मैस्मरेजम क्या है?

January 1940

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मैस्मरेजम क्या है?

(प्रो. धीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती बी. एस. सी.)

मनुष्य शरीर हाड़ मांस का चलता फिरत पुतला मात्र नहीं है। ऐसी सुन्दर और चैतन्य मशीन अपने आप नहीं चलती। जब साधारण यंत्रों को चलाने के लिए काफी शक्ति लगती है तो क्या चैतन्य यंत्र अपने आप चलता रहता होगा? वैज्ञानिक हमें बताते हैं कि मनुष्य के शारीरिक और मानसिक कार्यों को चलाने में इतनी विद्युत शक्ति खर्च होती है जितनी से चार बड़े- बड़े मिल चल सकते हैं। मनुष्य की तमाम शक्तियों से सम्पन्न एक कृत्रिम मनुष्य बनाया जाय तो उसके संचालन में एक बिजली घर की पूरी ताकत लग जायेगी। हमारे शरीर में असंख्य कलपुर्जे ही नहीं वरन् उसमें अपना बिजली घर भी होता है। मृत्यु क्या है? उस बिजलीघर का फेल होना है। शरीर के तमाम कलपुर्जे बदस्तूर बने रहते हैं कोई कहीं से टूटता फूटता नहीं केवल विद्युत धारा बन्द हो जाती है।

हमारे शरीर की बिजली का क्षेत्र केवल अपने कल पुर्जे को चलाने तक ही सीमित नहीं है। वरन् वह बाहर की चीजों पर प्रभाव डालने और उनके असर को ग्रहण करने का कार्य भी करती है। एक वैज्ञानिक ने अपने गहरे अनुभव के बात बताया है कि हमारी बिजली का एक तिहाई भाग कल पुर्जों को चलाने में खर्च होता है। एक तिहाई से बाहरी चीजों के प्रभाव में से आवश्यकीय ग्रहण करने और अनावश्यक को धकेलने का कार्य होता है। शेष एक तिहाई बिजली संसार की दूसरी चीजों पर अपना असर डालती है। इन तीन भागों में से भी प्रत्येक तिहाई की शक्ति असंख्य मार्गों द्वारा खर्च होती रहती है। या यो कहना चाहिए कि उस पावर हाउस में असंख्य तार लगे हुए हैं और वे भिन्न भिन्न दिशा में विभिन्न कार्य करते रहते हैं। मानव शरीर की विद्युत का अन्वेषण करने वाले कहते हैं कि हाल के जन्में बालक की भी तमाम बिजली एकत्रित कर ली जाय तो उससे डाक गाड़ी का एक इंजन चल सकता है। बड़े होने पर यह शक्ति बढ़ती है। और जो व्यक्ति इसे बढ़ाने की कोशिश करते हैं उन्हें तो और भी अधिक मिल जाता है।

इस विद्युत शक्ति का अनुभव वैज्ञानिक ही करते हों सो बात नहीं है। अपने दैनिक जीवन में अनेक घटनाऐं हम देखते हैं। उसके द्वारा होने वाले हानि लाभों को भी जानते हैं। बचने के उपायों को भी जानते और उपयोग में लाते हैं। पर अभी तक उस पर वैज्ञानिक प्रकाश नहीं पड़ा है, इसलिए अपनी उन दैनिक कृतियों को या तो ढर्रे में पड़ जाने के कारण याद नहीं करते या अन्ध विश्वास समझ कर उपेक्षा कर देते हैं। परन्तु नियम और सिद्धान्त इस बात की प्रतीक्षा नहीं करते कि आप उन्हें जानते हैं या नहीं, आप उसके नफा नुकसान से परिचित हैं या नहीं। बिजली की शक्ति सम्पन्न तार को छूते ही आपकी मृत्यु हो जायेगी भले ही आपको पहले से उसका पता न हो। पृथ्वी की आकर्षण शक्ति का पता पहले पहल सर आइजक न्यूटन ने लगाया था, पर क्या वह शक्ति पहले से काम नहीं कर रही थी?

मनुष्य जब से कुछ समझदार हुआ तभी से उसकी प्राकृतिक बुद्धि ने उस अदृश्य शक्ति के अच्छे प्रभाव को ग्रहण करने और बुरे प्रभाव से बचने का उपाय ढूँढ़ निकाला। पृथ्वी द्वारा शरीर की बिजली खींची जाती है इसलिए प्रकृति ने गाय, भैंस, घोड़ों के पैरों में निर्जीव ठोस और रोकने वाले आवरण पैदा कर दिये। खुर एक खड़ाऊँ हैं जिनके द्वारा पशु शरीर और पृथ्वी की बिजलियों के बीच में दीवार खड़ी होती है। मनुष्य ने अपनी शक्ति खिंचती देखी तो खड़ाऊ और जूतों का आविष्कार किया। संसार व्यापी विद्युत के अन्य अनिष्ट कर प्रभावों से बचने के लिए पशुओं की खाल को उपयोग में लाना, रेशम के वस्त्र पहनना तथा कांसे के बर्तन में भोजन करना सीखा। हाथ में लकड़ी की लाठी या छड़ी हम क्यों धारण करते हैं? इसलिए कि बाह्य विद्युत के अनिष्ट कर प्रभाव से बचे रहें। यहाँ यह प्रश्न उठता है कि मनुष्येत्तर प्राणियों ने ऐसा क्यों नहीं किया? प्रकृति को अपने उन मूक पुत्रों की पहले से ही चिन्ता थी। मनुष्य बुद्धिजीवी है अपनी रक्षा खुद कर लेगा यह सोचकर उसने उसके साथ कुछ कंजूसी की है, पर अन्य प्राणियों को इफरात के साथ मुक्त हस्त होकर दिया है। उनकी शक्ति मनुष्य के मुकाबले बहुत अधिक हैं, इसलिए वह स्वयमेव बाह्य प्रभावों से लाभ प्राप्त करते हैं और हानि से बचे रहते हैं।

भारत के प्रसिद्ध क्रान्तिकारी और वैज्ञानिक श्री हंसराज वायरलेस ने बेतार के तार का एक यंत्र बनाने में छिपकलियों के शरीर की बिजली से काफी काम लिया था। अन्य पशु पक्षी अपनी विद्युत शक्ति से नित्य आश्चर्य जनक काम लेते हैं। खद्योत अपनी बिजली को चमका कर कैसा सुन्दर प्रकाश करता रहता है। एक प्रकार की मछली छोटे जल जन्तुओं का शिकार करते समय अपनी बिजली का ऐसा झटका देती है कि वह बेहोश हो जाते हैं। बड़े अजगर सर्पों की विद्युत से छोटी चिड़िया और मेंढक मूर्तिवत अचल हो जाते हैं। भेड़िये को देखते ही भेड़ का भागना तो दूर मुँह से आवाज तक निकलना बन्द हो जाता है। बिल्ली, शेर, बाघ आदि भी अपनी इस शक्ति से काम लेते हैं।

मनुष्यों में यह शक्ति पर्याप्त मात्रा में होती है। उसमें आकर्षण और विकर्षण दोनों ही धारायें विद्यमान रहती हैं। क्रोधित और रोष में भरे हुए व्यक्ति को सामने देखकर हमारे पाँव कापने लगते हैं और एक सुन्दर स्त्री को देखने के लिए बरबस आकर्षित हो जाते हैं। यह क्या है? यह उन्हीं आकर्षण- विकर्षण शक्तियों का प्रभाव है। वेश्याओं के यहाँ बदनामी, धन व्यय और स्वास्थ्य नाश होते हुए भी क्यों जाते हैं। अपनी स्त्री मिलने को क्यों उद्विग्न रहती हैं? सुन्दर बच्चों को खिलाने को मन क्यों ललचाता है? विरोधी विचार रखते हुए भी किसी के सामने जाकर पानी पानी क्यों हो जाते हैं? मित्रों पर सर्वस्व निछावर क्यों कर देते हैं? स्त्रियाँ पति पर प्राण क्यों देती हैं? किसी के बहकावे में लोग क्यों आ जाते हैं? यह सब आकर्षण शक्ति धारा का खेल है। जालिमों को देखकर क्यों डर लगता है? किसी प्रभावशाली व्यक्ति के सामने जाकर ठीक प्रकार बात क्यों नहीं कही जाती? दीवान दरोगा से बात करने में दम क्यों फूलता है? क्रोधी लोगों के पास से जल्द चले जाने को जी क्यों चाहता है? यह विकर्षण शक्ति धारा का असर है।

यह तो हुआ दैनिक जीवन में स्वाभाविक शक्ति का स्वयमेव होने वाला प्रभाव। विशेष अवसरों पर विशेष शक्ति द्वारा जान बूझकर डाला गया असर इससे भिन्न और बहुत अधिक शक्तिशाली होता है। यह पहले कहा जा चुका है कि हमारे अपने बिजली घर की शक्ति असंख्य अलग अलग तारों में होकर बह रही है। यदि दो चार तारों में चलने वाला प्रवाह एक ही तार में चालू कर दिया जाय तो वह पहले की अपेक्षा कही अधिक शक्ति सम्पन्न हो जाता है। और यदि दस- बीस, पचास चालीस तारों की शक्ति एकत्रित कर ली जाय तो और अधिक बल होगा। तात्पर्य यह है मनुष्य की विशृंखलित शक्तियों का यदि एकत्रीकरण हो जाय तो वह अत्यधिक प्रभावशाली हो सकता है और उससे आश्चर्य जनक एवं अलौकिक कार्य किये जा सकते हैं। मैस्मरेजम विज्ञान का स्त्रोत यही आत्म विद्युत है। इस विद्युत के कुछ तारों को इकट्ठे करके एक काम पर लगा देते हैं तब उसके द्वारा होने वाला कार्य अधिक वेग से होने लगता है। पन्द्रह वोल्ट पावर की बत्ती जितना प्रकाश देती है। पचास वोल्ट की बत्ती उससे बहुत अधिक करती है। अधिक प्रवाह छोड़ते ही पंखा अधिक वेग से घूमने लगता है। मनुष्यों का एक दूसरे पर स्वाभाविक और साधारण शक्ति से जो असर पड़ता है, उसे ही विशेष कर देने पर कुछ अधिक कार्य होता है। रोजमर्रा जो बात नहीं देखी जाती वही बात यदि कभी अचानक दीखने लगे तो हमें आश्चर्य होता है। मैस्मरेजम के चमत्कार देखकर आश्चर्य करने का भी यही कारण है।


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