गीत संजीवनी-2

जिसके हों पदचिह्न अमिट

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जिसके हों पद्चिह्न अमिट, वह ही इतिहास सृजेता।
जिसने जीते हृदय वही, होता है विश्व विजेता॥

लिख देता जो काल पट्ट पर, अपनी जीवन गाथा।
सभी झुकाते आये उसके, सम्मुख अपना माथा॥
जिसने बाधाओं से टकराकर, भी मंजिल पायी।
उसको ही इस जगती ने भी, जयमाला पहनाई॥
जिसने इस दुनियाँ को केवल, रंगमंच ही माना।
और मात्र अभिनय अपने इस, जीवन क्रम को जाना।
वह न लिप्त होता बस रहता, है बनकर अभिनेता॥

वह स्वर क्या जो खो जाये, जग के हाहाकारों में।
चाँद वहीं होता जो अलग, दिखाई दे तारों में॥
जग के कोलाहल में भी जो, मस्ती से गाता है।
उसके स्वर को ही युग की, आवाज कहा जाता है॥
पीता है जो दर्द विश्व- मानव का मानव बनकर।
और दर्द से मुक्ति दिलाता, अमृत गीत रचकर॥
वह ही सच्चा युगगायक, सच्चा इतिहास प्रणेता॥

वह कैसा मानव जो केवल, स्वार्थ हेतु खप जाये।
वीर वही जो परहित में, कुछ कुर्बानी कर जाये॥
जिसके मन को सन्त, शहीदों का ही पथ है भाता।
जिया वही नर जिसे शान से, मरना भी है आता॥
जिसने जग का दर्द बँटाया, सुख उल्लास लुटाया।
उसने निश्चित ही अपने, जीवन को धन्य बनाया॥
वह सच्चा इतिहास पुरुष बन, नाम अमर कर लेता॥

मुक्तक- जो औरों के लिए खिले मधुमास बन गये।
जो औरों के लिए जिए, इतिहास बन गये।
जिनने मानवता की पीर नहीं पहचानी।
वे पतझड़ ही रहे, और उपहास बन गये॥
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