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January 1940

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लोग नेक बनने की अपेक्षा विद्वान बनने का प्रयत्न अधिक करते हैं, फलस्वरूप वे भ्रम में पड़ जाते हैं।

दुनियाँ में कालापन बहुत है, पर वह सफेदी से अधिक नहीं है। यदि ऐसा न होता तो यह दुनियाँ रहने के सर्वथा अयोग्य होती।

धर्म जीवन की आशा है, आत्म रक्षा का अवलम्बन है, उसी के द्वारा दूषित वृत्तियों से मुक्ति होती है।

जो उपकार जताने का इच्छुक है, वह द्वार खटखटाता है। जिसमें प्रेम है, उसके लिये द्वार खुला है।

जो दूसरों को दिये बिना खुद लेना चाहता है वह पाता तो कुछ नहीं, खोता बहुत है।


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