(डॉ. गोपालप्रसाद ‘वंशी’, बेतिया)
सौंदर्य फैशन में नहीं है। सौंदर्य हृदय के आदर्श गुणों में है-सौंदर्य बोलचाल, रहन−सहन, आचार-व्यवहार, विनय-नम्रता, सच्चाई-सफाई, स्वास्थ्य और शक्ति आदि की स्वाभाविक उच्चता में है जिसका हृदय सुन्दर और मधुर है, वही सब से बढ़कर सुन्दर है।
उद्यम, साहस, धैर्य, बल, बुद्धि और पराक्रम ये छः गुण जिस मनुष्य में हैं, वह सब कुछ पाता है।
प्रेम और वासना में उतना ही अन्तर है, जितना कंचन और काँच में। प्रेम की सीमा भक्ति से मिलती है और उनसे केवल मात्रा का भेद है। भक्ति में सम्मान का, प्रेम में सेवा-भाव का आधिक्य होता है। प्रेम के लिये धर्म की विभिन्नता कोई बन्धन नहीं है। ऐसी बाधाएँ उस मनोभाव के लिये है-जिसका अंत विवाह है, उस प्रेम के लिये नहीं-जिसका अन्त बलिदान है।
प्रेम और भक्ति दोनों ही दिल से जो लगाने को कहते हैं मगर प्रेम दिल को उधर ही जाने देता है, जिधर वह आप से आप जाता है और भक्ति उसे उधर चलने को कहती है, जिधर सत्य रास्ता बतावे।
आत्म स्वातंत्र्य का खून करके अगर जीवन की चिन्ताओं से निवृत्ति हुई तो क्या? आत्मा इतनी तुच्छ वस्तु नहीं है कि उदर-पालन के लिए सबकी हत्या की जाय।
हृदय को समुद्र की भाँति महान कर लो। संसार की छोटी-छोटी बातों से ऊपर उठ जाओ। यहाँ तक कि अशुभ घटना होने पर भी आनन्द मनाओ। दुनिया को एक तस्वीर की तरह समझो, याद रक्खो कि संसार की कोई भी वस्तु तुम्हें विचलित नहीं कर सकती।
ब्रह्म वस्तु (वीर्य) जब हमारे पास है तभी तो आनन्द प्राप्त होता है, नहीं तो रमणी के देह में तो कुछ भी नहीं है। जो चीज देह से निकलते समय क्षण काल के लिये इतना आनन्द दे जाती है, यदि उसको देह में रखा जाय तो कितने आनन्द की प्राप्ति हो सकती है।
भोजन की मात्रा को आधा कर दो, पानी जितना पीते हो उसका दूना पीओ; जितना हंसते हो उसका तिगुना हंसो, चौगुना व्यायाम करो। बुरी आदतों को छोड़ो। खराब संगति में रहने की अपेक्षा अकेले ही रहो। कभी हतोत्साह मत होओ। बुरे विचारों को अपने मस्तिष्क में स्थान न दो।
प्रभु से बल की याचना करो और प्रण करो कि पुनः कदापि पाप न करोगे, औषधि सेवन का त्याग दो और प्रकृति माता की प्रेम भरी गोद का आश्रय लो। स्वास्थ्य रूप दीर्घ जीवन का रहस्य ब्रह्मचर्य में ही है।
रोग, शोक अपने ही कर्मों का परिणाम है।
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