विचारों का स्वास्थ्य पर प्रभाव

January 1940

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विचारों का स्वास्थ्य पर प्रभाव

ले. श्री दत्तात्रेयए रमाशंकर पराजपे न्याय तीर्थ

ईश्वर ने मनुष्य के मस्तिष्क का निर्माण इस प्रकार किया है कि उसमें उत्तम विचार रहें। बुरे विचार विजातीय हैं। वे मनुष्य के ऊपर सवार हो जाते हैं तो एक प्रकार के उसके स्वाभाविक तत्व का हरण कर लेते हैं। सती स्त्रियाँ दुराचारियों के बंधनों में पड़कर जिस प्रकार कष्ट पाती हैं और दिन दिन दुर्बल होती जाती हैं, वही दशा हमारे शरीर की होती है। बुरे विचार अपने साथ चिन्ता, भय, क्रोध, कलह आदि लाते हैं और यह ऐसी अग्नियाँ हैं जो थोड़े ही दिनों में सार भाग जलाकर आदमी को खोखला कर देती हैं। इस सम्बन्ध में कुछ प्रसिद्ध शरीर शास्त्रियों की सम्पत्तियाँ नीचे दी जाती हैं।

डॉ. आल्स्टन लिखते हैं- भय, उदासी, ईर्ष्या, घृणा, निराशा, अविश्वास आदि मानसिक विकार शरीर की स्वाभाविक क्रियाओं को मंद करके खून को सुखा देते हैं।

डॉ. वेन लिखते हैं- संताप और मनोव्यथा के कारण कई लोगों की मृत्यु हो गई और अनेकों का मस्तिष्क खराब हो गया। इस प्रकार का परिणाम स्वाभाविक ही है।

डारबिन साहब कहते हैं- चिरकालीन चिन्ता से रक्त की गति धीमी हो जाती है और चेहरे पर पीलापन, मांस पेशियों में शुष्कता आ जाती है। पलकें झूल पड़ती है, छाती बैठ जाती है, गरदन झुक जाती है एवं होट, शिर, जबड़ा आदि गिर जाते हैं। हँसते आदमी पर घोर उदासी छा जाती है।

मनोविज्ञान शास्त्री अलफम मेरियन कहते हैं- क्षोभ के कारण कई व्यक्ति अचानक मर गये। मानसिक क्षुब्धता शरीर पर ऐसे अनिष्ट कर परिणाम उपस्थित कर सकती है, जिससे वह मुर्दा कहा जा सके।

सर रिचार्डसन का अनुभव है कि- मानसिक कष्ट से होने वाला प्रमेह ठीक शारीरिक कारणों से होने वाले प्रमेह के समान होता है।

सर जार्ज पैगोट बताते हैं कि- असंख्य रोगियों को देखने के बाद मुझे यह पक्का विश्वास हो गया है कि फोड़े होने का प्रमुख कारण चिरकालीन चिन्ता होती है।

डॉ. मुर्चीसन का एक कथन है कि- कई रोगियों की जाँच करने पर यह स्पष्ट हो गया है कि जिगर के फोड़े का कारण पुरानी चिन्ता या मानसिक दुख होता है।

डॉ. मैडरले बताते हैं- निश्चय ही मानसिक क्षोभ के कारण शरीर की वृद्धि में रुकावट पड़ती है और धमनियाँ अपना काम ठीक प्रकार करने से इन्कार कर देती हैं।

डॉ. पमर गेट्स का दावा है कि- क्रोध, निराशा और क्षोभ शरीर में भयंकर विष उत्पन्न करते हैं, जिनसे भारी हानि होती है।

डॉ. तकेने का कथन है कि- लकवा, हैजा, यकृत रोग, बालों का जल्दी सफेद होना, गंजापन, रक्त की कमी, गर्भपात, मूत्ररोग, चर्मरोग, फोड़े, पसीने की अधिकता, दंत जल्दी गिरना आदि रोगों की जड़ में भय या सन्ताप छिपा होता है। हैजा या प्लेग से मरने वालों में बीमारी से मरने की अपेक्षा भय से मरने वालों की संख्या अधिक होती है।

इन महत्त्वपूर्ण सम्मतियों पर ध्यान देने से यह स्पष्ट हो जाता है कि मन में बुरे विचार लाने से शरीर का बड़ा अनिष्ट होता है। स्वस्थ रहने की इच्छा करने वालों को चाहिये कि सदैव प्रसन्न रहें। और बुरे विचारों को अपने पास भी न फटकने दें।


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