श्री 1108 महात्मा सच्चे बाबा के उपदेश

July 1940

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(प्रेषक-एक भक्त)

तली में फूटे हुए घड़े का जल जिस प्रकार धीरे-धीरे बिल्कुल निकल जाता है, उसी प्रकार वासनाओं में लिप्त मन वाले साधक का संपूर्ण तप धीरे-धीरे बह जाता है।

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घोर आँधी और तूफानों के चलते रहने पर भी जिस प्रकार पर्वत तनिक भी प्रभावित नहीं होते उसी प्रकार धैर्यवान भक्त साँसारिक सुख दुखों से विचलित नहीं होते ?

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ईश्वर पर विश्वास रखो। कर्तव्य पर आरुढ़ रहोगे तो मजूरी तुम्हें जरूर मिलेगी। हजारों योजन लंबे चौड़े समुद्र का पेट भरा जाता है तो क्या तुम्हें ही तीन पाव आटा न मिलेगा।

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दूसरों की सहायता पर आश्रित मत रहो। ईश्वर और अपनी आत्मा पर विश्वास करो। क्यों के इन्हीं की सहायता सच्ची सहायता है।

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सच्चा संत वह है जो मान बढ़ाई से दूर रहता है। अपने स्वार्थ के लिए किसी को दुख नहीं देता। इन्द्रिय भोगों से दूर रहता है और अनन्य भाव से ईश्वर को भजता है।

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जिसका शरीर परोपकार में नहीं लगा, जिसके मन ने प्रभु का चिन्तन नहीं किया, जिसकी वाणी से ज्ञानमयी वाणी नहीं निकली उसका जीवन व्यर्थ ही है।

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सत्कर्म सब से बड़ा सहायक है। धर्मानुकूल जिसके सहारे बड़ी-बड़ी विघ्न बाधाओं के पार जा सकता है। इसके प्रतिकूल पाप कर्मों के कारण मनुष्य पर एक प्रकार का भय चढ़ा रहता है। जो शरीर और आत्मा का सारा तेज हरण कर लेता है।

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कौन मित्र ? कौन शत्रु ? मित्र वह है जो तुम्हारे दोषों को बतला कर उनसे दूर रखने का प्रयत्न करता है। शत्रु वह है जो खुशामद करके पापों पर पर्दा डालता है और झूठी प्रशंसा करके गहरे अज्ञानान्धकार में धकेलता है।

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संसार सागर से पार कौन उतरेगा ? जिसने अपने अभिमान का बोझा हल्का कर लिया है। जो अपने सिर पर गट्ठर के गट्ठर लादता चला जा रहा है उसे तो डूबना ही पड़ेगा।

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दूसरों को धनवान देख कर डाह मत करो। उसके हाल पर दया प्रकट करो कि बेचारों ने कितने जंजाल की चौकादारी अपने सिर पर ले रखी है। दूसरों को सत्कर्म करते हुए और भजन में लीन देखो तो अपने का समझाओ कि तुम क्यों इस घुड़दौड़ में पिछड़े जाते हो।

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लाभ होने पर लोग ईश्वर को धन्यवाद देते हैं और हानि होने पर उसे कोसते हैं। यह अज्ञान है। सच्चा भक्त हर कार्य में प्रभु की हित दृष्टि देखता है। कठिन से कठिन कष्ट पड़ने पर भी वह उन दुखों को प्रभु का दयामय प्रसाद ही समझता है।

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जो वस्तु जिसके पास है उसी से मिल सकती है। कपड़ा बजाज के यहाँ और मिठाई हलवाई के यहाँ मिलेगी। आध्यात्मिक शाँति, मोक्ष, परमात्मा के पास हैं। बिना प्रभु को प्राप्त किये किसने शाश्वत सुख को पाया है।

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जीव और ईश्वर के बीच में अभिमान की एक गहरी खाई है। जो व्यक्ति ईश्वर से मिलने की इच्छा करता है उसे पहले उस खाई को पाटना चाहिए।

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जिसे सांसारिक भोग विलासों में आनंद आता है उसने प्रभु प्रेम को नहीं पाया। प्रभु प्रेम का स्वाद जिसने चख लिया, यह इन मिथ्या भोगों की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखता।

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साधुओं को निर्धन देखकर उन पर हंसो मत निश्चय जानो संसार के सर्वोच्च संपत्तिशाली यही महात्मा हैं। इनका वैभव अपार है।

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वैभव-सांसारिक माया-अपनी छाया की तरह हैं। तुम उन्हें प्राप्त करने को दौड़ोगे तो वे दूर ही बढ़ते जायेंगे। यदि उनके पीछे दौड़ना बंद कर दोगे तो वह तुम्हारे चरणों में लौटने लगेंगे।

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ऊँचा कौन है ? जिसके हृदय में दया धर्म बसे हुए हैं, जिसके मुख से सदैव अमृत वचन निकलते हैं, जिसको सब प्राणियों से प्रेम है और जिसका मस्तक नम्रता से झुका रहता है।


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