मनुष्य की जीवन की सच्ची शोभा

August 1998

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जमीन फाड़ती है, पत्थरों से टकराती है तब कहीं आगे बढ़ती है और अपने अस्तित्व की रक्षा कर पाती है। मुलायम मिट्टी के बिछौने में पड़ा हुआ बीज यदि ऊपर ढके ढेलों को ढकेलने की हिम्मत नहीं दिखलाता, तो बीज से वृक्ष बनने का गौरव उसे कैसे मिल पाता? आगे बढ़ने वाली जातियों का इतिहास जिन्होंने भी ध्यान पूर्वक पढ़ा है, तो यही पाया है कि उन्नति के शिखर के लिए उन्हें संघर्ष के बीच बढ़ना और रास्ता बनाना पड़ा और यह सिद्ध करना पड़ा कि बाधाओं के मुकाबले उनका साहस और संघर्ष की शक्ति चुक नहीं सकती। तब कहीं उन्हें सफलता का राजसिंहासन मिल पाया।

सच्चे अर्थों में जीवित वही है जो अत्याचार से लड़ सकता है। अन्याय और अनीति से टकरा सकता है, रोष प्रदर्शित कर सकता है। सामने अनीति होती रहे और चुपचाप खड़े देखते रहे, यह कायरता का प्रमुख चिह्न है। वीरतापूर्वक जीने की नीति में ही मानवीय प्रगति का आधार छिपा हुआ है। हमें दुनिया की जिन्दादिल कौम की तरह अपना वर्चस्व बनाए रखना है, तो इसके अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं कि हम भीतर और बाहर की बुराइयों से लड़ने के लिए एक तत्पर सिपाही की भाँति अपना प्रत्येक मोर्चा मजबूत बनाये और आज से, अभी से अनीति को मिटाने में जुट जायें।

आगे बढ़ने की इच्छा और नये जन्म में कोई अन्तर नहीं है। अन्तरात्मा कहे कि उन्नति करनी चाहिए तो यह समझना चाहिए कि तुम्हारी जीवनी-शक्ति अदम्य साहस और विश्वास से ओत-प्रोत है। अब एक ही बात शेष रहती है, वह यह कि उठो और बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ चलो। फिर जब तक मंजिल नहीं मिल जाती, संघर्ष का संबल मत छोड़ो। वीर और विजयी की भाँति मुश्किलों से टकराते हुए आगे बढ़ते ही चले जाओ।

साहसी व्यक्तियों को शक्ति उधार नहीं माँगनी पड़ती, उनका अन्तरात्मा ही उन्हें बल प्रदान करता है। नीति के पथ पर बढ़ने वाले को ईश्वर का विश्वास और उसका अनुग्रह काफी है। ऐसा व्यक्ति जब बुराइयों को, अन्ध परम्पराओं को और सामाजिक कुण्ठाओं को रौंदता हुआ आगे बढ़कर चल पड़ता है, तो उसका अनुसरण करने वाले अपने आप उपज पड़ते है। फिर संसार की कोई शक्ति उसे पराजित करने में समर्थ नहीं होती।

एक बात याद रखने की है, वह यह कि सच्चाई और ईमानदारी से प्रेरित संघर्ष ही स्थायी प्रगति का आधार है। अकेला संघर्ष ही काफी नहीं, उसमें सत्य का समन्वय होगा, तो ही भीतरी शक्ति का आशीर्वाद मिलेगा।

अन्याय एक चुनौती है, जो इन्सान की इंसानियत को ललकारती है। उसका उत्तर कोई डरपोक और कायर नहीं दे सकता। उस बेचारे को अपने स्वार्थ, अपने प्रलोभनों से ही मुक्ति कहाँ?

पर जिनमें मनुष्यता शेष है, वे अनीति और अन्याय के प्रतिकार के लिए जान की बाजी लगाते हैं। मनुष्य जीवन की सच्ची शोभा भी यही है।


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