मनुष्य को अपनी अपूर्णता बुरी लगी। उसने पूर्ण बनने की सोची और उपाय पूछने ब्रह्माजी के पास पहुँचा। ब्रह्माजी ने कहा - वत्स, सत्य को धारण करना पूर्णता है, जिसके पास जितना उतनी ही पूर्णता प्राप्त कर लेगा, सो, तू सत्य की उपासना कर।
मनुष्य ने विनीत भाव से पूछा-भगवन्! सत्य की उपासना कैसे होती है? प्रजापति ने कहा-उचित जिज्ञासा करते हुए उसका श्रद्धापूर्वक सही समाधान खोजने की चेष्टा को उपासना कहते हैं। इसी आधार से पूर्णता प्राप्त होती है।