गीत संजीवनी-2

जिसने जल- जलकर

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जिसने जल- जलकर सारे, जगती तल में नव ज्योति जलाई।
धन्य हुई उसकी तरूणाई॥

छाई जब जग में अंधियारी, मिटने लगी मनुजता प्यारी।
अन्धी भौतिकता के पीछे, दौड़ पड़ी जब दुनियाँ सारी।
अमृत- कलश खोज लाने की, तब जिसने हिम्मत दिखलाई॥

अपने पौरुष से जो पाया, वह सारे जग को दे आया।
जिसकी करुणा के प्रताप से, हिंसा ने भी शीश झुकाया।
प्रेमामृत की धार बहाकर, प्यासे जग की प्यास बुझाई॥

जिसके लघु प्राणों की बाती, नवयुग की बन गई प्रभाती।
युग के सृजन स्वरों को सौंपी, जिसने निज जीवन की थाती।
अंगारों पर कदम बढ़ाकर, जिसने जग को दिशा दिखाई॥

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