धारा को चीरकर चल पड़ने जैसा पराक्रम

February 1996

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

प्राणी का धर्म है प्रगति । से यहाँ अर्थ है स्वभाव । इसके बिना न तो किसी को चैन मिलता है, न संतोष न सुख । कहा जाता है कि प्राणी सुख की खोज में फिरते रहते हैं। यह कथन तब ही सही हो सकता है जब उन प्रयासों के साथ सुविधा नहीं प्रगति भी जुड़ी हो। निम्न स्तरीय प्राणी सुविधा से संतुष्ट हो सकते हैं। किन्तु जिनका अंतराल जीवित है, गुजारा प्रगति की दिशा में तेजी से कदम बढ़ाये बिना हो ही नहीं सकता । इस स्तर के लोगों सुविधा नहीं उस गौरव को अर्जित करने का प्रयास रहता है जो अपनी पीठ थपथपा सके। साहस और पराक्रम के क्षेत्र में अपनी स्थिति सामान्य जन समुदाय की तुलना में अधिक ऊँची, अधिक अच्छी सिद्ध कर सके। प्रगति इसी को कहते हैं। जिन्हें असामान्य कहा जाता है, उनका काम इससे कम नहीं चलाता। वे वर्चस्व प्रकट किये बिना नहीं रह सकते। सुविधाएँ उनका प्रगति पथ कभी अवरुद्ध नहीं करती, न ही वे सुविधाओं पर निर्भर रहते हैं।

विशिष्टता सिद्ध करने की उत्कण्ठा यदि उथलेपन की स्थिति में हुई तो वह भोंडे प्रदर्शन एवं एक कदम आगे बढ़ने पर उद्दण्डता के रूप में प्रकट होने लगती है॥ अहमन्यता अपने उद्धत प्रदर्शन न कर पाये, इसके लिए तत्व वेत्ता - दूरदर्शियों ने मानवी मनो विज्ञान को समझते हुए इस प्रवृत्ति को उत्कृष्टता के साथ जोड़ने का प्रयास किया । आत्मोत्कर्ष के लिए उनने कुछ उपयोगी क्षेत्र निर्धारण कर सिद्ध किया कि उस राजमार्ग पर चलने में दूसरों को चकाचौंध करने वाला न सही अपनी अंतरात्मा को गौरवान्वित करने वाला, श्रेय संतोष परिपूर्ण मात्रा में मिल सकता है। वैभव तो चतुराई से कमाया जा सकता है किंतु व्यक्तित्व का निर्माण तो मनुष्य को अपनी कलाकारिता, सूझबूझ, एकाग्रता और ऐसे पराक्रम का प्रतिफल है। जो संसार के अन्यान्य उपार्जनों की तुलना में कही अधिक महत्व पूर्ण साध्य है। इसमें संकल्प शक्ति साहसिकता और दूरदर्शिता का परिचय देना पड़ता है। जन साधारण द्वारा अपनाई गयी रीति नीति से ठीक उल्टी दिशा में चलता उस मछली के पराक्रम जैसा है जो प्रचण्ड प्रवाह को चीर कर उसके विपरीत चलती है ऐसे नर पुँगवों को ही विश्व विजेता की उपमा दी गयी है जो महानता को अंगीकार कर प्रतिकूलताओं से टकराते हुए आगे सतत् आगे ही बढ़ते रहते हैं। इस मार्ग को अपनाना ही मनुष्य की सबसे बड़ी दूरदर्शिता है।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles