मैस्मरेजम के प्राथमिक अभ्यास

July 1940

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(प्रो. धीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती वी.एस.सी.)

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पिछले अंक में हमने मैस्मरेजम की आरम्भिक शिक्षा के लिए त्राटक के कुछ साधन बताये थे। त्राटक के अभ्यास से बेधक दृष्टि प्राप्त होती है जिसके बल पर दूसरों को प्रभावित और निद्रित किया जाता है। बेधक दृष्टि के साथ ही दो चीजों की और भी आवश्यकता है। (1) एकाग्रता और (2) इच्छाशक्ति। इस अंक में इनका अभ्यास बताया जाएगा।

एकाग्रता और संपूर्ण शक्तियों का एकीकरण करने के लिए शिथिलीकरण बड़ा सुँदर साधन है। शिथिलीकरण का तात्पर्य-शरीर के सारे अवयव और मन की गति को शिथिल कर देना है। इससे शरीर के विभिन्न अंगों में लगी हुई शक्तियाँ शिथिल हो जाती हैं तब उन्हें एक स्थान से हटा कर दूसरे स्थान पर आसानी से लगाया जा सकता है गाड़ी में जुते बैल को आप हल में तभी लगा सकते हैं जब उसे पहले कार्य से छुट्टी दे दी जाय। मैस्मरेजम या अन्य किसी कार्य में जब आप अपनी संपूर्ण शक्ति का उपयोग करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ से उसे छुट्टी दिलानी ही पड़ेगी। शिथिलीकरण का यही उद्देश्य है।

कोई ऐसा एकान्त स्थान चुनिये जहाँ भीड़-भाड़ और शोर गुल न होता हो। यदि वन्य प्रदेश में जाने की सुविधा न हो तो घर का कोई कमरा भी हो सकता है। किन्तु इस बात का कड़ा प्रबन्ध रहे कि अभ्यास के समय कोई भी व्यक्ति वहाँ आकर कार्य में विक्षेप न डाले। इस कमरे के दरवाजे बन्द कर देने चाहिए। कोई खिड़की सिर्फ इतनी खुली रहने देनी चाहिए जिसमें होकर थोड़ा प्रकाश आता रहे, कमरा बिल्कुल अंधेरा न हो जाय। अधिक प्रकाश के स्थान में यह साधन करना ठीक नहीं, क्योंकि तेज प्रकाश में एक प्रकार की उत्तेजना होती है जिससे मन बारबार उचट जाता है। सुनसान रात्रि में भी यह अभ्यास ठीक तरह किया जा सकता है।

बैठने के लिए पाँव फैलाकर पड़े रहने वाली आराम कुर्सी सबसे अच्छी है। यदि वह न मिल सके तो बड़े मसंद या कपड़ों के गुदगुदे गट्ठर के सहारे बैठा जा सकता है। कुछ न मिले तो चारपाई पर लेट कर भी काम चलाया जा सकता है। इस प्रकार बैठ या लेट कर शरीर को बिल्कुल निर्जीव छोड़ने का प्रयत्न करना चाहिए। ऐसी भावना ठीक है कि हम निष्प्राण हो रहे हैं, शरीर का जीव निकल गया है। इस प्रकार की भावना करते-करते दस पन्द्रह मिनट में शरीर बिल्कुल शिथिल हो जावेगा। अब मन को शिथिल करने का प्रयत्न कीजिए। भावना करो कि आपके चारों ओर नीले रंग का आकाश ही आकाश है और कहीं कोई वस्तु नहीं है। इस अनन्त नील सागर में मैं अकेला तैरता हुआ पड़ा हूँ। इस ध्यान को करने से कुछ देर में मन भी शाँत हो जाएगा और तरह-तरह के संकल्प करना छोड़ देगा। इस मानसिक और शारीरिक शिथिलता को बहुत देर बनाये रखने का प्रयत्न कीजिए। जब मन उचटने लगे तो फिर उसे उसी स्थान पर ले जाइए और इस शाँत समाधि में पड़े रहिए।

जब मन और शरीर बिल्कुल शाँत होने लगे तब भृकुटि बिन्दु में सूर्य केन्द्र मान कर उसमें त्राटक करना चाहिए। दोनों भौहों के बीच में जो स्थान है उस स्थान पर एक छोटे से सूर्य सदृश प्रकाश बिन्दु की भावना करनी चाहिए और नेत्र बंद करके दिव्य नेत्रों से उस दिव्य सूर्य पर उसी प्रकार त्राटक करना चाहिए, जैसा कि गत अंक में काले गोले, दीपक या दर्पण में त्राटक करने की विधि बताई गई है। यह मानसिक त्राटक मन की एकाग्रता को बढ़ाता है।

इच्छा शक्ति को दृढ़ करने और अपना मानसिक विकास करने के लिए वे साधन बहुत ही उपयुक्त हैं जो अखंड ज्योति कार्यालय से प्रकाशित ‘मैं क्या हूँ?’ पुस्तक में बताये गये हैं। अपने को सशक्त बलवान और शक्ति का केन्द्र समझना चाहिए। ऐसे विचार कभी मन में न आने देने चाहिए कि मैं बड़ा नीच और शक्तिरहित हूँ। अपने बारे में जब भी विचार करें सशक्त, बुद्धिमान, सदाचारी समझें। आप ईश्वर के अंश हैं। जिस उद्गम से आप का प्रादुर्भाव हुआ है वह शक्ति का पुँज है, फिर आप में ही कमी किस प्रकार रह सकती है ? अपना नाम जपने से भी आत्म विश्वास बढ़ता है। अपना नाम जपने के साथ-साथ ही अपना सशक्त और विशुद्ध स्वरूप भी ध्यान में रखना चाहिए। इस विधि से आप अपना मनोबल बढ़ा सकेंगे।

त्राटक, शिथिलीकरण, ध्यान और इच्छाशक्ति वर्द्धन के उपाय एक साथ चल सकते हैं। तीन से छह महीने का समय इसके लिए काफी है। अभ्यास तो बराबर जारी रहना चाहिए पर इतने समय में काम चलाऊ शक्ति प्राप्त की जा सकती है। जब यह प्रतीत होने लगे कि हमारे साधन करीब पूरे हो चुके हैं, तब परीक्षा करनी चाहिए कि हमने कितनी सफलता प्राप्त कर ली है। परीक्षा की कुछ विधियाँ नीचे दी जाती हैं-

(1) चुपचाप किसी आदमी के पीठ पीछे खड़े होकर उसकी गर्दन से नीचे कंधों के बीच में रीढ़ की हड्डी को बेधक दृष्टि से देखो। वह आदमी पीठ पर कुछ बेचैनी सी पावेगा और सिर मोड़ कर तुम्हारी तरफ देखने लगेगा।

(2) जमीन पर जहाँ कोई छोटा कीड़ा बैठा हो उसके चारों और लकड़ी से लकीर का एक छोटा घेरा खींच दीजिए और दृढ़ इच्छा कीजिए कि यह कीड़ा इस लकीर को नहीं लाँघ सकता। वह कीड़ा सचमुच ही लकीर को पार न कर सकेगा और बार-बार वापिस मुड़ आवेगा।

(3) किसी व्यक्ति को दूसरे कमरे में बिठाइये और कोई विचार दृढ़ता पूर्वक उसके लिये प्रेरित करिए। अलग कमरे में बैठे हुए आदमी के मन में भी उस समय वही भाव उदय होंगे।

(4) किसी की पीठ नंगी करा कर उस पर पास करो। अर्थात् हाथों की उंगलियों को एक डेढ़ इंच पीठ से अलग रखते हुए उन्हें ऊपर से नीचे ले जाओ और नीचे से ऊपर लाओ। कुछ देर इस प्रकार करने पर उस आदमी की पीठ में सनसनाहट और खुजली सी मालूम होने लगेगी और वह कहने लगेगा बाहर की कुछ चीज मेरे शरीर में घुसती हैं। यदि उसकी आँखों पर पट्टी बाँध दी जाय तो भी वह बतायेगा कि पीठ के निकट पास किये जा रहे हैं या नहीं।

इस तरह परीक्षा करके यह जाना जा सकता है, कि काम चलाऊ योग्यता प्राप्त हो गई या नहीं ? कई बार इन विधियों में पूरी सफलता नहीं मिलती। तब निराश नहीं होना चाहिए वरन् शक्ति को बढ़ाने का प्रयत्न जारी रखना चाहिए।

अगले अंक में बताया जाएगा कि दूसरों पर मैस्मरेजम का प्रयोग किया जाय।


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