गीत संजीवनी-2

चाहता है यदि सफलता

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चाहता है यदि सफलता, एक ही मंजिल बना तू!

माँगती कुर्बानियाँ, युग ज्वाल! तू आवाज सुन ले।
रात भर करना बसेरा, एक ही बस डाल चुन ले॥
दो कदम ही चल भले तू, छोड़ जा पदचिन्ह अपने।
हों भले सीमित मगर, साकार कर निर्माण सपने॥
सो सके सुख नींद मानव, एक ऐसा घर बसा तू!

हर डगर पर पाँव रखकर, लिख न पाया गीत कोई।
अनगिनत उद्देश्य जिसके, आयु उसने व्यर्थ खोई॥
देख मत, मेला लगा है, कौन रोता कौन गाता।
जिस दुःखी का हर सके दुःख, जोड़ उसके साथ नाता॥
रोक धारायें सहस्रों, एक ही सागर बहा तू!

पार जाने को बहुत है, एक नौका का सहारा।
एक ही विश्वास का, सम्बल दिखा देगा किनारा॥
क्या करेगा तू महल की, रोशनी की क्रान्ति लेकर।
स्नेह का दीपक जला ले, दीप्त करले एक मन्दिर॥
एक निष्ठा को जनम दे, एक ही आस्था बना तू!
चाहता है यदि सफलता, एक ही मंजिल बना तू!!




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