(ले. मास्टर उमादत्त सारस्वत, कविरत्न)
बिसवाँ (सितापुर)
मन ! सावधान !
मन ! सावधान !
(1)
है विकट-भयंकर-मोह-रात,
किसकी है सुनता कौन बात,
है दूर अभी उज्ज्वल-प्रभात,
भ्रम-लोभ-क्रोध की लगी घात,
मन ! सावधान !
मन ! सावधान !
(2)
है माया का उफ ! अन्धकार,
अज्ञान रहा है कर प्रहार,
द्रुत तृष्णा की चादर उतार
अब चेत, न सो टाँगे पसार,
मन! सावधान !
मन! सावधान !
(3)
आ मृगतृष्णा की नव-हिलोर
दे सपदि न तुझको कहीं बोर,
हैं घेरे जो खल ‘अहम्’-चोर,
दे उन्हें भगा, उठ, लगा जोर,
मन! सावधान !
मन ! सावधान !
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