धर्म और विज्ञान

January 1940

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(पं. जवाहरलालजी नेहरू)

आज जब विज्ञान ने अपने पर सारी दुनिया के ऊपर फैला लिये हैं, और प्रत्येक बात को अपने नीचे छुपा लिया है, धर्म और विज्ञान की जद्दोजहद हकीकत नहीं मालूम होती है, क्योंकि कल तक जिसे ठोस भद्दा जड़ पदार्थ (मैटर) समझा जाता था, वह आज इतना सूक्ष्म है कि वायु से भी सूक्ष्म।

हो सकता है कि इस “ब्रह्माण्ड” में हम धूल के एक छोटे से कण ही हों। लेकिन इस धूलि कण में भी वह चीज है, जिसमें इंसान का दिमाग और रूह है। सदियों से यह बढ़ता रहा है, और इस पृथ्वी का मालिक बन बैठा है और इसने आकाश की बिजली तक से शक्ति पाई है। विज्ञान ने ब्रह्माण्ड के रहस्य को हमारे सामने खोलकर रख दिया और प्रकृति की चंचलता को भी अपने काम में लगाया है। पृथ्वी और आकाश से भी अधिक महत्वपूर्ण है आदमी का दिमाग और रूह, जो दिन दूनी और रात चौगुनी शक्तिशाली होता जाता है और नित नई दुनिया विजय करने की तलाश में रहता है।

सच्चा वैज्ञानिक वह ‘योगी’ है जिसे जीवन का मोह नहीं जो अपने कर्म का फल नहीं चाहता बल्कि सत्य की खोज में कहीं तक भी जाने को तैयार रहता है किसी एक जगह ऐसा लंगर डालकर बैठ रहता कि वहाँ से हिल ही न सके।

-नवयुग से


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