा। मिठाई को कड़वी बतावेंगे तो उसे चखते ही थूक देगा। लड़की को सर्प बतावेंगे तो उससे डर कर भागेगा किसी मनुष्य को पशु बतावेंगे तो वह उससे पशु जैसा व्यवहार करेगा। फूल को कोयला बतावेंगे तो उसे वह कोयला ही नजर आवेगा। आपके आदेशानुसार एक ही रुमाल में कभी इत्र की कभी मिट्टी के तेल की, कभी हींग ही गन्ध बतावेगा। कानों से भी अनेक संगीत सुनेगा। नेत्र बन्द कराके सुला दें और कहें कि तुम्हें बम्बई भेजते हैं तो बंबई की सैर करो वहाँ की बातें सुनावो, लड़ाई के मोर्चे पर भेज दीजिए तो युद्ध का वर्णन करेगा। अफ्रीका के जंगलों में भेजिए तो वहाँ का हाल बतावेगा, स्वर्ग में, नरक में, आकाश में पाताल में कही भी भेज दीजिये वहीं पहुँचेगा और वहीं के समाचार सुनावेगा।

एक अच्छे भले आदमी को इस तरह अद्भुत आचरण करते देखकर लोग अचंभे से दंग रह जाते हैं। परन्तु उसमें अचम्भे की कुछ बात नहीं है, विश्वास में ऐसी ही शक्ति है, इससे भी अनेक गुनी अधिक शक्ति है। हिप्नोटिज्म करने वाले अपनी आदेश शक्ति से पात्र का विश्वास अपनी ओर खींचते हैं और उसका मन भी अपने कब्जे में कर लेते हैं। इन्द्रियों पर भी प्रयोक्ता का कब्जा हो जाता है। आँख, नाक, कान, जिह्वा, त्वचा यह सब भी प्रयोक्ता के आदेशानुसार ही शब्द, रूप, रस, गंध स्पर्श का अनुभव करती हैं। गर्मी के दिनों में धूप का रंगीन चश्मा लगाने से मन को भ्रम हो जाता है कि धूप अधिक नहीं है, इसी भ्रम के आधार पर आदमी चिलचिलाती हुई दोपहरी में फिरता रहता है और गर्मी अनुभव नहीं करता। यही विश्वास हिप्नोटिज्म में अपनी करामात दिखाता है। चतुर और ऊँचे चढ़े हुए प्रयोग करने वाले अपनी इच्छा शक्ति से एक साथ हजारों मनुष्य को हिप्नोटाइज्ड कर सकते हैं और सारी जनता को भी बड़े-बड़े आश्चर्यजनक खेल दिखाते रहते हैं। फोटो लेने पर मालूम हुआ है कि वे लोग खेल कुछ नहीं करते सिर्फ बात बनाते रहते हैं और देखने वाले बुद्धि विमूढ़ होकर उन बातों को साक्षात अनुभव करते रहते हैं।

हिप्नोटिज्म के तीन खेलों का यहाँ उल्लेख किया गया है। यह कौतुक मात्र है। मिथ्या है। इनसे किसी का कुछ लाभ नहीं उपरोक्त तीन खेलों के अलावा मन शक्ति के और भी अनेक कौतुक हैं तथा हो सकते हैं। हम अपने पाठकों से इस खेल तमाशों में अपनी और दूसरों की शक्ति बर्बाद करने को मना करते हैं। इसमें कौतुक के अलावा लाभ कुछ नहीं, हानि दोनों की है। हाँ इनसे एक मनोवैज्ञानिक सिद्धान्त जरूर साबित होता है। वह यह कि विश्वास में प्रबल शक्ति है। जो वैसा विश्वास करता है उसे बाहरी वस्तुएं वैसी ही दिखाई पड़ती हैं। “हर मनुष्य अपनी दुनिया आप बनाता है” इस उक्ति का प्रमाण हिप्नोटिज्म के खेलों से पाया जा सकता है। और यह शिक्षा ग्रहण की जा सकती है कि हम संसार को जैसा देखना चाहते हैं अपने विश्वासों को उसी साँचे में ढालें।


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