मैस्मरेजम के संबंध में

January 1944

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वर्तमान युग में भौतिक विज्ञान ने असाधारण उन्नति की है। उसने अपनी प्रत्यक्षता सर्वसाधारण पर प्रकट करके मनुष्य जाति को आश्चर्य में डाल दिया है। उस वैज्ञानिक उन्नति में पाश्चात्य देशों का प्रमुख हाथ है। इस उन्नति का अधिकाँश श्रेय उन्हीं को प्राप्त है। अतएव नवीन पीढ़ी के मनों में यह बात घर कर गई है कि पाश्चात्य देश हमारी अपेक्षा अधिक समुन्नत हैं। बड़ों की नकल छोटे किया करते हैं। बड़प्पन की भावना पाश्चात्यों के लिए स्थापित की गई तो यह स्वाभाविक ही है कि उनके द्वारा कही जाने वाली और की जाने वाली बातों को प्रामाणिक माना जाए। प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में हम भारतवासी उन्हीं बातों को प्रामाणिक, सत्य एवं ग्राह्य मानते हैं जिनपर पश्चिम देशवासियों की मुहर लगी होती है। योरोपियन भाषा, पोशाक, फैशन, शिष्टाचार, रहन सहन, खान पान, रीति रिवाज, आचार विचार हमारे जीवन में प्रवेश कर रहे हैं। भारतीय सभ्यता का आधे से अधिक स्थान योरोपीय सभ्यता ग्रहण कर चुकी है, यह प्रत्यक्ष है, पर कोई इस बात को आँख पसार कर देख सकता है, अनुभव कर सकता है।

यह सब बातें हम आलोचना करने के लिए नहीं लिख रहे हैं। इन पंक्तियों में इस परिवर्तन की भलाई बुराई पर प्रकाश डालने के लिए स्थान नहीं है। यहाँ तो यह चर्चा, वास्तविकता का दिग्दर्शन कराने के उद्देश्य से की गई है। सचमुच प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से हमारे मनों ने पश्चिम का नेतृत्व स्वीकार किया हुआ है। विमानों की बात हँसी में उड़ाई जा सकती है पर हवाई जहाजों की प्रत्यक्षता पर कौन अविश्वास करेगा? संजय ने दिव्य दृष्टि से धृतराष्ट्र को महाभारत का वर्णन सुनाया था वह झूठ कहा जा सकता है पर टेलीविजन (रेडियो द्वारा चित्र दर्शन) को कौन गलत कहेगा? पाताल (अमेरिका) से अहिरावण ने लंका के रावण से दूर दूर होते हुए भी वार्तालाप किया था वह गप्प कही जा सकती है पर रेडियो को मिथ्या कौन कहेगा? कहा जाता है कि यह प्रत्यक्षवाद का जमाना है, इसमें सिर्फ वह बातें मानी जा सकती हैं जो प्रत्यक्ष हैं, जो विज्ञान सम्मत हैं।

उपरोक्त विचारधारा ने हमारे जीवन की प्रत्येक दिशा में प्रवेश किया है आध्यात्मिक तत्व को भी इसने अछूता नहीं छोड़ा है। ऐसे असंख्य लोग हैं जो योग की सिद्धियों पर विश्वास नहीं करते परन्तु मैस्मरेजम या उसके समतुल्य हिप्नोटिज्म, टेलीपैथी, क्लेयर वायेन्स, मेन्टल हीलिंग, स्प्रिचुअलिज्म, मैगनेटिज्म, साइटिज्म, फेनामिनल, थाट रीडिंग, ऑकल्ट साइंस, साइकिक थ्रेपी, साइको मेटरी, ट्र्न्स, फ्रेनालौजी, इलेक्ट्रिक वायलाजी, साइको एनेलेसिस आदि विद्याओं की सत्यता पर उन्हें विश्वास है, क्योंकि एक तो उनपर पश्चिमी लोगों की मुहर लगी है, दूसरे उनके चमत्कार प्रत्यक्ष हैं।

विगत पाँच वर्षों में लगभग पाँच हजार व्यक्ति हमसे पत्र व्यवहार एवं वार्तालाप द्वारा ‘मैस्मरेजम’ के संबंध में जिज्ञासा प्रकट कर चुके हैं जबकि प्राचीन भारतीय योग साधना के लिए एक हजार व्यक्तियों ने भी रुचि न दिखाई होगी। जिनकी आध्यात्म मार्ग में रुचि हैं ऐसे साधकों में उनकी संख्या अधिक हैं जो मैस्मरेजम की चमत्कारी पद्धति को जानना ओर सीखना चाहते हैं। अपने प्रियजनों को सदा से ही हम यह बताते रहें हैं कि मैस्मरेजम में कोई अनोखी बात नहीं है, यह योग साधना का एक बहुत ही छोटे दर्जे का तुच्छ सा खेल है। ऐसे खेल करने पर भारतीय योगी उतरते तो हजारों तरह की मैस्मरेजमों की रचना हो जाती और वे सब एक से एक अद्भुत होती। मनुष्य का मन जादू का पिटारा है, इसकी हर एक लहर आश्चर्यमयी है। एकाग्रता के द्वारा जो दिव्य शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं उनका वारापार नहीं मिल सकता। श्रीमती ओ. हष्णु हारा ने अपने ग्रन्थ च्च्ष्टशठ्ठष्द्गठ्ठह्लह्ड्डह्लद्बशठ्ठ ड्डठ्ठस्र ह्लद्धद्ग ्नष्ह्नह्वद्बह्द्गद्वद्गठ्ठह्ल शद्ध क्कद्गह्ह्यशठ्ठड्डद्य रुड्डठ्ठद्दद्गह्लद्बह्यद्वज्ज् में विशद वैज्ञानिक विवेचना करते हुए यह साबित कर दिया है कि मनुष्य का मन अद्भुत शक्तियों का भण्डार है और मानसिक एकाग्रता द्वारा आश्चर्यजनक शक्तियाँ उत्पन्न होती हैं और हो सकती हैं।

पाश्चात्य प्रभाव से प्रभावित जिज्ञासुओं के असाधारण आग्रह के कारण हमें यह ‘मैस्मरेजम अंक’ निकालना पड़ा। हमारे कितने स्नेही मित्र ‘मैस्मरेजम’ सीखने की व्याकुलता में धूर्तों के चंगुल में फँसकर अपना अमूल्य समय तथा पसीने से कमाया हुआ पैसा बर्बाद कर चुके हैं, फिर भी उन्हें कुछ कहने लायक वस्तु न मिली। संभव हैं कि अन्य पाठक भी इसी प्रकार ठोकर खा जावें, इसलिए यह अंक हम प्रस्तुत कर रहे हैं। हमने प्रयास किया है कि इस विषय की प्रायः सभी मोटी मोटी बातों का समावेश हो जाय, बारीकी और विस्तार से लिखने में तो यह अंक कम से कम दस गुना बढ़ जाता जो इस कागज के अकाल में संभव नहीं। विषय को सरल बनाने का ध्यान रखा गया फिर भी पाश्चात्य बातों की पूर्वीय ढंग से प्रतिपादित करने में जो कठिनाइयाँ रह गई हों उन्हें विषय की कलिष्टता ही समझना चाहिए। जो बातें समझ में न आवें उन्हें पाठक हम से पूछ सकते हैं, उनका समाधान कर दिया जाएगा। साथ ही हमारी सलाह है कि कोई पाठक खेल तमाशों में इस शक्ति को जरा भी व्यय न करें। जो बाजीगरी के लिए इस विद्या का उपयोग करेंगे वे अन्ततः बहुत घाटे में रहेंगे। अपनी और दूसरों की सात्विक उन्नति में ही इस विद्या का उपयोग करना उचित है।


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