गीत संजीवनी-2

जब तक मिले न लक्ष्य

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जब तक मिले न लक्ष्य बटोही, आगे बढ़ते जाओ।
खुला हुआ है द्वार प्रगति का, निर्भय कदम बढ़ाओ॥

भय से रुकना नहीं आँधियाँ, चाहे कितनी आयें।
रुकें नहीं पग पथ पर चाहे, टूट पड़ें विपदायें॥
संकल्पों में शक्ति न हो, सामर्थ्यहीन हो वाणी।
नहीं जमाने को बदले जो, वह क्या खाक जवानी॥
सिद्धि स्वयं दौड़ी आयेगी, अपनी भुजा उठाओ॥

हो निज पर विश्वास दृष्टि से, लक्ष्य नहीं ओझल हो।
मोड़ें जग की राह चाह में, इतनी शक्ति प्रबल हो॥
काँटों भरा देख मग तुमने, हिम्मत अगर न हारी।
चलते रहे विराम- रहित तो, होगी विजय तुम्हारी॥
नभ में उड़ो सुदूर गगन से, तोड़ सितारे लाओ॥

खोना मत उत्साह न नाता, मुस्कानों से टूटे।
डूब रही हो नाव भँवर में, फिर भी धैर्य न छूटे॥
जलते हुए अँगारे हों, या बर्फीली चट्टानें।
बढ़ते ही जाना, रुकना मत, अपना सीना ताने॥
कमर बाँधकर चले अगर तो, फिर मत पीठ दिखाओ॥
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