आप तुनकमिज़ाज तो नहीं हैं?

February 1955

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(प्रो. पी. रामेश्वरम्)

मेरे पड़ौस में एक सज्जन हैं जो चिढ़ने और नाराज होने के बड़े ही प्रवीण हैं। जहाँ किसी की कोई छोटी मोटी कभी नजर पड़ जाये, वे उसको खाने को दौड़ते हैं। पत्नी को झिड़कना, बच्चों पर दिन भर चीखना−चिल्लाना, नौकरों को दिन भर श्लेषात्मक पदवियों से विभूषित करना उनका दैनिक कृत्य है। फिर भी उनके पुत्र महाशय सुधरने का नाम ही नहीं लेते, नौकर आज्ञाकारी नहीं हो पाते। वे समझ गये हैं कि इनकी आदत ही कुछ ऐसी पड़ गई है। इसी कारण उनकी बात की वे कोई भी परवाह नहीं करते।

यह सभी मानते हैं कि अपने से छोटों को शिक्षा देनी चाहिए, परन्तु हर समय नहीं। शिक्षा देने तथा ताड़ने का पृथक समय होता है। सभी लोगों को ताड़ना हर समय सह्य नहीं हो सकता। भूल होना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। विशेषतया बच्चों और नवयुवकों से भूल होना और भी सहज है। वे जिस समय भूल करें, उस समय यदि डाँट डपट अथवा मार−पीट से काम न लेकर उन्हें समझाया जावे और भविष्य में अच्छा काम करने का उत्साहित किया जावे तो यह देखा गया है कि इससे अत्यन्त लाभ होता है। बच्चों को बार बार डाटना, अथवा मारना−पीटना उन्हें उद्दण्ड, जिद्दी तथा निर्लज्ज बना देता है और अन्त में उन्हें चिल्लाने−पीटने वालों का भी भय नहीं रहता।

पाश्चात्य विचारक लार्ड चेस्टरफील्ड ने किशारों और नवयुवकों के मनोविज्ञान का सूक्ष्म अध्ययन किया है। उनके कथनानुसार “बच्चों पर मारने पीटने की अपेक्षा उनको समझाने बुझाने और उत्साह देने का बड़ा प्रभाव पड़ता है।” यह बात केवल बच्चों में ही नहीं वरन् बड़ों के भी है। उदाहरणार्थ कल्पना करें कि आप किसी कार्यालय में एकाउन्टेन्ट हैं। आपसे भूल हो गई। यदि आपका अफसर आपको एकान्त में बुलाकर कहे “मिस्टर! ऐसी भूल से हमारी और आपकी दोनों ही की बदनामी है तथा कार्य में भी हानि होती है। हो गया सो हो गया। भविष्य में अधिक सावधान रहने की आवश्यकता है” तो इसका प्रत्यक्ष परिणाम यह होगा कि ‘अनायास ही आपके मुख से निकल पड़ेगा। जी हाँ! श्रीमन्! मुझे अपनी भूल पर खेद है। भविष्य में ऐसा अवसर दोबारा नहीं आयेगा।” और निस्सन्देह आपका सतत् प्रयास रहेगा कि कोई भूल न हो। किन्तु इसके विपरीत, यदि वह अवसर आपके साथी क्लर्क आदि के सम्मुख ही आपको फटकारे और कहे कि—आपने क्यों ऐसी भूल की? अब मैं तुम्हारी रिपोर्ट करता हूँ।” आदि आदि। तो आपको अपनी भूल पर पश्चाताप करना तो दूर रहा, उल्टे उस अवसर के ही दोष नजर आने लगेंगे। आपका सुधरना तो काफी दूर की बात रही। अतएव स्पष्ट है कि जितना प्रभाव समझाने बुझाने का पड़ता है उतना चीखने चिल्लाने व डाट डपटने का कदापि नहीं पड़ता। डाटना डपटना ही यदि अनिवार्य हो तो एकदम एकान्त में होना चाहिए न कि सबके सामने।

जहाँ तक दूसरों के दोष ढकने का प्रश्न है, इस संसार में कोई भी व्यक्ति निर्दोष नहीं है। वह तो अभी होना है। तब तक हमें दूसरों के दोष ढूंढ़ने की बुरी प्रवृत्ति को दूर करना चाहिये। किसी की भूल को सम्मुख उसे बताकर उसे ठीक कराना असम्भव ही है इसके दो प्रभाव अवश्य पड़ते हैं। एक तो दूसरों को बुरा लगता है और उसका जी दुखता है तथा दूसरे वे बिना बताये ही आपके शत्रु बन जाते हैं।

चिड़चिड़े स्वभाव के व्यक्ति आसानी से मिल सकते हैं जिनमें सहनशीलता नाममात्र को भी नहीं होती। जहाँ कोई बात अपने मन के विरुद्ध हुई बस बिगड़ पड़ेंगे। ऐसे व्यक्ति को झूठ मूठ ही बहकाकर विनोद किया जा सकता है। वह कभी भी प्रसन्न चित्त दिखाई नहीं पड़ता। कमरे में कहीं गन्दगी पड़ी रह गई तो नौकर पर फटकारों की वर्षा की जा रही है। बच्चे मेज पर रखे हुए कागजात को यदि थोड़ा−बहुत इधर उधर कर गये तो न केवल उनकी, वरन् उनकी माँ तक की खैर नहीं। ऐसे तुनकमिज़ाजी व्यक्ति न स्वयं सुख से रह पाते हैं और न उनके सम्बन्धित तथा संपर्क में आने वाले। सब कुछ होते हुए भी उनके लिए, इस संसार में, कुछ नहीं है।

जरा जरा सी बात में चिढ़ने, नाक भौं सिकोड़ने, डांटने डपटने और गाली गलौज देने की आदत छोड़ ही देनी चाहिए। भूल करने वालों को समझाना बुझाना तथा उत्साह दिलाना चाहिए। किसी के अवगुणों को न देखें वरन् उसके गुणों को देखकर प्रवृत्त रहने का उपदेश देते रहें। अपने घर में अपनी स्त्री तथा बच्चों के साथ प्रेम और सभ्यता का व्यवहार करें। कभी उन्हें अपशब्द न कहें और न उनसे कड़ाई का व्यवहार करें।

आपका घर प्रेम मन्दिर होना चाहिए। घर में जितने भी प्राणी हों प्रेम के उपासक हों। सहनशील हों। परस्पर सबमें प्रीति हो। बहुत से व्यक्ति दोहरी जिन्दगी जीने के अभ्यस्त हो गये हैं। बाहर तो वह बड़े ही सभ्य एवं विचारक और नीतिज्ञ बनते हैं किन्तु घर में घुसते ही उनकी जिह्वा वश में नहीं रहती। छोटी मोटी बातों पर ही बिगड़ पड़ते हैं। गाली बकते हैं, चिल्लाते हैं। ऐसे व्यक्ति न केवल असभ्य हैं, अपितु समाज के शत्रु भी हैं। उनसे कुटुम्ब पर तथा समाज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उनका घर दुखमय बना रहता है। ऐसा जीवन मृत्यु जैसा ही है।

अतएव सुख और शान्ति से जीवन बिताने के लिए मधुर भाषण एवं सद्व्यवहार परमावश्यक हैं। जिस समय आप काम पर से लौटें, तो घर में चरण रखते ही सबमें आनन्द की लहर फैल जावे। मुन्ना और मुन्नी आपको देखते ही आपसे चिपट जाएँ। धर्मपत्नी मधुर मुस्कान से आपका स्वागत करे। नौकर चाकर भी सच्चे हृदय से आपकी सेवा करने को तैयार हो जावें। तब समझ लीजिए कि आप तुनकमिज़ाज नहीं हैं।


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