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February 1955

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जो साध्वी निर्धन रोगी दुःखी राह चल कर थके हुए भी पति की पुत्र के भाँति वत्सलता से (काम भावना में नहीं) सेवा करती है वह अपने धर्म का पालन करती हैं।

जो स्त्री अपने पति की जितनी चाह रखती है, उतनी काम भोग ऐश्वर्य, और सुख की भी नहीं करती उसे धर्म प्राप्त होता है।


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