शरीर की मालिश कैसे?

February 1955

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(श्री लक्ष्मीनारायण टण्डन ‘प्रेमी’)

शरीर की माँस पेशियों को दबाने तथा मथने का नाम ही मालिश है। थपथपाकर, मुक्के मार मारकर सहलाकर, रगड़कर, कम्पन द्वारा, जोर से कड़े हाथ से तथा हलके मुलायम हाथ से अनेक प्रकार से मालिश होती है। इन विभिन्न उपायों से हम विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। थकावट होने पर पैरों में मुक्के मारे जाते हैं। दर्द होने पर हाथ, पीठ या छाती की त्वचा रगड़ते हुए हाथ आगे बढ़ाते हुए मालिश करते हैं, पैरों के तलुओं को सहलाने से नींद बुलाते हैं, सर−दर्द में माथे पर हाथ फेरते हैं, सर के बालों को थपथपाते या मन्थन करते, चुटकी बजाते हुए हम तेल मलते हैं। गठिया, लकवा, वात रोग, स्नायुओं में दर्द, शोथ, गाँठों में दर्द या सूजन आदि में घर्षण से लाभ होता है। दलन या मरोड़ से चर्बी की अधिकता, पक्षाघात, गठिया, स्नायु, दौर्बल्य या दर्द, कोष्ठबद्धता शरीर के अंगों में सूजन आदि में लाभ होता है। कम्पन द्वारा पेट की अफरन स्नायु−शूल आदि में लाभ होता है। थपकी द्वारा उन स्थानों की मालिश अच्छी होती है। जहाँ माँस अधिक होता है—उदाहरणार्थ जाँघ, नितंब या पीठ आदि में। अजीर्ण, कोष्ठ बद्धता, मूत्राशय सम्बन्धी रोगों, स्त्रियों के मासिक धर्म रुकने, पेट सम्बन्धी रोगों, पीलिया आदि में इससे लाभ पहुँचता है। इसमें मुक्के मारकर मालिश होती है। ग्रंथि−संचालन से गाठों तथा जोड़ों में शक्ति बढ़ती है। चूँकि इसमें शरीर तथा जोड़ों को खींचना, चटकाना या टेढ़ा मेढ़ा करना पड़ता है अतः कमजोर रोगियों को प्रारम्भ में कम देर तथा हल्के तरीके से संचालन करना चाहिए। फिर ज्यों−ज्यों शक्ति आती जाय हम समय तथा मात्रा में परिवर्तन कर सकते हैं। इस मालिश का सम्बन्ध चूँकि गाँठों से है अतः गठिया, वातरोग, गाँठों में दर्द, जोड़ों की कमजोरी, ब्लड−प्रेशर तथा हृदय रोग में इससे लाभ होता है।

पेट की मालिश करते समय यह ध्यान रहे कि भोजन को किए हुए कम से कम तीन घण्टे हो गये हों तथा पेशाब कर चुका हो। हाथ घुमा घुमा कर पेट की मालिश करना चाहिये। शरीर के विभिन्न स्थानों की मालिश विभिन्न ढंगों से होती है।

पेट की मालिश कुछ दशाओं में वर्जित है। स्त्रियों के गर्भ होने नर, मासिकधर्म की दशा में, पेट में गाँठ या ट्यूमर होने पर, हार्निया रोग में, एपेंजीसाउटिस, दस्त आने पर, आँख आने पर, पेट में किसी प्रकार का घाव होने पर आदि दशाओं में पेट की मालिश वर्जित हैं। यकृत की मालिश भी पेट की मालिश से ही हो जाती है। साधारणतया सारे शरीर की मालिश करना चाहिये। हाँ यदि अंग विशेष में कष्ट हो तो केवल उसी भाग पर ध्यान केन्द्रित रखना चाहिये।

मालिश करने वाला यदि स्वयं रोगी होगा तो मालिश कराने वाले को उसका रोग आ सकता है। अतः मालिश स्वस्थ मनुष्य से करायें। जिसके हाथ में पसीना बहुत आता हो उससे भी मालिश न करावे। मालिश उसी से करावें जिसका हाथ कोमल तथा सूखा हो। मालिश करते समय अत्यधिक जोर नहीं लगाना चाहिये। फिर इतनी देर मालिश न की जाय कि शरीर का चमड़ा कुपित हो जाय। बच्चों तथा बूढ़ों का चमड़ा तो शीघ्र ही गरम हो जाता है अतः उन्हें तो थोड़ी देर तक ही मालिश करना चाहिये। पेट की मालिश के लिए 10−15 मिनट तथा सारे शरीर की मालिश के लिए आध घण्टे से एक घण्टा तक पर्याप्त है। मालिश कराने वाले को अपने शरीर को मालिश कराते समय बिल्कुल ढीला छोड़ देना चाहिये। यों तो मालिश से सभी को लाभ है, पर बच्चों तथा दुबले पतले व्यक्तियों को इससे अत्यन्त तथा अति शीघ्र लाभ होता है।

मालिश प्रायः कडुवे तेल से की जाती है। सरसों, तिल तथा जैतून के तेल के अतिरिक्त घी से भी मालिश कुछ रोगों में की जाती है। जैतून का तेल सर्वोत्तम होता है। मालिश सदा बन्द स्थान पर होना चाहिये। पर कमरे में हवा आने के लिए खिड़की आदि खुली रहें। इस बात का ध्यान रहे कि सीधी हवा का झोंका रोगी के शरीर पर न पड़े। गर्मियों में खुले में मालिश करा सकता है। पहलवान मालिश बहुत कराते हैं। मालिश के बाद स्नान कर लेने से न शरीर से चिपचिपापन दूर हो जाता है, वरन् लाभ भी होता है। परन्तु स्नान करके कपड़े आदि पहन ले जिससे शरीर गर्म हो जाये।

मालिश से स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य और भी ठीक होता है तथा रोगी का रोग भी दूर होता है। अजीर्ण, कोष्ठबद्धता, आँतों की कमजोरी, बवासीर, अनिद्रा रोग में, स्नायु−दौर्बल्य, दर्द, लकवा आदि में तो राम−बाण है। मालिश से रक्त−सञ्चार तथा परि−भ्रमण में तीव्रता आता है। स्थूलता को कम करने, मलेरिया, मधुमेह तथा क्षय आदि रोगों में भी मालिश लाभ करती है।

चर्म रोग पर मालिश कमी न करे, अन्यथा रोग बढ़ेगा। ट्यूमर होने पर मालिश न करे अन्यथा वह कैंसर का रूप ले सकता है। बुखार की दशा में मालिश हानिकर है। क्षय तथा प्लूरेसी में भी मालिश तभी लाभ करेगी जब ज्वर न हो, अन्यथा हानि करेगा। फोड़ा, फुन्सी, चोट आदि होने पर उन स्थानों को बचाकर सावधानी से मालिश करना चाहिये।

संक्षेप में हम कह सकते हैं कि मालिश, मर्म−चिकित्सा का एक अंग है।


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