सूर्य की रंगीन रश्मियों में जीवनदायी तत्व विद्यमान है। सूर्य विज्ञान के ज्ञाता इन किरणों के माध्यम से मृतकों को भी प्राण फूँक सकते हैं। “ए सर्च इन सीक्रेट इण्डिया “ नामक अपनी प्रसिद्ध कृति में लन्दन के प्रख्यात मनीषी डॉ0 पाल. ब्रण्टन ने इस संदर्भ में काशी के महान योगी स्वामी विशुद्धानन्द परमहंस का उदाहरण प्रस्तुत करते हुए लिखा है कि स्वामी जी सूर्य विज्ञान में पारंगत थे । प्रकाश किरणों के माध्यम से वे न केवल वस्तुओं का रूपांतरण कर देते थे, शुष्क वस्तुओं में इच्छित सुगन्ध पैदा कर देते थे, वरन् विशिष्ट किरणों के केन्द्रीकरण द्वारा मृतकों में भी प्राण का संचार करने में सक्षम थे।
पाल. ब्रण्टन के अनुसार सूर्य को विभिन्न वर्ण वाली किरणों को अलग करने और उसके द्वारा विभिन्न प्रयोग परीक्षणों को सम्पन्न करना विशुद्धानन्द का विशिष्ट अनुसंधान विषय बन गया था। उनने कई तरह के लेंस एकत्र कर रखें थे और आवश्यकतानुसार उनका प्रयोग करते थे । लेंस द्वारा किसी भी वस्तु से सूर्य किरणें एकत्र कर वह दुर्लभ सुगंध पैदा कर देते थे।इसी तरह कुछ प्रयोगों को पाल. ब्रण्टन ने काशी संस्कृति विश्वविद्यालय के तत्कालीन प्राचार्य महा महिम पं0 गोनत्रपी नाथ कविराज के साथ स्वयं देखा था।
एक प्रयोग में स्वामी जी ने एक रुमाल पर लेंस द्वारा सूर्य किरणें केन्द्रित की तो उसमें से श्वेत जैमाइन पुष्प की सुगंध आने लगी। एक दूसरे प्रयोग में गुलाब तथा तीसरे में वायलेट की खुशबू हो गयी ।इन तीनों प्रकार की सुगंध उनने ब्रन्टन के कहने पर उत्पन्न की थी। वे लिखते हैं कि चौथी बार स्वामी जी ने अपनी इच्छानुसार एक ऐसे दुर्लभ पुष्प की सुगंध पैदा कर दी जिसके पौधे मात्र तिब्बत में ही पाये जाते हैं। इस परिवर्तन का कारण पूछे जाने पर स्वामी जरी ने सूर्य किरणों की विशिष्टता के बारे में बताया।
सूर्य किरणों द्वारा मृतकों में प्राण चेतना डालने के विशुद्धानन्द के एक प्रयोग का वर्णन करते हुए ब्रन्टन ने अपनी उक्त पुस्तक में बताया है कि कैसे एक मृत पक्षी कबूतर को उन्होंने जीवित कर दिया। उनके अनुसार एक कबूतर का गला दबाकर उसे मार दिया गया था। तदुपरांत स्वामी जी ने उसकी एक आँख में एक लेंस की सहायता से सूर्य की किरणों को फोकस किया साथ ही कुछ मंत्र का उच्चारण करते हुए, कुछ देर बाद लोगों ने देखा कि कबूतर के शरीर में हलचल होने लगी और वह अपने पैरों पर खड़ा हो गया। देखते देखते वह उड़ने लगा और आधे घण्टे इधर उधर उड़ता रहा।स्वामी जी ने इस रहस्य के बारे में पूछे जाने पर ब्रन्टन को उत्तर दिया कि सूर्य की रंगीन रश्मियों में जीवन तत्व भरपूर मात्रा में विद्यमान है। उन्हें अलग करने की कला ज्ञात हो तो उससे अद्भुत कार्य सम्पन्न किये जा सकते हैं। किरणों के ईथर की प्राणशक्ति सन्निहित है कि मनुष्य उसका उपयोग कर अनन्त शक्तियों का स्वामी बन सकता है।
कविराज गोपीनाथ ने अपने गुरु स्वामी विशुद्धानन्द जी के संदर्भ में लिखा है कि उनके प्रयोग विज्ञान सम्मत होते थे। एक विशेषज्ञ रसायन शास्त्री जिस तरह किसी वस्तु का विश्लेषण उसमें सम्मत घटकों तत्वों को अलग अलग कर देता है उसी तरह वह सूर्य किरणों को विश्लेषित करके उनमें से किसी विशिष्ट किरण का चयन कर उसका उपयोग करने में समर्थ थे । एक वस्तु को प्रकाश रश्मियों के प्रभाव से दूसरे रंग रूप में परिणित कर देने में वे हस्तगत थे। उदाहरण प्रस्तुत करते हुए उन्होंने लिखा है कि एक प्रयोग में उन्होंने एक गुलाब पुष्प को लेंस द्वारा सूर्य करण एकत्र करके उसे जवा कुसुम में परिवर्तित कर दिया था। जिसे कितने ही उपस्थित लोगों ने देखा था। कविराज के अनुसार सूर्य विज्ञान के संबंध में पूछे जाने पर स्वामी विशुद्धानन्द इन्हें बताते थे कि सूर्य रश्मियों या उनके वर्णक्रम को भली भाँति समझना और उनके वर्णों को शांत करना परस्पर मिश्रित करना एक विज्ञान है किरणों को पहचान कर उनकी योजना करना ही इस विज्ञान का प्रतिपाद्य विषय है। जिसने स्थूल एवं सूक्ष्म कार्यों को इसके द्वारा सम्पन्न हो सकता है।रश्मि देव और विभिन्न रश्मियों के मिश्रण भेद से सृष्टि के समस्त पदार्थों के उपयोग को मानते थे और कहा करते थे कि रश्मि समूहों का योजन और वियाचन की क्रिया पद्धति प्रणाली को जानने वाला व्यक्ति उसके द्वारा कुछ भी करने में समर्थ हो सकता है। वह निर्माण भी कर सकता है और संहार भी । आवश्यकता मात्र किरणों के वर्णभेद जानने, उसके समायोजन की विधि व्यवस्था जानने एवं स्वयँ की पात्रता के निवारने की है।