वसंत की वेला में गुरुवर का वासंती संदेश

February 1996

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इस अंक में 15/2/78 को शाँतिकुँज परिसर में, जब यहाँ गायत्री नगर का निर्माण हो रहा था,परमपूज्य गुरुदेव के श्री मुख से निकली अमृतवाणी दो भागों में पाठक बन्धु पढ़ेंगे। पहला भाग इस अंक में अविकल जा रहा है जिसमें स्थापनाओं की, जिनने आज सारे विश्व में धूम मचा रखी है, भावी फलश्रुतियों का वर्णन है। पढ़े अमृतवाणी।

गायत्री मंत्र हमारे साथ साथ -

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।

देवियों, भाइयों। वसंत पर्व के समय पर हमारी यह शृंखला जिस उद्घाटन प्रायोजन के लिए चल रही है, उसमें सम्मिलित करने के लिए आपको दूर दूर से बुलाकर क्यों कष्ट दिया गया, आइये जरा इस पर विचार करे।इस समय इधर तीन काम चल रहें हैं, जिनमें सम्मिलित होने के लिए आप लोगों को बुलाया गया है। यह तीन कार्य है-

( 1) ब्रह्मवर्चस का उद्घाटन ( 2) प्रज्ञा मंदिर का उद्घाटन और ( 3) गायत्री नगर का उद्घाटन । आँख से देखने पर ये तीनों चीजें बहुत ही छोटी दिखाई पड़ती है, लेकिन अगर आप अपने विवेक की आँख से देखे तो, इसमें कायाकल्प करने वाले युग और व्यक्ति को बदल देने वाले सारे के सारे गुण मौजूद है, भले ही बाहर से देखने पर ये छोटी छोटी प्रतीत होती हो, इसमें से ब्रह्मवर्चस आश्रम का निर्माण है, जो वाह्य दृष्टि से एक मंदिर जैसी चीज है जिसे बिल्कुल एक सामान्य सा निर्माण कहा जा सकता है, पर भीतर की दृष्टि से यह बहुत बड़ा अनुभूति सी बात है। यह एक प्रतीक की उलट पलट करने वाली कोई बहुत बड़ी चीज आने वाली है। मनुष्यों को दिशा देने वाली कोई नयी चीज उत्पन्न होने वाली है, इसका यह प्रतीक है।

प्रतीक किसे कहते हैं ? प्रतीक बेटे उसे कहते हैं जिसे कि सम्राट जार्ज पंचम जब इंग्लैण्ड की गद्दी पर बैठे तब हमको बचपन की यह कहानी याद है कि उनके हाथ में एक चाँदी की छड़ी या डण्डा रहता था। लोगों ने जब उनसे पूछा कि यह डण्डा किस काम आता है तो उन्होंने कहा कि यह राज सत्ता का प्रतीक है । हम सम्पूर्ण राज्य मण्डल के बादशाह है। उसका यह प्रतीक है रोल। रोल के बिना वे गद्दी पर नहीं बैठ सकते थे । इसी तरह हिन्दुस्तान की राज सत्ता जब ट्राँसफर हुई तब अंग्रेज सरकार अपना शासन हिन्दुस्तान की सरकार को देकर गयी थी तो क्या चीज देकर गयी थी-फाइलें नहीं ?

तब लार्ड माउण्डबेटन ने राज गोपालचार्य को गवर्नर बनाया था और उनके हाथ में एक रोल थमा दिया था। यह रोल या डण्डा क्या है ? यह हिन्दुस्तान के शासन की बागडोर का प्रतीक है। यह सिमबल हमें सौंप दिया गया और किलों पर से यूनियन जैक उतार दिया गया एवं यहाँ तिरंगा झण्डा फहरा दिया गया। झण्डा भी एक प्रतीक तिरंगा हो या जैक । यूनियन जैक पर तिरछी नीली व लाल लकीरें बनी हुई थी और तिरंगा हिन्दुस्तान के शासन का प्रतीक है जिसमें तीन पट्टियाँ लगा दी गयी है। इसमें एक पट्टी शौर्य और साहस का प्रतीक हैं, दूसरी सादगी और तीसरी श्रम की, समृद्धि का प्रतीक है। तीनों प्रतीकों से तिरंगा झण्डा बना दिया गया है। प्रतीक सबमें माने जाते हैं और जब तक दुनिया है,तब तक प्रतीक पूजा भी कायम रहेगी। मुसलमान प्रतीक पूजा को नहीं मानते हैं, लेकिन संगे अवसद जो काबा शरीफ में एक काले रंग का पत्थर रखा हुआ है, प्रत्येक मुसलमान जब भी हज यात्रा के लिए जाता है तो उसे उस काले पत्थर का चुम्बन लेना पड़ता है जिस पर मोहम्मद साहब बैठा करते थे। जो उनको बोसा नहीं लेता है उस व्यक्ति की जियारत कबूल नहीं मानी जाती है! यह क्या है ?प्रतीक है ?

आइये अब हम आप प्रतीक की उस गहराई में प्रवेश करे जिसके लिए उक्त तीनों प्रतीक बनाये गये हैं। जीवन के अंतिम दिनों में भगवान ने, महाकाल ने, त्रिपदा गायत्री की तीन महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ प्रतीक रूप में हमारे कंधों पर डाल दी है और हमने आपको बुलाया है कि इस सेतुबंध को बाँधने में हम और आप मिलकर काम करें, गोवर्धन पहाड़ को मिलकर उठायें। इसी के लिए आपको इस उद्घाटन सत्र में बुलाया गया है। बेटे यह उद्घाटन नहीं वरन् एक प्रकार की प्रकार की प्रतीक पूजा है। इस प्रतीक पूजा के पीछे जो उद्देश्य काम करते हैं और जिनके लिए हम व्याकुल है और सारा श्रम सारी अक्ल और सारे मनोयोग के आधार पर उनको पूरा करने में लगे हुए हैं, उसमें हम आपको भी दावत देते हैं, कि इनके पीछे जो विचारणायें काम करती है, आइये उनको पूरा करने में मदद कीजिए।

ब्रह्मवर्चस क्या चीज है ? बेटे ब्रह्मवर्चस की फैक्टरी है, एक कारखाना है, एक भट्टी है। इस भट्टी का क्या होगा ? गलाई और ढलाई । भट्टियां कई तरह की होती है। कहीं काँच की भट्टी है तो कही लोहे की भट्टी है, तो कही अमुक भट्टी है लेकिन हमने जो भट्टी बनाई है उसमें गलाई और ढलाई का काम हम करेंगे। एक तो ताकत और दूसरी बिजली के आधार पर नये युग का ढांचा खड़ा होगा। प्रत्येक मशीन या प्रत्येक क्रिया किसी न किसी ताकत से चलती है। कोई भी तंत्र किसी न किसी ताकत से घुमाया जाता है।ताकत न हो तो वह चलेगा ही नहीं। जिस ताकत के द्वारा नये युग के निर्माण का तंत्र चलने वाला है ‘क्रेन जिसके आधार पर उठाई जाने वाली है, ट्रिलिंग मशीन जिसके द्वारा मशीन में सुराख किया जाना है, वह आत्मिक ताकत है। आत्मिक ताकत के बिना हम नया युग नहीं ला सकेंगे। नया युग लाने के लिए हम ऐसी बात नहीं करते जिसके लिए हमें ऐसे की जरूरत हो । हम आत्मबल की जरूरत समझते हैं आत्मबल यदि हमारे पास होगा तो हम मनुष्यों की चेतना को बदल सकेंगे।

परिवर्तन में क्या बदलना है ? क्या खानें- पीने के तरीके बदलने है ? नहीं बेटे यही दाल रोटी सब खायेंगे चाहे नया युग आ गया हो या नहीं आया हो। तो फिर क्या बदलेंगे ? हम लोगों की विचारणायें बदल देंगे, आस्थायें बदल देंगे, दृष्टिकोण बदल देंगे, और आदमी को इंसान बना देंगे। ईमान को बदलने के लिए किस ताकत की जरूरत पड़ेगी । हमको रूहानी ताकत की जरूरत पड़ेगी, क्यों कि बदलना हमको चिंतन है - खाना -कपड़ा नहीं। आदमी का चिंतन बदलने के लिए लकड़ी की, पैसे की जरूरत नहीं है। जरूरत है रूहानी बल की -आत्मबल की जिससे विचारों को बदलना है। विचारों को कोई और दूसरी चीज नहीं बदल सकती। पैसा विचारों को नहीं बदल सकता। दुनिया की कोई भी चीज विचारों को नहीं बदल सकती। विचारों को बदलने के लिए जिस आत्मबल की जरूरत है। उसे हम पैदा करेंगे।

युगशक्ति केवल आत्मबल की शक्ति होगी । आत्मबल की शक्ति आप कैसे पैदा करेंगे ? इसके लिए हमें महाब्रह्मवर्चस की छोटी फैक्टरी लगाई है इसमें हम यह कोशिश करेंगे कि आत्मबल समस्त मनुष्यों का निर्माण करें।

गुरुजी ! आप कैसे मनुष्यों का निर्माण करेंगे ? उन्हें क्या सिखायेंगे ?क्या आप उन्हें इंजीनियरिंग सिखायेंगे ? नहीं इंजीनियरिंग नहीं सिखायेंगे। हम दो तरह के आदमी बनायेंगे एक का नाम होगा मनस्वी और दूसरे का नाम होगा तपस्वी। तो क्या आप मनस्वी और तपस्वी इसी जगह बनायेंगे और कही अन्यत्र भी ?नहीं बेटे ! यह तो हमारी नर्सरी है। इस नर्सरी में हम छोटे छोटे पौधे उगायेंगे और फिर उनको सारे संसार में भेज देंगे। यहाँ हम एक नमूने के मॉडल के अीज तैयार करेंगे और फिर सारे विश्व का ध्यान आकर्षित करने के लिए हर आदमी को विस्मार देने के लिए उन्हें भेज देंगे। नये युग के लिए इस मॉडल को हमने देवता कहा है। देवता की शर्त क्या होती है ?देवता के दो हिस्से है - एक मनस्वी और दूसरा तपस्वी। मनस्वी पूर्वार्द्ध है और तपस्वी उत्तरार्द्ध। मनस्वी मैट्रिक, स्कूल, हाईस्कूल है और तपस्वी कॉलेज कोर्स है।तपस्वी स्तर के मनुष्य जिसको हम देवत्व सम्पन्न कहते हैं, अगले दिनों तैयार करने पड़ेंगे। उन्हें तैयार करने के लिए हम शिक्षण करेंगे। क्या क्या शिक्षण करेंगे इस ब्रह्मवर्चस में जिसका उद्घाटन कराया है आपसे ? बेटे इसके लिए हमारे बड़े बड़े ख्वाब है यद्यपि कम्पनी जरा सी, कारखाना जरा सा, इमारत जरा सी, लेकिन हम जो काम करने वाले है वह इस इमारत भर के लायक नहीं, हिन्दुस्तान के लायक नहीं, इमारत के लायक नहीं, हिन्दुओं के लायक नहीं वरन् सारे विश्व के लिए हैं।सब जगह हमारे बैठने के लिए हैं। बैठने के लिए - खड़े होने के लिए कही न कही तो जगह चाहिए। यह हमारे खड़े होने की जगह है लेकिन हमें जो काम करना है उसे थोड़े से दायरे में नहीं करना है, वरन् सारे संसार में करना है।व्यापक रूप से विस्तृत रूप से करना है।

क्या काम करना है ? एक तो हमको मनस्वी तैयार करने है और दूसरे तपस्वी तैयार करने है। मनस्वी कैसे होते हैं जो मन के गुलाम नहीं होते वरन् मन के स्वामी होते हैं । मन के स्वामी का नाम है मनस्वी। पर आज तो सारा मानव समाज ही मन का गुलाम है। मन के गुलाम का मतलब है लोभ का गुलाम और मोह का गुलाम। सिद्धांतों से उन्हें कोई मतलब नहीं। सिद्धाँत उनके लिए केवल कहने और सुनने के लिए हैं। सिद्धाँत उनके जीवन से बहुत दूर है। वे नर वानरों, नर पशुओं और नर कीटकों की तरह से जिन्दा रहते हैं। सिद्धाँत उनके लिए कोई मायने नहीं रखते। उनके लिए लोभ मायने रखता है लोभ माया मायने रखता है। इस पीढ़ी को हम बदल देना चाहते हैं और नयी पीढ़ी लाना चाहते हैं इस लिए हम गलाई और ढलाई करेंगे। गलाई और ढलाई क्या होती है ? बेटे गलाई वह है जिसमें छापेखाने पर टाइप जब घिस जाते हैं तो उनको गलाने और सड़ाने के लिए फैक्टरी भेज देते हैं। जैसे ही उसे भट्टियों में गला, उसे ढालकर टाइप बना देते हैं। इसी प्रकार टूटे पुराने बर्तनों को भट्टियों में गलने भेज दिया जाता है जहाँ उन्हें दुबारा ढालकर नया बर्तन बना दिया जाता है। हम भी नया युग लाने के लिए मनस्वी बनाना चाहते हैं।

मनस्वी कैसा होता है ?मनस्वी ऐसा होता है जो मन का मालिक हो और अपने इशारे से मन को चलाता हो और कहता हो कि भाई साहब हम आपके गुलाम नहीं है। हम को यह मन और शरीर सहित ग्यारह इंद्रियां काम करने को मिली है इन्द्रियों को हमारा इशारा मानना पड़ेगा आप का इशारा क्या होगा और आप क्या करेंगे ? हम भगवान के यहाँ से आते हैं। भगवान ने हमारे जिम्मे सिद्धाँत दिये हैं, आदर्श दिये हैं, उन आदर्शों और सिद्धाँतों के चलने पर हम मन को हुक्म देंगे और आपको हमारा आदेश मानना ही पड़ेगा। इस तरीके से जो आदमी अपने जीवन की बागडोर अपने हाथ में सँभाल लेते हैं उनका नाम होता है मनस्वी। अब हम मनस्वी बनेंगे। मनस्वी से क्या हो जायेगा ? बेटे, मनस्वी से ऐसा हो जायेगा जो हम इंसान के भीतर ख्वाब देखते है कि देवता का उदय होना चाहिए तो उसके भीतर देवत्व का उदय हो जायेगा। अपने मन का जो मालिक है वही देवता होता है। देवता कैसे होते हैं ? देवता ऐसा होता है कि उसके सामने उसकी महत्वाकाँक्षाएँ, इच्छाएँ, उसकी कामनायें, भावनायें, उमंगे जो उठती है, वे यह उठती है कि हमारा जीवन आदर्शों के लिए, सिद्धाँतों के लिए हैं । जहाँ से हम उसके लिए चलते हैं।

साथियों, भगवान ने मनुष्य को जो बहुमूल्य जीवन दिया है वह मौज उड़ाने के लिए मजा उड़ाने के लिए नहीं दिया है। यदि इतने भर के लिए भगवान ने मनुष्य को जन्म दिया होता तो, फिर भगवान को जितनी गालियाँ दी जा सके कम है। फिर भगवान को पक्षपाती कहा जाता, अन्यायी कहा जाता। चौरासी लाख योनियों में से जो चीजें किसी को नहीं मिली, लेकिन इंसान को मिली, तो वह निश्चय ही मौज उड़ाने के लिए या स्वार्थ करने के लिए, अय्याशी करने के लिए नहीं मिली है वरन् एक अमानत के रूप में आपको मिली है। जिस दिन आदमी को यह ख्याल आ जायेगा वह जो अमानत मिली है। इसका इस्तेमाल आपको ईमानदार आदमी के तरीके से करना चाहिए बेईमान या बदमाश आदमी के तरीके से नहीं, तो समझना चाहिए कि वह मनस्वी हो गया। बेईमान कौन होता है ? बेईमान उस मुनीम या खजांची का नाम है जिसके हाथ बहुत सारा पैसा दिया गया कि वह इसे सरकारी कामों में खर्च करेगा, ,लेकिन उसने इसे सरकारी कामों में खर्च ने करके अपने कामों में खर्च कर डाला। वह आदमी क्या हो सकता है आप समझ सकते हैं। वह आदमी एक क्रिमिनल है। जो अपनी अक्ल को दौलत को अपने प्रभाव को, विशेषताओं को अपनी, अय्याशी में, अपने लोभ और मोह में खर्च कर डालता है। ऐसा व्यक्ति कानून की दृष्टि में क्रिमिनल होता है। सरकारी कानून में इसके आधार पर मुकदमें चलते हैं वे जो चोरों और चालाकों और चोरों के लिए बना दिये गये है। हम सरकारी कानूनों की बाबत नहीं कहते कि ये बाते जुर्म है कि नहीं।, लेकिन बेटे, आध्यात्मिक दृष्टि से जो बाते जुर्म है उनकी बाबत हम आपका ध्यान आकर्षित करते हैं। आदमी की अक्ल भगवान की धरोहर है, आदमी की क्षमताएँ भगवान की धरोहर है और वे केवल इसी काम के लिए मिली है कि उस भगवान की सुन्दर दुनिया को खूबसूरत बनाने के लिए, संस्कार वान बनाने में खर्च करनी चाहिए। यह उसकी जिम्मेदारी है जो भगवान ने उसके जिम्मे सौंपी है। अगर आपका यह ख्याल हो कि मरने के बाद आपसे सवाल जवाब पूछा जायेगा कि आपने कोई भजन पूजन किया था नहीं तो, बेटे, भगवान के यहाँ ऐसा कोई एकाउण्ट नहीं है। भगवान के यहाँ तो केवल एक ही सवाल जवाब होता है आपने इन्सानी जिन्दगी किन किन कामों में खर्च की जवाब दीजिए। हमने आपको दुनिया सुन्दर समुन्नत बनाने के लिए ऊँचा उठाने के लिए, आदर्श वादी बनाने के लिए अपने सहायक असिस्टेण्ट के रूप में भेजा था। आपने ये काम किये कि नहीं। आपको हमने इतनी सुन्दर अक्ल दिमाग, इतने सुन्दर हाथ पाँव दिये थे कि जो धरती पर और किसी को नहीं मिले। आपको हमने पेट भरने और तन ढकने लायक इतनी चीजें दे दी थी कि घण्टे आध घण्टे की मेहनत से आप अपना गुजारा कर सकते थे और बाकी समय की क्षमता हमारे काम के खर्च में लगाइए। पर आपने ऐसा नहीं किया कर भी क्या सकते थे, जो कुछ भी हमारा मन है, यह ऐसा बेईमान बदमाश, दुष्ट, अन्यायी, अत्याचारी नौकर और साथी है जो बेकाबू है। मिला तो यह हमको इस लिए था कि इसकी मदद से हमको अपनी जिन्दगी की नाव पार लगानी है, पर हमने इसे ऐसे घसीट घसीट कर मारा है जैसे कई लड़के अपने बाप को जब वह बूढ़ा हो जाता है तो पैसा छीनने के लिए मारते पीटते और पैसा छीन लेते हैं। कोई कोई होता है ऐसा बदमाश।

गुरुजी । कौन कौन सा ऐसा बदमाश है उसका मन बताइये ? बेटे, उस बदमाश का नाम है -आपका मन, जिसने आपको अपने ईमान को, आपकी जीवात्मा को मारा पीटा है,लाते लगाई और गालियाँ दी है और जितना भी पीड़ित कर सकता था, उत्पीड़न दे सकता था, जितना भी गिरा सकता था वह सब गिरा दिया। यदि वह हमारा और आपका मन काबू में होता तो आज हमारी हैसियत कुछ दूसरी ही होती। अगर आपका मन काबू में होता तो आप में से अधिकाँश व्यक्ति विवेकानन्द होते, कबीर होते, रैदास होते, पर यह नहीं मानता कसाई हत्यारा- हमारे ऊपर दिन रात हाथी रहता है और भगवान के बारे में न जाने क्या ऊल - जलूल पट्टी पढ़ाता रहता है हमको। भगवान का भजन करने से मतलब केवल एक ही है कि हम अपने मन की सफाई करें और यह याद रखें कि भगवान के यहाँ से हम किस काम के लिए आये है और किस काम के लिए जाना पड़ेगा। लेकिन यह चालाक और बेईमान मन न जाने क्या पट्टी पढ़ा देता है। ये यों कह देता है कि भगवान को धूपबत्ती और चावल दीजिए, फूल माला सुधा दीजिए, भगवान को हनुमान चालीसा सुना दीजिए और भगवान को उल्लू बना दीजिए फिर चाहे भगवान से जो काम करा लीजिए। हमारा मन बड़ा चालाक बड़ा बेईमान, बड़ा दुष्ट और जालिम है जो हमको न जाने क्या क्या पढ़ाता और कराता रहता है ?

मित्रों, हम मनस्वियों की नयी पीढ़ी बनाने के इच्छुक है । ऐसे मनस्वी, ऐसे हिम्मत वाले अपने मन के स्वामी आदमी अगले दिनों ढालने के लिए हम सब बहुत इच्छुक है, जो सिद्धाँत के लिए आदर्शों के लिए जिये। सिद्धाँत और आदर्शों के लिए जीने वाले का स्वरूप क्या होना चाहिए ? बेटे एक स्वरूप बता सकता हूँ कि एक बात जिस आदमी के भीतर हो समझना चाहिए कि वह आदमी मनस्वी और भगवान के कार्य कर सकता है । ऐसे ही व्यक्ति की आध्यात्मिक शक्तियाँ बढ़ेगी और वह दुनिया के लिए महत्वपूर्ण कार्य करेगा और जीवन की नाव को खेकर पार लगा देगा, पर एक बात आ जाये तब ? बताइये उस मनस्वी की क्या पहचान है ? मनस्वी की पहचान एक है कि वह अपनी महत्वाकाँक्षाओं की धुरी बदल दें ? अभी तो 24 घण्टे यही राक्षस हमारे ऊपर हावी बना रहता है। कि हमारी महत्वाकाँक्षायें, हमारा अहंकार रावण के बराबर होना चाहिए, हमारी अमीरी हिरण्यकश्यप के बराबर होनी चाहिए, और हमारी ताकत भस्मासुर के बराबर होनी चाहिए। अगर हम इसे बदले सके तो मनस्वी बन सके तो हमारे चिंतन की दिशा अलग बदल जायेगी । फिर मैं समझ लूँगा कि अब आप कल्याण की दिशा में चल पड़े और आपके पास बहुत सारी चीज आ गयी । क्या क्या चीज बदल जाये ?बस एक ही चीज बदल जाये वह यह कि महत्वाकाँक्षाओं का प्वाइंट बदल जाय तब।

इन दिनों मनुष्य को भौतिक इच्छायें खायें जा रही है। उसने आपके शरीर को खा लिया है, आपकी अक्ल को खा लिया, आपके प्रभाव को खा लिया, आपकी प्रतिभा को खा लिया। तो क्या भौतिक महत्वाकाँक्षायें खराब है ? नहीं बेटे, ये खराब उस सीमा तक नहीं है जिसमें कि आदमी को शरीर गुजारने के लिए जितना धन चाहिए आवश्यक है अक्ल, समय, श्रम आवश्यक है, बस उतनी उसमें लाये और बची हुई चीजें भगवान के लिए लगाये।मनस्वी आदमी वे है जो अपने जीवन का निर्धारण और जीवन की दिशा धारा को सही कर सकते हैं । उनको मैं मनस्वी कहता हूँ जो अपने मन और अक्ल को सलाह देते हैं, परामर्श देते हैं कि आपको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए। मनस्वी को पहचान कर ही उसके जीवन में ‘ सदा’ “सादा जीवन उच्च विचार “ के ऊँचे विचार आते हैं। ऊँचे विचार लाने के लिए सादा जीवन आवश्यक है । आध्यात्मिक महत्वाकाँक्षाओं को पूरा करने के लिए साँसारिक महत्वाकाँक्षाओं को गिराया जाना आवश्यक है। साँसारिक महत्वाकाँक्षाओं को आप नहीं गिरायेंगे तो आपको दो शिकायतें हमेशा बनी रहेंगी कि अच्छी बातों में भजन- पूजन में हमारा मन नहीं लगता। फिर आप कहेंगे कि गुरु जी कोई विधा बता दीजिए जिससे मन लगने लगे। बेटे मन लगाने की विधा यह है कि जिन महत्वाकाँक्षाओं में तेरा मन लगा हुआ है, वहाँ से उस प्वाइंट से हटाकर दूसरे प्वाइंट पर लगा, फिर देखना कि तेरा मन लगता है या नहीं। एक जगह से मन हटाकर दूसरी जगह लगा, सफलता का यही रहस्य है।

अध्यात्म क्या है ? अध्यात्म कोई जादू नहीं, भजन, प्राणायाम जैसी कोई क्रिया नहीं है वरन् जीवन जीने की शैली और सोचने का तरीका है और जीवन यापन करने की पद्धति हैं पर आप तो इसे जादूगरी समझते हैं कि हाथ को यहाँ धर देंगे, नाक में से हवा निकाल देंगे, वे मुद्रा कर लेंगे, हाथ की हेरा फेरी करेंगे, चावल रोटी को यहाँ धरेंगे इसको यों जोड़ देंगे। हाथों की बाजीगरी और जीभ की नोक से रंग बिरंगे अक्षरों को कह करके हम भगवान को काबू में रखेंगे। बेटे यह अध्यात्म नहीं हो सकता । यह सिद्धाँत गलत है। सही बात है कि हमारे जीवन का स्वरूप, जीवनयापन का तरीका, स्तर और सोचने का तरीका अगर बदल जाता है तो फिर आपको भगवान की तलाश नहीं करनी पड़ती । भगवान हमको तलाश करता । हमारा जीवन इस बात का साक्षी है। हमने भगवान को नहीं तलाश किया, भगवान ने हमको तलाश किया। भौंरे को बुलाने के लिए फूल नहीं गया, भौंरा फूल के पास आया । तितलियों की खुशामद करने के लिए उसे बुलाने के लिए इश्तहार देने के लिए फूल नहीं गया था, तितलियाँ फूल के पास आई थी।

साथियों, मैं यह कह रहा हूँ कि मनस्वी व्यक्ति अपने जीवन के उस स्तर को बनाते हैं, जिसमें हम ख्वाब देखते हैं, कल्पना करते हैं, जिनका हम प्रयास करते हैं। नये युग में जिन देवताओं की जरूरत पड़ेगी, उन देवताओं की शुरुआत करने के लिए हमने ब्रह्मवर्चस की स्थापना की है जिसका की अभी उद्घाटन कराया है। उसके आधार पर हम विचार करते हैं कि नये युग में कौन सा आदमी होगा ?मनुष्य से देवता उदय होने में सिर्फ एक बात होगी कि आदमी की महत्वाकाँक्षाएँ बदल जायेगी । आदमी की खुशी कहाँ टिकी हुई है ?पैसे को पूरा करने के लाए हम हनुमान जी का इस्तेमाल करते हैं, संतोषी माता, साँई बाबा का इस्तेमाल करते हैं। जो भी आदमी आ जाता है उसका इस्तेमाल करते हैं। हम किसी से माँगते नहीं हर किसी को बहकाते हैं कि बहकावे में आकर वह मेरा उल्लू सीधा कर जाय। यह बात मैं भलीभाँति जानता हूँ कि मेरे मन में क्या है। घर में चाहता हूँ कि जिस अध्यात्म से मनस्वी पैदा होते हैं, जिसको हम देवता कहते हैं, आप वह करें। मनुष्य में से देवता उदय हों। मनुष्य में से जब देवता पैदा होगा तो अपने आप में दिव्य होगा और जो कोई भी उसके समीप आवेगा वह भी उसी तरह का बनता चला जायेगा।

नये युग में मनुष्य को बनाने के लिए हम मनस्वी पैदा करेंगे । मनस्वी पैदा करने का मतलब है कि वह मनुष्य अपने मन से कहेगा कि जिस देश में हम पैदा हुए हैं उसके औसत नागरिक के स्तर के जीवनयापन का मापदण्ड बनाना चाहिए। भारत का औसत नागरिक क्या खाता है वह खाइये। वह जिस स्तर पर जीवनयापन करता है आप भी उसी स्तर पर कीजिए। औसत नागरिक की आवश्यकताएँ क्या है ? आप तय कीजिए और अपना मानदण्ड बनाइये।मनस्वी व्यक्ति ऐसे ही होते हैं और ऐसे ही होने चाहिए। ईश्वरचन्द्र विद्या सागर का मैं मनस्वी में नाम लेता हूँ। वे 500 रुपये महीने कमाते थे लेकिन 50 रुपये में अपना जीवन और कुटुम्ब चलाते थे। शेष बचे 450 रुपये विद्यार्थियों और मुसीबत ग्रस्तों के लिए सुरक्षित रखते और उससे उनकी मदद करते थे। मनस्वी उसे नहीं कहते जो प्राणायाम करता है।और 11 माला जप करता है।मनस्वी वह होता है जो बहादुरी और ईमानदार तरीके से अपने जीवन के संबंध में अपने जीवन पद्धति के संबंध में महत्वपूर्ण फैसले कर लेता है। अगर आप यह फैसला कर ले तो आपके जीवन में कायाकल्प हो जायेगा। कैसे हो जायेगा ? अभी तो 24 घण्टे तो आपकी अक्ल एक ही बात के सपने देखती रहती है कि लोभ-मोह की पूर्ति कैसे हो ? सारी की सारी अक्ल, आकांक्षाएं उसी काम में लगी रहती है। क्या आप इसे खाली नहीं कर सकते ? अक्ल को खाली कीजिए। अक्ल को यदि खाली करेंगे तो आप मनस्वी कहलायेंगे। गुजारे से सब्र कीजिए, संतोष कीजिए, तब आपका बचा हुआ मन जो 24 घण्टे महत्वाकाँक्षाओं और लिप्साओं में और लालसाओं की पूर्ति में लगा रहता है, बदल जायेगा और फिर बदले हुए मन के सामने वे सिद्धाँत काम आयेंगे जिसको मैं अध्यात्म कहता हूँ, ईमान कहता हूँ, धर्म कहता हूँ। धर्म के लिए, ईमान के लिए, भगवान के लिए फिर आपकी अक्ल काम करेंगी, श्रम काम करेगा, आपकी क्षमता कुशलता काम करेगी।

इससे क्या हो जायेगा ? इससे आप महामानव हो जायेंगे, ऋषि हो जायेंगे। ऋषि उस व्यक्ति का नाम है जिसे नयी वस्तु ग्रहण करने की जरूरत नहीं है। उसके लिए न नया धन चाहिए न बल चाहिए। जो चीजें पास है वे इतनी ज्यादा है कि आप उनका इस्तेमाल करना सीखिए। अभी तो आप उनका गलत कामों में इस्तेमाल करते हैं, पर जिस दिन आप सही इस्तेमाल कर लगेंगे, पायेंगे कि आप के भीतर कितनी शाँति, कितना संतोष, कितनी क्षमता, कितनी प्रतिभा विकसित होती है। जिस दिन आपके भीतर यह क्षमता यह प्रतिभा विकसित होगी, उस दिन मैं वादा करता हूँ कि देवता आपकी सहायता करने के लिए आयेंगे। देवता आपकी आरती उतारने के लिए आयेंगे। रामायण में मैंने पढ़ा है कि श्रेष्ठ दिशा में जीवन यापन करने वालों पर देवता फूल बरसाने आये थे। रामचन्द्र जी का जन्म हुआ तो, देवता विमान से फूल बरसाने लगे।जब रामचन्द्र जी ने धनुष तोड़ा तो स्वर्गलोक से देवता फूल बरसाने लगे। इस बात पर मैं विचार करता रहा कि देवता क्या कोई माली है, या इनके पास फूलों की दुकान है जो फूल बरसाने का ही काम करते हैं पीछे मैंने सोचा कि फूल बरसाने से क्या मतलब है ?फूल बरसाने से मतलब होता है कि दैवीय शक्तियाँ, श्रेष्ठ मनुष्य एवं आदर्श मनुष्य की सहायता करती है। किनकी सहायता करती है ? उन व्यक्तियों करी जिसने अपने जीवन की धुरी बदल दी थी, चिंतन का स्वरूप बदल दिया आकाँक्षाओं को बदल दिया। जो व्यक्ति अपनी प्रियता को, चिंतन और दिशाधारा को बदल देता है, वही देवता हो सकता है।

हमने मनुष्य में देवत्व के उदय का सपना देखा था। आइये उस पर विचार करे कि हम अपने सपने को साकार कैसे कर सकते हैं ? इस संदर्भ में हमने ब्रह्मवर्चस के माध्यम से एक फिलॉसफी बनायी है क्रिया पद्धति बनायी है। ब्रह्मवर्चस क्या होगा ?इसमें प्रातःकाल ढाई बजे की साधना है। जिसे पंचकोशी साधना या कुंडलिनी कहते हैं। इसमें योगाभ्यास भी कराये और दोपहर को ब्रह्मज्ञान का प्रशिक्षण जिसे हम आत्मज्ञान कहते हैं। यह भी ढाई घण्टे प्रशिक्षण है। इसमें ब्रह्मविद्या के ईश्वर, जीवन प्रकृति से लेकर विज्ञान के बारे में ऋषियों ने जो कहा है उनकी बाते बतायेंगे। शाम को लोकमंगल के लिए लोक शिक्षण करेंगे कि आज की परिस्थिति में हमें क्या करना चाहिए ?उसकी गतिविधियाँ, स्वरूप या क्रिया शैली क्या हो ?ऋषि केवल भजन ही नहीं करते थे उसके साथ लोक मंगल की सेवा साधना भी करते थे। ब्रह्मवर्चस में भी सेवा, स्वाध्याय, साधना एवं तपश्चर्या वाले तीनों अंशों का समन्वित साधन चलेंगे।ऐसी तपश्चर्या कराना चाहते हैं। तपश्चर्या में सबसे पहले यह काम करना पड़ता है -महाभारत की लड़ाई लड़नी पड़ती है। अर्जुन को श्रीकृष्ण बार बार यही कहते थे कि “ततो युद्धाय युज्यस्व “ किंतु अर्जुन बार बार बहाने बनाता रहा और कहता रहा कि मैं नहीं लड़ूँगा। पीछे भगवान के बार बार समझाने पर उसने कहा-” करिष्ये वचनं तव” अर्थात् आपकी आज्ञा मानूँगा। तो उनने कहा तो उतर कुरुक्षेत्र में और लड़ाई कर । अर्जुन लड़ने लगा और विजय हुआ।

बेटे अध्यात्म क्षेत्र में भी लड़ना पड़ता है । किससे लेना पड़ता है ?अपने मन से। हमारा यह मन बड़ा कमीना है। इस लड़ाई में अगर हमारा विजय हो जाती है तो समझना चाहिए कि हमने तीनों लोकों पर विजय प्राप्त कर ली। कहा भी है- ‘ नमरा आपको जो खाक हो अवसीर बन जाता। अगर पारे को ए अवसीर गर मरा तो क्या मारा। न अंगों अशगवाहों शेर नर मरा तो क्या मारा। न मरा आपको जो खाक हो अवसीर बन जाता। अगर पारे को ए अवसीर गर मारा तो क्या मारा॥” तात्पर्य यह है कि अगर हम अपने आपको मार ले, अपने मन पर काबू कर ले, अपने मन को अपनी इच्छानुसार चला ले तो मजा आ जाये ।तो आप कौन हो जायेंगे, मनस्वी हो जायेंगे, संत हो जायेंगे और देवता का पुरुषार्थ पूरा कर लेंगे। अपने आप से लड़ाई लड़ने, अपने मन पर कन्ट्रोल कर इन्द्रियों पर काबू करने वालों और जन्म जन्मांतरों के हैवानी कुविचारों से पीछा छुड़ाने वालों को हम मनस्वी कहते हैं। मनस्वी हो अपने जीवन को बदल सकेंगे और समय को युग को बदल सकेंगे। यदि वे मनस्वी नहीं होगे तो वे न अपनी जिन्दगी को बदल सकेंगे और न दूसरों को बदल सकेंगे। इसी लिए मनस्वी पैदा करना हमारा काम है।

मनस्वी पैदा करने के लिए, ब्रह्मवर्चस संस्थान की स्थापना की गयी है। यहाँ पर हम लोगों को बुलायेंगे और बतायेंगे कि मनस्वी कैसा होना चाहिए ? मन से कैसे लड़ना चाहिए ?मन के विकृत होने पर जिन्दगी कैसे खराब हो जाती है और मन को काबू में लाने पर मन कैसे मुक्त हो जात है ? “ मन एवं मनुष्याणाँ कारणं बन्ध मोक्ष्यये। “ यह मन ही है जो हमको बाँधता और हमको मुक्त कर देता है। यह मन ही है जो राक्षस बना देता है, देवता बना देता है। चाहे हम इसको विधाता कह लें या पिशाच कह लें वह एक ही है। इसे किस तरीके से निग्रहित कर सकते हैं, यह विधि यहाँ सिखायेंगे और यहाँ से सारे संसार में फैलायेंगे। इसलिए ब्रह्मवर्चस का पहला अध्याय, पहला उद्देश्य हमारा यह है कि मनुष्योँ को पहले मनस्वी बनाइये। मन से लड़ने वाला, मन को काबू करने वाला, मन को हीरा बना देने वाला बनाये।

आदमी का मन ही उसे आत्म हत्या के लिए प्रेरित करता है, नींद नहीं आने देता, शराबी, नशेबाज बनाता है।, डाकू बनाता है और यही ही पारस भी है, जो हमको ऋषि बना देता है और संत बना देता है, देवता बना देता है। इसलिए मन के साथ जद्दोजहद करना, मन को परिष्कृत करना यह एक कला है। फिलॉसफी है, एक साइंस है, एक विधि विज्ञान है, । इसको ब्रह्मवर्चस में सिखायेंगे। यह एक नमूना है, मंडल है, प्रयोगशाला है, फैक्टरी है, फार्महाउस व नर्सरी है । जहाँ प्रयोग करने के बाद विश्व भर में बतायेंगे कि मन को काबू करके मनस्वी कैसे बना जा सकता है ?हमारी यह प्रयोगशाला विश्व में अपने आप में एक अनोखी प्रयोगशाला है । यह आश्रम हमारी शुरुआत का एक केन्द्र है जहाँ हम शिक्षण करेंगे और नव युग की एक हवा पैदा करेंगे। मनस्वियों को ढालने की यह एक बहुत बड़ी फैक्टरी है जिसका प्रत्यक्ष परिणाम अगले ही दिनों आपके सामने आने वाला है।

( क्रमशः अगले अंक में )


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