गीत संजीवनी-2

जीवन ईश्वरीय अनुकम्पा

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जीवन ईश्वरीय अनुकम्पा का अनुपम अनुदान है।
इसको पाकर, शेष न रहता, फिर कोई वरदान है॥

जीवन है प्रत्यक्ष देवता, जिसने इसको साध लिया।
उसने अपने ही हाथों में, ऋद्धि- सिद्धि को बाँध लिया॥

यह जीवन ही पारसमणि है, सोने सा चमकाता है।
यह जीवन ही चन्दनवन है, जो इसको महकाता है॥
यह अमृत है, कल्पवृक्ष है, महिमा अरे महान् है॥

एक मूर्ख जिस पर बैठा था, काट रहा उस डाल को।
‘‘विद्योत्तमा’’ ब्याह दी उससे, धूर्तों ने चल चाल को॥

‘‘कालिदास’’ बुद्धि का हेटा, और कुरूप प्रसिद्ध है।
पर इतिहास साक्षी देता, सरस्वती का सिद्ध है॥
जीवन साधा और बन गया, अद्वितीय विद्वान है॥

सदन कसाई, सूरदास जी, वाल्मीकि तुलसी गणिका।
जीवन साध लिया जिन- जिनने, कायाकल्प हुआ उनका॥

जीवन है प्रत्यक्ष देवता, मन चाहा फल देता है।
विकसित जितनी हुई पात्रता, वह उतना ही लेता है॥
नर से नारायण बन जाता, जीवन वह भगवान् है॥

मुक्तक-

जिन्दगी भगवान का, वरदान है।
जिन्दगी भगवान की, पहचान है॥
तप सके जो, साधना में जिन्दगी।
जिन्दगी ही श्रेष्ठ, सुमधुर गान है॥    
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