रजत जयन्ती वर्ष में अनुयाज महाक्राँति का शंखनाद

February 1996

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

ठण्डक के दिन । 20 दिसम्बर 1989 की दोपहरी में पूज्य परम गुरुदेव जी का जिस परिसर में आवास है, उसकी तीसरी मंजिल की छत पर धूप में बिठाकर शिष्यगणों को भविष्य के संबंध में निर्देश दिये जा रहे थे। अचानक पूज्यवर बोले- “ अब शाँतिकुँज का नाम क्राँतिकुँज होना चाहिए क्योंकि यह सारी धरती के परिवर्तन की धुरी बनने जा रहा है। भले ही तुम नाम न बदलो पर यह मानकर चलना कि यह महाकाल का घोंसला है। भगवान की प्रेरणा की 21वीं सदी के रूप में उज्ज्वल भविष्य सतयुग आये । उसका निश्चय है कि हम सब कि मदद से हजारों वर्षों के कलंक धोकर साफ कर दें। भगवान की इस इच्छा की सुसंस्कारिता सम्पन्न प्रज्ञा पुत्र पूरा करेंगे तथा सहायता के लिए महाकाल तैयार रहेगा। उसका घोंसला शाँतिकुँज में हैं पूरी दुनिया का चक्कर लगाकर वह यही शाँतिकुँज में आकर बैठ जाता है।” यह सब महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि प्रायः यही चिंतन उनकी लेखनी में आगे भी प्रकट होता रहा एवं जून तब जब तक उनके हाथों लिखी” अपनों से अपनी बात “ परिजनों तक पहुँचती रही, वह अपनी भावी भूमिका, स्थूल शरीर के बन्धनों से मुक्त होकर सूक्ष्म रूप में शाँतिकुँज में ही विराट रूप में विराजे रहने की बात लिखते रहे।

वसंत पर्व पर महाकाल का संदेश ( 31 जनवरी 1990 ) तथा उसके बाद अप्रैल 1990 को ज्योति के विशेषाँक में लेखों तक सतत् यही बात लिखी जाती रही कि शाँतिकुँज की 21 वीं सदी की गंगोत्री के रूप में मान्यता दी जा रही है एवं सभी देवशक्तियां -ऋषि सत्ताएँ यही से हिमालय रूपी गोमुख से आने वाली ऊर्जा और आभा सारे विश्व में गतिशील बनायेंगी। उसी शाँतिकुँज का 1996 का रजत जयन्ती वर्ष है। 1971 के जून माह की बीस तारीख को परम पूज्य गुरुदेव एवं परम वंदनीय माता गायत्री तपोभूमि मथुरा स्थायी रूप से छोड़कर शाँतिकुँज हरिद्वार आ गये थे । दोनों का पहला वसंत जो शाँतिकुँज हरिद्वार में सम्पन्न हुआ, वह 1972 का था, दोनों का इसलिए कि उन दिनों परम पूजनीय माता जी की विछोह वेदना से जन्य शारीरिक कष्ट चरम सीमा पर होने से पूज्यवर उन्हीं कुछ दिनों के लिए हिमालय साधना के मध्य से आ गये थे। बाद में वे गुरुसत्ता के आदेश पर ऋषियों की इस तपःस्थली में ऋषि परम्परा का बीज रोपण कर उसे पुष्पित पल्लवित करने का संकल्प लेकर जून 1972 में यही शाँतिकुँज अपने अंतिम चरण में आ गये थे एवं आगे की गतिविधियों का ताना बाना बुनना उनने आरम्भ कर दिया था। इस वसंत के बाद अब यह 25वाँ वसंत पूरा होने जा रहा है, अपनी रजत जयन्ती इस वर्ष मना रहा है, जिसमें प्रमुख लक्ष्य है देव परिवार का पुनर्गठन -आगामी छः वर्षों के लिए विराट व्यापक तैयारी एवं छावनी के रूप में इस केन्द्र भूमि को परिपक्व बनाना।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles