मौन एक दैवी रेडियो है।

January 1940

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(ले.-श्री. महादेव देसाई)

उस दिन जब श्री शरत् चन्द्र बोस यहाँ आये तब मैंने उनसे पूछा, क्या आप सेगाँव गये थे? उन्होंने बतलाया कि हाँ, गया था और गाँधी जी से देर तक बात चीत भी की थी, लेकिन गाँधी जी ने अखबारी रैपर के एक टुकड़े पर यह लिखने के सिवा और कुछ नहीं कहा कि “परिवार के सब लोगों को मेरा प्रेम पहुँचा देना।” इसके बाद उन्होंने बतलाया कि “मैंने महात्मा जी से पूछा कि क्या दिल्ली में भी वे अपना मौन जारी रखेंगे। इस पर उन्होंने हाँ का संकेत किया। क्या यह अचरज की बात नहीं है?”

मौन जारी रहेगा या नहीं, यह तो मुझे मालूम नहीं, लेकिन यह मुझे इत्मीनान है कि मौन को अनिश्चित काल तक जारी रखने की उन्हें बड़ी ख्वाहिश है। इस मौन के दर्म्यान कई बार उन्होंने लिखा है कि “ईश्वर की यह कितनी अनुकम्पा हैं कि मैं मौन हूँ!” यह तो निस्सन्देह है कि मौन से उन्हें अपार आनन्द मिला है और बहुत सी बातों से से बच गये हैं, जो शायद क्रोधवेश से उनके मुँह से निकल जाती।

जब इस बात का ख्याल आता है तब यह महसूस किये बिना नहीं रहा जाता कि हम बकवासी लोग अगर मौन के गुण को समझ जायें तो दुनिया का लगभग आधा दुःख तो दूर हो ही जायगा। आधुनिक सभ्यता के फेर में पड़ने से पहले दिन-रात के चौबीस घंटों में से कम से कम 6 से 8 घन्टे तो हम खामोश रहते ही थे। लेकिन इस आधुनिक सभ्यता ने हमें रात को दिन में और निस्तब्धता को हल्ले गुल्ले में तब्दील करना सिखला दिया है। रोज के अपने काम-काज के बीच अगर हम कुछ घंटे ध्यान में भी लगायें और अपने मन को मौन द्वारा ईश्वर की आवाज सुनने के लिये तैयार करें तो क्या ही अच्छा हो! वह तो ऐसा दैवी रेडियो है जो हमेशा गाता रहता है। जरूरत सिर्फ यह है कि हम उसे सुनने के लिये तैयार हों। लेकिन यह तब तक सम्भव नहीं जब तक मौनावलम्बन-द्वारा शान्ति के साथ उसे न सुना जाय।

-हरिजन से


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