हिन्दू धर्म वैज्ञानिक है !

July 1940

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(ले. - श्री मेघदत्त शर्मा)

आज योरोप व अमेरिका के वैज्ञानिक डॉक्टर सिद्धि कर रहे हैं कि साँस के लेने में लाखों न दीखने वाले कृमि अन्दर जाते हैं और साँस बाहर निकालने से लाखों बाहर आते हैं। लाखों जहरीले गंदे कीड़े हवा में चक्कर काटते हैं जो मनुष्यों को खतरे में डालते हैं इसी कारण अस्पतालों में चीर फाड़ के समय समस्त औजार गर्म पानी में खौलाये जाते हैं, डॉक्टर लोग साबुन व दवाओं के पानी से हाथ साफ करके रबड़ के दस्ताने पहन कर मुँह भी पट्टी से बाँध कर ऑपरेशन करते हैं ताकि मरीज के घाव में हाथ से, मुँह से, औजार से कोई कीड़ा प्रवेश न कर जाये। बल्कि अंग्रेज लोग हाथ से छुआ कोई भी भोजन नहीं खाते। काँटे-चम्मच, छुरी जो पहले गर्म पानी में उबाल लिये जाते हैं या भाप की गर्मी से सेक लिये जाते हैं उनके द्वारा भोजन खाते हैं। हमारे देश में योरोप के मुल्क से अधिक गर्मी पड़ती है। सूरज की तीव्र किरणों से ऐसे छोटे-छोटे जीव नष्ट हो जाते हैं परंतु फिर भी हिन्दू धर्म में लाखों वर्षों से यह नियम है कि प्रत्येक वस्तु खाने से प्रथम हाथ धोकर कुल्ला करके खाई जाय। कच्चा भोजन (जिसका अर्थ थोड़े समय तक ठहरने वाला भोजन) खाने से पहिले स्नान करना, धुले हुए कपड़े पहिनना या नंगे होकर भोजन करना फिर भी हाथ पैर धोकर चौके में भोजन करने (क्योंकि वहाँ चूल्हें की गर्मी से ऐसे छूतदार जहरीले जर्म्स नहीं रहते हैं) का नियम सदियों से चला आ रहा है। अब आप समझ गये होंगे कि चौके में भोजन करना स्नान करके, हाथ, पैर धोकर के नंगे बदन या साफ धुले हुए कपड़े पहिन कर भोजन करना कोई ढोंग नहीं है। यह सब वैज्ञानिक है जिसे ऋषि मुनियों ने हमारे स्वास्थ्य लाभ के लिए खोज करके प्रचलित किया है। आधुनिक डॉक्टर बतलाते हैं कि जिन चीजों में बिजली का करंट प्रवेश नहीं करता उनमें छूत-छात भी नहीं घुसती है। बिजली काँच, चीनी, रबड़, लकड़ी में नहीं घुसती इससे इनके द्वारा बने हुए बर्तनों में भी छूत का कोई भय नहीं रहता-परन्तु यह बात भी हमारे यहाँ सदियों से प्रयोग में आ रही है।

हिन्दू लोग लकड़ी के बने कठौता मुसाफिरों के पानी पीने को कुएं पर डाल देते हैं ताकि कोई भी जाति का मनुष्य पानी खेंच कर पी सके। घरों में माताएं बारिश के दिनों में जब कि बिजली चमक और कड़क रही हो। फूल, पीतल, काँसा के बर्तन पहिले से इसलिए उठा लेती हैं कि कहीं इन बर्तनों पर बिजली न गिर पड़े क्योंकि बिजली का प्रवेश इनमें शीघ्र ही होता है। यदि कोई काठ की वस्तु पड़ी रहे तो उसका कोई भय नहीं। इसी सिद्धाँत को मान कर लोग दावतों में मिट्टी के सकोरे कुल्हड़ व पत्तलें प्रयोग में लाते हैं क्योंकि बर्तनों में जो अधिकतर ताँबा पीतलादि के होते हैं छूत के घुस जाने का भय रहता है। पीतल से काँसे में विद्युत करंट मारने की अधिक सम्भावना है इसलिए ही ऊँचे जाति के लोग काम करने वाली, नाई, धीमर आदि-आदि जातियों को काँसे के बर्तन में भोजन न परोसकर पीतल के बर्तनों में खिलाया पिलाया जाता है।

बाहर के ठंडे देशों में इन्हीं जर्म्स के नष्ट करने के लिए धुले हुए कपड़ों पर इस्त्री कराई जाती है। भारत में सूर्य की किरणों में इस्त्री की अपेक्षा अधिक शक्ति है जो कृमियों को नष्ट करती है इसलिए ही हिन्दू सूर्यदर्शन और सूर्य का प्रभाव मानते और जानते हैं धूप का सुखाया वस्त्र छाया के सुखाये हुए वस्त्र की अपेक्षा अधिक पवित्र माना जाता है। सूती कपड़े के बनिस्बत ऊनी व रेशमी वस्त्र को पवित्र मानने का भी मुख्य उद्देश्य वहीं वैज्ञानिक है। यज्ञ और पूजा के समय रेशमी तथा ऊनी वस्त्र प्रयोग में लाया जाता है। इसमें भी विद्युत शक्ति शीघ्र प्रवेश नहीं करती है। जब बिजली का करंट नहीं जाता तो फिर छूत व छूतदार कीड़े कैसे प्रवेश पा सकते हैं। और उक्त वस्त्रों में न अग्नि ही आगे बढ़ती है। न अधिक गर्मी से गर्माते हैं न अधिक ठंड से ठंडाते हैं। अपने स्वभाव में रहते हैं परन्तु सूती इसके विपरीत शीघ्र गर्म और ठंडे वस्त्र होते हैं। आग के लगने पर जल भून कर राख होने तक जलते हैं। परन्तु ऊनी व रेशमी कपड़े में लगी आग आगे नहीं बढ़ती है वहीं झुलस-2 कर रह जाती है। इसी कारण रेल के इंजनों में ड्राइवर ऊनी व रेशमी कतरन के कपड़े हाथ में रखते हैं और गर्म कल पुर्जों को खोलते बंद करते हैं। इस प्रकार हिन्दू धर्म में आहार विहार सब वैज्ञानिक ढंग से हो रहा है। पवित्र स्थानों पर जूते पहिन कर न जाना, स्नान करके जाना इसका भी वही कारण है कि, जमीन पर पड़ी हुई गंदगी छूतदार कृमि पैरों (जूतों) द्वारा पवित्र (सुरक्षित) स्थान में प्रवेश न पा सकें। परन्तु अंगरेजीदाँ लोग इन वैज्ञानिक बातों को न समझ कर ढोंग-पाखंड बताते है। इनके अतिरिक्त सैकड़ों ऐसे ही काम हैं जिन्हें हिन्दू धर्म में वैज्ञानिकता के कारण स्थान मिला हुआ है। जिन्हें विदेशी अब समझ सके हैं। उसे हम लाखों वर्षों से प्रयोग में ला रहे हैं। छूतछात जाति पांति पेशे से ही बनी हैं।


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