परिचय (कविता)

January 1940

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परिचय (कविता)

परिचय (कविता)

(ले. श्री मैथली शरण गुप्त)

बार बार तू आया,
पर मैंने पहचान न पाया।

हिम कम्पित कृश पाणि पसारे,
आया जब तू मेरे द्वारे,
लौट गया जो धक्का खाया। बार बार तू.।

दीन दृगों से निकल पड़ा तू,
बड़ा सरस था, बिकल बड़ा तू,
पर मैं कौतुक से मुसकाया। बार बार तू.

गलित अंग, दुर्गन्ध सना तू,
आया व्याकुल व्यथित बना तू,
हट कर मैंने तुझे हटाया। बार बार तू.

आर्त गिरा कानों में छाई,
वह थी तेरी आहट लाई,
पर मैं उस पर ध्यान न लाया। बार बार तू.

पीड़ित के निःश्वास अरे रे,
मैं क्या जानूं कर थे तेरे,
मुझ पर था कितना मद छाया। बार बार तू.

अब जो पहचानूं मैं तुमको,
तो तू भूल गया है मुझको,
मैं हूँ जिसने तुझे भुलाया,
बार बार तू आया।

(माधुरी से)


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