मैस्मरेजम का प्रयोजन

January 1944

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

मैस्मरेजम और हिप्नोटिज्म का संक्षिप्त परिचय पिछले पृष्ठों पर पाठक प्राप्त कर चुके होंगे। इच्छा शक्ति की प्रबलता और मानसिक शक्तियों की एकाग्रता के द्वारा एक असाधारण विद्युत शक्ति उत्पन्न होती है, उसका उपयोग दूसरों पर करने की कला में जो प्रवीणता प्राप्त कर लेते हैं उनके लिए अचरज भरे काम कर दिखाना बायें हाथ का खेल हो जाता है। इस अंक में जो आरंभिक साधना बताई गई है उसका अभ्यास करने से छोटी मोटी कई सिद्धियाँ प्राप्त हो सकती हैं जैसे- (1) कठिन साध्य और असाध्य रोगों को दूर किया जा सकता है, इनकी विधि हम अपनी ‘प्राणचिकित्सा, विज्ञान पुस्तक में सविस्तार बात चुके हैं। (2) निकटस्थ या दूरस्थ व्यक्तियों के मन में किन्हीं संस्कारों को जमाया जा सकता है जिसकी विधि हमारी परकाय प्रवेश पुस्तक में है। (3) दूसरों से मन की बातें जानी जा सकती हैं। (4) अपने कुसंस्कारों और रोगों को हटाया जा सकता है। (5) अपनी मानसिक एवं आत्मिक शक्तियों का विकास किया जा सकता है। इन लाभों का तात्पर्य अपना और दूसरों का सच्चा हित साधन करना है।

हम अपने साधारण पाठकों को इसी सीमा तक शिक्षा देना चाहते हैं इसलिए इतना ही प्रकाशन करना उचित है परन्तु ऐसा न समझना चाहिए कि इस विद्या का अन्त यहीं हो जाता है। डॉक्टर मैस्मर का विज्ञान साधारण तथा इसी सीमा तक है उसकी पहुँच इससे बहुत आगे तक नहीं है, परन्तु भारतीय योगवेत्ता इससे बहुत आगे की जानकारी, अनुभव तथा सफलता प्राप्त कर चुके हैं। कुण्डलिनी जाग्रत करना, शक्तिपात करके आध्यात्मिक कायाकल्प कर देना, षडचक्र वेधन करके अदृश्य बातों का पता मालूम करना, यह सब सफलताएँ इसी मार्ग पर आगे चलने से मिलती हैं। डॉक्टर मेस्मर यह नहीं जानते थे पर भारतीय योगी मुद्दों पहले इसका आविष्कार कर चुके थे।

जादू के बहुत से खेलों को दिखाते हुए बाजीगर लोग अपने कार्य को मैस्मरेजम बताया करते हैं। हम स्वयं कई वर्षों इसी चक्कर में फँसे रहे हैं, विद्यार्थी जीवन के अमूल्य तीन साल इसी जंगल में भटकते हुए हमने बिताए हैं। भारत के इस कौने से उस कौने तक बड़े बड़े, चमत्कारियों की लंगोठियाँ धोते फिरे हैं, और घर से ढेरों रुपया लोगों को खिलाते रहे हैं। सैकड़ों एक से एक चमत्कारी खेल सीखने के बाद अन्त में हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि कोई धूर्त व्यक्ति इन को काम में लाकर पैसा बटोर सकता है, पर आत्मोन्नति कुछ नहीं कर सकता। निरंतर छल, झूठ, फरेब का अभ्यास करने से और उलटा नीचे को ही गिरेगा। इसलिए झूठी जादूगरी के पीछे न पड़ कर सच्ची आत्म साधना करनी चाहिए।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here: