बुद्धिमानों! मूर्ख क्यों बनते हो।

November 1948

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मनुष्य की बुद्धिमत्ता प्रसिद्ध है। उसकी चतुरता क्रिया कुशलता और सोचने की अद्भुत शक्ति की जितनी प्रशंसा की जाय उतनी ही कम है सृष्टि का मुकुटमणि होने का गौरव उसने अपनी बुद्धिमता के बल पर प्राप्त किया है और विविध दिशाओं में अनेकानेक आविष्कार करके अपने को साधन सम्पन्न बनाया है। इतना होते हुए भी हम देखते हैं कि मनुष्य में मूर्खता की मात्रा कम नहीं है।

हम नित्य असंख्यों को मरते हुए देखते हैं पर अपने आपको अमर जैसा अनुभव करके काम और लोभ के फंदे में फँसे रहते हैं। पाप के दुष्परिणामों से असंख्यों प्राणी दुख से बिलबिलाते हुए देखे जाते हैं उन्हें देखते हुए भी हम पाप करते हैं और सोचते हैं कि पाप के फल से मिलने वाले दुख से बचें रहेंगे। क्षणिक सुखों के बदले चिर कालीन सुख शान्ति को ठुकराते रहने वालों की संख्या कम नहीं है। इन क्रिया कलापों को किस प्रकार बुद्धिमानी कहा जायेगा।

साँसारिक मनोरंजन की बातों में बुद्धिमानी दिखाना और आत्म स्वार्थ को भूले रहना यह कहाँ की समझदारी है। पाठको मूर्ख मत बनो। मनुष्योचित बुद्धिमता को अपनाओ खिलौने रंगने के लिए अपना रक्त मत बहाओ, सच्चे स्वार्थ को ढूंढ़ो और परमार्थ की और कदम बढ़ाओ।

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