मानसिक शक्तियाँ बढ़ाने के १५ नियम

January 1940

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मानसिक शक्तियाँ बढ़ाने के १५ नियम

ले. श्री गिरराज किशोर सिंह जी विशारद

मैं क्षुद्र हूँ, मेरी शक्ति नगण्य है, मुझे दुःख घेरे हुए हैं, मेरे भाग्य में दुःख ही बदा है। ईश्वर ने मुझे अभागा पैदा किया है, जो होना होगा हो जायेगा, मुझसे कुछ नहीं होगा, असफलता हुई तो कहीं का नहीं रहूँगा आदि विचार करते- करते मनुष्य की इच्छा शक्ति अर्द्ध मूर्च्छित हो जाती है और संशय उस पर ऐसा काबू कर लेते हैं कि साधारण काम करते हुए भी मन संकल्प विकल्पों से भरा रहता है और असफलता की आशंका मूर्तिवत सामने खड़ी रहती है। निरुद्योगी, परमुखाक्षेपी और आसान जिन्दगी बसर करने वाले लोगों की इच्छा शक्ति एक प्रकार से निकम्मी हो जाती है। अज्ञान वश जो व्यक्ति कुछ दिनों तक ऐसे विचारों के पंजे में फँस जाता है फिर उनसे छूटना बहुत मुश्किल मालूम देता है। वास्तविकता का पता लगने पर वह सोचता है। व्यर्थ ही इन बुरे विचारों में मैंने अपना समय गँवाया और अपने को अवनति के गड्ढे में धकेला। वह इन बुरे विचारों से छूटना चाहता है, पर ऐसी आदत पड़ गई है कि गाड़ी आगे बढ़ती नहीं। जरा हिम्मत बाँधी, उत्साह आया किन्तु थोड़ी ही देर बाद विचार न जाने कहाँ चले गये। और पुनः निराशा ने आ दबोचा। ऐसे व्यक्ति किसी काम को पूरा नहीं कर पाते। या तो वे किसी काम को करते ही नहीं, करते हैं तो अधूरा छोड़ देते हैं। अनेक अधूरे और असफल कार्य उनके जीवन में यों ही पड़े रहते हैं।

ऐसे लोगों की इच्छा शक्ति बहुत निर्बल होती है। लगन और दृढ़ता के अभाव में किसी कार्य पर चित्त नहीं लगता। मस्तिष्क की कमजोरी के कारण निराशा और उदासीनता छा जाती है। विचार शक्ति, तुलनात्मक शक्ति, कल्पना शक्ति, इच्छाशक्ति, प्रमृति शक्तियों की कमजोरी या निश्चित परिणाम असफलता है। एक ही समय में एक ही प्रकार का व्यापार करने वाले दो व्यक्तियों में से एक को लाभ होता है एक को हानि। एक के पास नित्य सैकड़ों ग्राहक आते हैं किन्तु उसका पड़ौसी दुकानदार मक्खियाँ मारता रहता है। ऐसा क्यों होता है? दोनों के पास जाने से आपको पता चलेगा कि एक का चेहरा सदा हँसता हुँआ रहता है, आत्मशक्ति का दृढ़ विश्वास उसके चेहरे पर झलकता रहता है। दूसरा निराशा और उदासी से भरे हुए मुँह को लटकाये हुए रहता है। यह मानसिक शक्तियों के सबल और निर्बल होने का परिणाम है।

सब लोग इच्छित रहते हैं कि हमारी मानसिक शक्तियाँ बलवान हों किन्तु वे मानसिक शक्तियों को बढ़ाने के नियमों से परिचित न होने के कारण मन के लड्डू खाया करते हैं। सफलता लाभ नहीं कर पाते। यदि वे उन साधारण नियमों को जान पावे और विश्वास पूर्वक लाभ उठावें तो वे भी अपनी इच्छाशक्ति को दृढ़ बना सकते हैं और उसके आधार पर सफलता लाभ कर सकते हैं। नीचे कुछ ऐसे ही नियम बताये जाते हैं।

1. सूर्योदय से डेढ़ दो घंटे पूर्व उठो और शौचादि से निवृत्त होकर शुद्ध वायु में टहलने जाओ।
2. पेट में कब्ज न होने दो। हलका और सादा भोजन खूब चबा- चबा कर खाओ।
3. प्रातः शौच जाने से आधा घंटा पूर्व आधा सेर पानी पीओ
4. नित्य गहरी साँस लेने की क्रिया या प्राणायाम करों
5. मन को एकाग्र रखो। व्यर्थ बातों का सोच विचार मत करो। एक समय में एक ही विषय के ऊपर विचार करो। उसी में पूरी शक्ति लगाओ। यदि मन उचट कर कहीं दूसरी जगह जाना चाहे तो उसे रोक कर उसी काम में लगाओ
6. किसी काम को करने से पूर्व खूब सोच विचार लो। जब किसी काम को आरम्भ कर दो तो फिर उसमें किसी प्रकार का भय न करो। उस काम को पूरा करने का दृढ़ निश्चय कर लो और उसी के सम्बन्ध में सोच विचार करो।
7. अपनी शक्ति पर विश्वास रखो, अपने को नाचीज मत समझो। बुरे कामों से घृणा करो। सच्चाई, ईमानदारी और दूसरे के साथ सहानुभूति की भावना कभी मत छोड़ो।
8. नित्य एकान्त में बैठकर ऐसी कल्पना करो कि मेरा मनोबल दिन प्रतिदिन दृढ़ होता जा रहा है।
9. निराश कभी मत होओ। ऐसा विश्वास रखो कि ईश्वर मेरे लिए हितकारक परिस्थिति अवश्य पैदा करेगा।
10. किसी के लिए बुरा मत सोचो। ईर्ष्या, द्वेष को पास मत फटकने दो।
11. हर समय उद्योग में लगे रहो। समय बेकार मत जाने दो।
12. व्यर्थ काम मत करो। कुछ लोगों को चारपाई पर बैठकर पैर हिलाने की, जमीन खोदने की या शरीर को व्यर्थ हिलाने चलाने की आदत होती है यह ठीक नहीं। सदैव शान्त रहो। एक ही काम में शरीर की शक्ति लगाओ।
13. नित्य ऐसी कल्पना करते रहो कि मेरे मस्तिष्क के परिमाण सूक्ष्मतर होते जा रहे हैं और मानसिक शक्तियाँ बढ़ रही है।
14. विचारवान सज्जनों के साथ रहो और सुविचार युक्त पुस्तकें पढ़ो। अपने दुर्गुणों को तलाश करो और उनका परित्याग करो।
15. सदा मुँह पर मुस्कराहट बनाये रखो, दिन में एक बार खूब जी खोलकर हँसो।

देखने में यह नियम साधारण प्रतीत होते हैं। पर इनकी महत्ता बहुत अधिक है। चित्त जगह- जगह भटकने की अपेक्षा जब एक जगह स्थिर होता है, तो उसकी शक्ति सैकड़ों गुनी बढ़ जाती है और उसके बल से सारी मानसिक शक्तियाँ जग पड़ती हैं। आतिशी शीशे को साधारणतः धूप में रख दो तो कोई खास असर न होगा, किन्तु उसके द्वारा यदि सूर्य की किरणों को किसी एक बिन्दु पर एकत्रित करो तो आग पैदा हो जायेगी। बारूद को खुली जगह में रखकर आग लगा दो तो भक से जल जायेगी। कोई खास कार्य उसके द्वारा न होगा, किन्तु उसी को बन्दूक में भरकर एक ही दिशा में उसका प्रवाह जारी कर दिया जाय तो गोली को बहुत दूर तक फेंकने की शक्ति उसमें हो जाती है। मन जब तक संयमित नहीं है तब तक वह इधर- उधर उछलता रहता। ताँगे का घोड़ा जब इधर- उधर उछल कूदता है, तब तक रास्ता तय करने में बड़ी कठिनाई पड़ती है किन्तु जब वह चुपचाप ठीक प्रकार सरपट दौड़ने लगता है तो जरा सी देर में निश्चित स्थान पर पहुँचा देता है। मन की स्थिरता, प्रसन्नता, दृढ़ता और ईमानदारी यह सद्गुणों की खान, विकास के साधन और सफलता की सीढ़ियाँ हैं। इन चारों के आते ही सब प्रकार की मानसिक शक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं। गूँगे, वाचाल और पंगे पहाड़ पर चढ़ने वाले हो जाते हैं। पर यह भी ध्यान रखना चाहिए अच्छे विचार अच्छे शरीर में ही रहते हैं, इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना भी आवश्यक है। इन्हीं पाँच नियमों के आधार पर उक्त पन्द्रह नियम बने हैं। पाठक चाहे जब आजमा कर देख लें लाभ उन्हें अवश्य होगा।


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