इष्टान् भोगान्हिवो देवा दास्यंते यज्ञ भाविताः।
—गीता
यज्ञ से प्रसन्न होकर देवता अभीष्ट सुख प्रदान करते हैं।
सप्रेद्धो अग्निर्जिह्वाभि रुदेतु हृदयादधि।
—अथर्व
जो हवन करते हैं उनके हृदय में परमात्मा का तेज प्रकाशित होता है।
यज्ञो वै श्रेष्ठतरं कर्म।
यज्ञ संस्कार का सर्व श्रेष्ठ धर्म कृत्य है।
यो यज्ञे यज्ञ परमैरिज्यते यज्ञ संक्षितः।
परमात्मा यज्ञ मय हैं, यज्ञ रूप है उनका पूजन यज्ञ द्वारा ही होता है।
यज्ञाः कल्याण हेतवः।
यज्ञ से सबका कल्याण होता है।
महायज्ञैश्च यज्ञैश्च ब्राह्मीयं क्रियते तनुः।
यज्ञ और महायज्ञों द्वारा यह शरीर ‘ब्राह्मण’ बनता है।
कस्मैत्व विमुञ्चति तस्मै स्वं विमुञ्चति।
जो यज्ञ को त्यागता है, उसे परमात्मा त्याग देता है।
यज्ञादिभिर्देवाः शक्ति सुखादीनाम्।
यज्ञ से देवत्व, शक्ति, सुख आदि सम्पत्तियाँ मिलती हैं।
यज्ञोऽयं सर्व कामधुक्।
यज्ञ से सब वासनायें पूर्ण होती हैं।
निष्कामः कुरते यज्ञ स परं ब्रह्म गच्छति।
निष्काम भाव से यज्ञ करने से परमात्मा की प्राप्ति होती है।
यज्ञेन घ्रियते पृथ्वी यज्ञ स्तारयति प्रजाः।
यज्ञ ही पृथ्वी को धारण किए हुए हैं। यज्ञ से ही जनता का निस्तार होता है।
यज्ञैरेव महात्मानो वभू वुरधिकाः सुराः।
यज्ञों द्वारा सत्पुरुष देवता बन जाते हैं।
तां वेद विहितमिष्टिमारोग्लार्थी प्रयोजयेत्।
आरोग्य चाहने वाले को वेदोक्त रीति से हवन करना चाहिए।
नायं लोकोऽस्त्य यज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम।
—गीता
यज्ञ न करने वाले को लोक और परलोक कुछ भी प्राप्त नहीं होता।
यज्ञो विश्वश्य भुवनस्य नाभिः।
—अथर्व
यज्ञ ही समस्त विश्व ब्रह्माण्ड का मूल केन्द्र है।
अनाहूतोऽध्वरं ब्रजेत्—
बिना बुलाए भी यज्ञ में सम्मिलित होना चाहिए।
अयज्ञियो हतवर्चा भवति।
—अथर्व
यज्ञ रहित मनुष्य का तेज नष्ट हो जाता है।
तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्।
—गीता
वह सर्व व्यापक परमात्मा सदैव यज्ञ में निवास करता है।
नास्ति यज्ञ समं दानं, नास्तियज्ञ समोविधिः।
—महाभारत
यज्ञ के समान और कोई दान नहीं। यज्ञ के समान और कोई विधान नहीं।
यज्ञेन हि देवा दिवंगता यज्ञेनासुरा नपानुदन्तः।
—नारायणोपनिषद्
यज्ञ से ही देवताओं ने स्वर्ग का अधिकार प्राप्त किया और असुरों को हराया।
यज्ञार्थात्कर्मणोऽ यत्रलोकोऽयं कर्म बन्धनः।
—गीता
यज्ञ के निमित्त किए हुए कर्मों के अतिरिक्त और सब कर्म बन्धन रूप हैं।